प्राचीन भारतइतिहासकुषाण वंशस्रोत

कुषाण राजवंश का इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत

कुषाण वंश के प्रारंभिक इतिहास की जानकारी के लिये हमें मुख्यतः चीनी स्रोतों पर निर्भर रहना पङता है। चीनी ग्रंथों में पान-कु कृत सिएन-हान-शू तथा फान-ए कृत हाऊ-हान-शू महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।

पान-कू के ग्रंथ से यू-ची जाति के हूण, शक तथा पार्थियन राजाओं के साथ संघर्ष का विवरण मिलता है। इस विवरण के साथ ही यह ज्ञात होता है, कि यू-ची जाति का पाँच कबिलों में विभक्त थी। फान-ए के ग्रंथ हाऊ-हान-शू से 25 ईस्वी से लेकर 125 ईस्वी तक यू-ची जाति के इतिहास का पता चलता है।

YouTube Video

इन विवरणों से पता चलता है, कि यू-ची कबीला कुई-शुआँग (कुषाण) सबसे शक्तिशाली था, जिसके सरदार कुजुल कडफिसेस ने ही सर्वप्रथम भारत में स्वर्ण सिक्के प्रचलित करवाये थे। चीनी स्रोतों तथा सिक्कों से कडफिसेस राजाओं की विजयों तथा राज्य – विस्तार की सूचना मिलती है।

कनिष्क तथा उनके उत्तराधिकारियों का इतिहास हमें मुख्य रूप से तिब्बती बौद्ध, ग्रंथों के चीनी अनुवाद तथा चीनी यात्रियों – फाहियान तथा हुएनसांग के विवरण से ज्ञात करते हैं। तिब्बती स्रोतों से पता चलता है, कनिष्क खोतान के राजा विजयकीर्ति का समकालीन था तथा उसी की सहायता से उसने साकेत पर विजय की थी।

संस्कृत बौद्ध ग्रंथों – श्रीधर्मपिटकनिदानसूत्र, संयुक्तरत्नपिटक तथा कल्पनामंडिटीका के चीनी भाषा में हुए अनुवाद से हम कनिष्क की पूर्वी तथा उत्तरी भारतीय विजयों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। कनिष्क तथा उसके वंशजों की विजयों एवं साम्राज्य विस्तार का ज्ञान हमें उनके बहुसंख्यक लेखों तथा सिक्कों से भी प्राप्त होता है। कौशांबी, सारनाथ, मथुरा, सुई विहार, जेदा, मनिक्याल आदि स्थानों से कनिष्क के लिख मिलते हैं।

उसके उत्तराधिकारियों – हुविष्क तथा कनिष्क द्वितीय के लेख क्रमशः मथुरा तथा आरा (अटक) से प्राप्त होते हैं। उत्तर-प्रदेश, बिहार तथा बंगाल के विभिन्न स्थानों से कनिष्क तथा उसके वंशजों के सिक्के प्राप्त हुये हैं। अभिलेखों तथा सिक्कों के प्रसार से जहाँ एक ओर उका साम्राज्य विस्तार सूचित होता है, वहीं दूसरी ओर राज्य की आर्थिक समृद्धि तथा धर्म के विषय में भी जानकारी मिलती है। चीनी यात्री फाहियान तथा हुएनसांग के विवरणों से भी कनिष्क के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

इन सभी स्रोतों के अलावा तक्षशिला (पाकिस्तान) तथा बेग्राम (अफगानिस्तान) से की गई खुदाइयों से भी कुषाण इतिहास के पुनर्निर्माण के लिये उपयोगी सामग्रियाँ मिलती हैं। तक्षशिला की खुदाई 1915 ईस्वी में सर जॉन मार्शल द्वारा करवायी गयी थी। यहाँ से कुषाणकालीन सिक्के तथा स्मारक मिलते हैं। इन्हीं के आधार पर यह निश्चित करने में सहायता मिली कि कनिष्क कुल ने कडफिसेस कुल के बाद शासन किया था।

बेग्राम में पहले हाकिन तथा फिर घिर्शमन द्वारा खुदाई करवायी गयी। यहाँ से कनिष्क, हुविष्क तथा वासुदेव के सिक्के प्राप्त हुए हैं। इनके आधार पर कनिष्क कुल के इतिहास से संबंधित जानकारी प्राप्त होती है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!