इतिहासराजस्थान का इतिहास

नैणसी री ख्यात

नैणसी री ख्यात

मुहता नैणसी जोधपुर का निवासी था। यह जोधपुर के महाराजा जसवन्त सिंह ( प्रथम ) का समकालीन था। इसका पिता जयमल भी राज्य में उच्च पदों पर कार्य कर चुका था। नैणसी ने जोधपुर राज्य के दीवान पद पर कार्य किया और अनेक युद्धों में भी भाग लिया, उसे इतिहास में बड़ी रूचि थी।

नैणसी री ख्यात : लेखक के रूप में नैणसी

नैणसी ने दो महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखे हैं। एक का नाम मुहता नैणसी री ख्यात और दूसरे का नाम है मारवाङ रा परगनां री विगत। इन दोनों में से ख्यात ग्रंथ अधिक प्रसिद्ध है। बाद के इतिहास लेखकों के लिये यह ख्यात सबसे अधिक लोकप्रिय एवं सहायक सिद्ध हुई है। इस ख्यात में ऐसी अनेक घटनाओं का विवरण है जो समकालीन या बाद में लिखे गये ख्यात ग्रंथों में नहीं मिलती।

नैणसी री ख्यात

आचार्य बद्रीनाथ साकरिया ने नैणसी की ख्यात की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार बतलाई हैं-

  • नैणसी की ख्यात की भाषा, राजस्थानी भाषाओं और बोलियों में सबसे अधिक सशक्त और विकसित मारवाङी भाषा है, जो पश्चिमी राजस्थानी का विशिष्ट रूप है।
  • नैणसी की ख्यात में छोटे-छोटे प्रसंगों के खंडों को अलग-अलग नामों से लिखा गया है, जो घटना-प्रसंग के परिणाम और उनके विषय का प्रतिपादन करते हैं, जैसे – वारता, हकीकत, साख, पीढियावली, हवालो इत्यादि।
  • स्थान की स्थिति को सही रूप में संकेतित करने के लिये नैणसी ने अपनी ख्यात में आठ दिशाओं के मध्य को राजस्थानी साहित्य की आठ विशेष दिशाओं का प्रयोग किया है।
  • जितने भी ख्यात ग्रंथ लिखे गये हैं वे प्रायः एक राजवंश या एक राज्य विशेष के वर्णन तक ही सीमित हैं, किन्तु नैणसी की ख्यात की यह अक अद्वितीय विशेषता है, कि वह ऐसी सीमा में बंधी हुई नहीं है। उसमें मध्यकालीन राजस्थान के सभी राज्यों और प्रदेशों के अलावा सिन्ध, गुजरात, मध्यभारत, महाराष्ट्र, हरियाणा इत्यादि देशों और उनके शासक एवं राठौङ, गौहिल, डाभी, सिसोदिया, हाङा, सोनगरा, बोङा, खींची, मोहिल, चीबा, यादव (भाटी), जाङेचा, चावङा, सोलंकी, बाघेला, झाला, दहिया इत्यादि क्षत्रियों की छत्तीस शाखाओं की उत्पत्ति के साथ विवेचन हुआ है जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। राज्यों के परस्पर के और मुगलों के साथ में हुये युद्धों का वर्णन और उनके संवत-मिति आदि का वर्णन ख्यात की अपनी अपूर्व विशेषता है।
  • सांस्कृतिक दृष्टि से नैणसी की ख्यात का अत्यन्त महत्त्व है। उसमें मंदिर, मठों, किलों आदि का निर्माण, भेंट, पूजा, बलि आदि के प्रकार, तीर्थों का वर्णन और उनका महत्त्व, तीर्थ यात्राओं के वर्णन सहित भी हैं। सगाई, विवाह के आठ प्रकारों का वर्णन, वीरों का मरणोत्सव, सतियों का जौहर, पतिव्रत, जातियों की उत्पत्ति, धर्म परिवर्तन, जातियों के रीति-रिवाज, धंधे, पर्व, त्यौंहार, माप, तौल, कर, मुद्राएँ इत्यादि सामाजिक, धार्मिक और गृहस्थ जीवन की अनेक विविध झाँकियों के इस वृहत ग्रंथ में स्थान-स्थान पर दर्शन होते हैं। इसी प्रकार जूझार, अपनी मौत मरने वाले, स्वामिद्रोही देशद्रोही, पूर्वजों के वैर का बदला लेने वालों के अनोखे वर्णन इस ख्यात में भरे पङे हैं। ऐतिहासिक राजधानियों के नगरों के निर्माण की खास मुहूर्त और प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुरुषों की जन्म-कुण्डलियाँ भी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • ख्यात में भौगोलिक वर्णन भी यथा प्रसंग उल्लिखित हैं, जिनमें नदियों के नाम, उनकी लंबाई, उनके मार्ग, पर्वतों के नाम, प्रदेश, जिले, परगने, गाँवों आदि का विस्तार व परस्पर की दूरी और उनकी स्थिति इत्यादि का वर्णन बङा ही महत्त्वपूर्ण है।
  • पीढियों का वृहत संकलन। इतना बङा संग्रह एक जगह कहीं नहीं मिलता। इनमें नामों के साथ उनकी लङाइयों का वर्ण, उनका तिथि-क्रम, उनकी वीरगति का समय, जागीरों पाने तथा खोने का समय आदि से इतिहास की टूटी हुई कङियों को जोङने में बहुत सहायता मिलती है।
  • नैणसी ने अपनी ख्यात में समाज राजनीति और इतिहास से जुङी हुई अनेक छोटी-मोटी महत्त्वपूर्ण घटनाओं का भी उल्लेख किया है जो जन जीवन में लोक साहित्य बन कर लोक-वार्ताओं के रूप में सामने आई है। इनके अलावा अनेक लोक व्यवहार में मुहावरे, कहावतें और आख्यान इत्यादि का प्रयोग भी किया गया है।
  • नैणसी की दूसरी कृति है, मारवाङ रा परगनां री विगत जो लगभग ख्यात के जितनी ही बङी है। इसमें नैणसी ने मारवाङ के उश समय के सभी परगने, परगनों के गाँव, गाँवों की आमदनी, जागीरी, ठिकाने, उनकी रेख-चाकरी, भूमि की किस्म, इक-साखिया, दु-साखिया, फसलों का हाल, तालाब, कुएँ, कोसीटे, अरहट, गाँवों के जातीवार घरों की संख्या और उनकी आबादी और कृषक आदि जातियों की स्थिति का विस्तृत विवरण दिया है। यह ग्रंथ प्रादेशिक होने पर भी जोधपुर राज्य के इतिहास के लिये अत्यधिक महत्त्व का है।

नैणसी और अबुल फजल

मुन्शी देवी प्रसाद ने नैणसी को राजपूताने का अबुल फजल कहा है। अबुल फजल सम्राट अकबर के नौरत्नों में से एक था। वह अकबर का प्रमुख दरबारी, सलाहकार, मित्र, सेनानायक तथा महान साहित्यकार था। उसने अकबरनामा तथा आइन-ए-अकबर नामक ग्रंथ लिखे जिनके ऐतिहासिक महत्त्व को सभी विद्वानों ने स्वीकार किया है।

नैणसी ने भी दो ग्रंथ लिखे। अबुल फजल ने अपने समय की राजनीति, कूटनीति, प्रशासन व्यवस्था तथा सैनिक अभियानों में महत्त्वपूर्ण भाग लिया था। नैणसी ने भी अपने राज्य तथा शासक की सेवा करते हुये इन गुणों का पूरा-पूरा परिचय दिया । अबुल फजल अपने सम्राट अकबर के पुत्र सलीम के षडयंत्र का शिकार बना और रास्ते में ही मारा गया।

नैणसी भी अपने मालिक के कोप का शिकार हुआ और मार्ग में ही मौत के घाट उतार दिया गया। इस प्रकार दोनों के व्यक्तिगत जीवन में काफी समानताएँ हैं।

इन सभी समानताओं के होते हुये भी दोनों के व्यक्तिगत तथा कृतित्व में बहुत अंतर है। अबुल फजल ने अकबर के आदेश से अपने ग्रंथों की रचना की और उसे मृत्यु पर्यन्त अपने सम्राट का संरक्षक उपलब्ध रहा। उसे अपने ग्रंथों के लिये आवश्यक सामग्री एवं साधन एकत्र करने की सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराई गयी थी।

इसके विपरीत नैणसी ने अपने इतिहास प्रेम एवं रुचि के कारण ऐसा किया। उसे अबुल फजल की भाँति अपने स्वामी का संरक्षण भी प्राप्त न हो पाया। उसने अपने ग्रंथ के लिये आवयश्यक सामग्री अपने ही व्यक्तित्व एवं प्रभाव से जुटाई। नैणसी का ध्येय अपने शासक तथा शासकीय घराने का एकांगी अथवा प्रशंसात्मक वर्णन करना नहीं था।

अबुल फजल ने अकबर की कमजोरियों तथा गलतियों पर पर्दा डालने का प्रयास किया है, परंतु नैणसी ने निष्पक्ष इतिहासकार की भाँति अपने शासकों की कमजोरियों तथा अवगुणों का भी उल्लेख किया है। अबुल फजल ने कहीं पर यह नहीं लिखा कि उसने अपने ग्रंथ की रचना करने में जो महत्त्वपूर्ण सामग्री मिली, वह किससे मिली।

नैणसी ने स्पष्ट रूप से लिखा है, कि उसने उदयपुर संबंधी जानकारी चारण आसिया गिरधर, चारण खेमराज और जॉझण बीटू से प्राप्त की। आमेर के कच्छवाहों की वंशावली भाट राजपण से और बून्दी का वृतांत रामचंद्र जगन्नयोत से प्राप्त किया । सिरोही के देवङा चौहानों का विवरण बाघेला रामसिंह से और बुन्देलों के बारे में चक्रसेन के संग्रह के पटवारियों तथा कानूनगो आदि से ऐतिहासिक वृतांत संग्रहीत किया था।।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
wikipedia : नैणसी

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