आधुनिक भारतइतिहासनेपोलियन बोनापार्टविश्व का इतिहास

महाद्वीपीय व्यवस्था किसे कहते हैं?

महाद्वीपीय व्यवस्था

महाद्वीपीय व्यवस्था (continental system)

टिलसिट की संधि के बाद इंग्लैण्ड के लिए यूरोप में कोई भी स्थान नहीं रहा, जहां से वह फ्रांस के विरुद्ध युद्ध कर सके। नेपोलियन ने इंग्लैण्ड को आर्थिक क्षेत्र में पराजित करने की एक नवीन योजना बनाई, जिसे महाद्वीपीय व्यवस्था कहते हैं। वह इस व्यवस्था द्वारा इंग्लैण्ड को व्यापार के क्षेत्र में हानि पहुंचाना चाहता था।

नेपोलियन बोनापार्ट की विश्व को देन

नेपोलियन का यह विश्वास था कि यदि इंग्लैण्ड का व्यापार बंद हो जायेगा तो वह संधि करने को विवश होगा। इस योजना की सफलता हेतु उसने योजनाबद्ध एवं कठोरतापूर्वक कार्य किया। नेपोलियन की यह भी अपेक्षा थी कि इंग्लैण्ड पर व्यापारिक बंधनों प्रतिबंधों के बाद इंग्लैण्ड के स्थान पर यूरोप में फ्रांस का व्यापार व उद्योग केन्द्र के रूप में विकास संभव हो सकेगा।

21 नवंबर, 1806 ई. को नेपोलियन ने बर्लिन अध्यादेश लागू करवाया, जिसमें नेपोलियन ने समस्त अंग्रेजी द्वीपों के साथ व्यापार पर अवरोध की घोषणा की। यह भी आदेश दिया गया कि अंग्रेज व्यापारियों के माल को जब्त कर लिया जाय और अंग्रेजों को कैद किया जाय। फ्रांस और फ्रांस के मित्र राज्यों में इंग्लैण्ड के व्यापारिक जहाजों का प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया। नेपोलियन का उद्देश्य अंग्रेजी व्यापार का बहिष्कार कर इंग्लैण्ड को हानि पहुँचाना था।

प्रत्युत्तर में इंग्लैण्ड ने भी आर्डर्स इन कौंसिल जारी करके फ्रांस और उसके मित्र राज्यों के लिए बंदरगाहों के अवरोध की घोषणा की। सभी तटस्थ देशों को भी इन देशों के साथ व्यापार हेतु मना किया। इन आदेशों का पालन न करने वाले जहाजों को पकङ लेने की चुनौती दी गयी। 25 जनवरी, 1807 ई. को वार्सा आदेश द्वारा प्रशा व हनोवर के समुद्र तटों पर भी इंग्लैण्ड के व्यापार के विरुद्ध प्रतिबंध लगा दिये गए। माल से लदे अंग्रेजी जहाज विभिन्न बंदरगाहों पर खङे रहे, अनेक को जब्त कर लिया गया।

मिलान आदेश 17 सितंबर, 1807 ई. में यह कहा गया कि कोई भी जहाज अपने माल की तलाशी अंग्रेजों को नहीं करने देवें, अन्यथा उसका माल जब्त कर लिया जायेगा। 18 अक्टूबर, 1810 ई. के फोन्टेबलो-आदेश में कहा गया कि इंग्लैण्ड के जब्त सारे माल को जला दिया जाये।

नेपोलियन ने इन सभी आदेशों के माध्यम से इंग्लैण्ड को आर्थिक क्षेत्र में पूरी तरह से परास्त करने का भरसक प्रयास किया। महाद्वीपीय योजना की सफलता के लिए नेपोलियन को पोप व रूस से मित्रता खोनी पङी। पुर्तगाल पर आक्रमण करना पङा। नेपोलियन की स्पेन के साथ शत्रुता हो गयी फिर भी महाद्वीपीय व्यवस्था सफल नहीं हो सकी। 1807 ई. से 1814 ई. तक यह नवीन प्रकार का संघर्ष फ्रांस तथा इंग्लैण्ड के मध्य चलता रहा।

महाद्वीपीय व्यवस्था की असफलता के कारण

  • विश्व में विशाल औपनिवेशिक साम्राज्य संपन्न इंग्लैण्ड को यूरोप का व्यापार बंद हो जाने से कोई विशेष फर्क नहीं पङता था।
  • सभी यूरोपीय देस इस योजना को स्वीकार करने को विवश थे। उनके कष्ट, राष्ट्रीय हानि और अपमान को नेपोलियन नहीं समझ पाया।
  • फ्रांस में निर्मित माल महँगा और निम्न कोटि का था। कुछ वस्तुओं पर चुंगी चुकाकर फ्रांस में लाने की अनुमति दी गयी, लेकिन रूस को अनुमति नहीं दी गयी, जिससे यूरोप के देश क्रोधित हुये।
  • यह अव्यावहारिक योजना थी। अनेक वस्तुयें इंग्लैण्ड द्वारा ही पूर्ति की जाने वाली थी। नेपोलियन इस योजना में इतना उलझ गया कि उसका वास्तविक लक्ष्य ही छूट गया था।
  • अन्यान्य संप्रभु देशों पर नेपोलियन को निरंकुश आदेश अधिक समय तक थोपा जाना संभव नहीं था। सर्वत्र उसके विरुद्ध विद्रोह की भावना जन्म ले रही थी।

Related Articles

error: Content is protected !!