इतिहासप्राचीन भारतशाकंभरी का चौहान वंश

मुहम्मद गौरी का आक्रमण और चौहान साम्राज्य का अंत

चौहान शासक पृथ्वीराज चौहान के शासन काल की अत्यधिक महत्त्वपूर्ण घटना मुहम्मद गौरी का आक्रमण है। पृथ्वीराज तृतीय के पूर्वज विग्रहराज चतुर्थ ने कई बार म्लेच्छों (मुसलमानों) को पराजित कर अपनी वीरता का परिचय दिया था।

हम्मीर महाकाव्य से पता चलता है, कि पृथ्वीराज ने भी मुसलमानों को मिटा देने की प्रतिज्ञा की थी। लेकिन राजनीतिक सूझ-बूझ और दूरदर्शिता की कमी के कारण वह अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सका। गजनी में अपनी स्थिति को मजबूत करने के बाद मुहम्मद गौरी ने 1178 ईस्वी में गुजरात पर आक्रमण किया। चालुक्य नरेश भीम ने उसे काशह्रद के युद्ध में बुरी तरह पराजित कर दिया। इस समय पृथ्वीराज तटस्थ रहा तथा उसने चालुक्य नरेश की कोई सहायता नहीं की। इसके पूर्व गौरी ने नाडोल के चौहान राज्य पर भी आक्रमण कर लूट-पाट की थी। किन्तु पृथ्वीराज ने उन्हें भी कोई सहायता नहीं दी। गौरी ने भारतीय शासकों के आपसी मनमुटाव एवं संघर्ष का लाभ उठाते हुए अपना अभियान प्रारंभ किया। पृथ्वीराजविजय से पता चलता है,कि गुजरात पर आक्रमण के पूर्व उसने पृथ्वीराज के पास समर्पण करने तथा उसे अपना सम्राट मान लेने का संदेश एक दूत के माध्यम से भिजवाया था। इस पर पृथ्वीराज अत्यंत कुपित हुआ तथा उसने गौरी की प्रतिष्ठा धूल में मिला देने की प्रतिज्ञा की। भारतीय स्रोतों के अनुसार 1191 ईस्वी में तराइन के प्रथम युद्ध के पूर्व दोनों में कई युद्ध हुए थे तथा हर बार तुर्क आक्रांता को पराजित होना पङा था। लेकिन मुसलमान लेखक केवल दो युद्धों का ही उल्लेख करते हैं।

1186 ईस्वी में पंजाब पर अधिकार कर लेने के बाद पृथ्वीराज तथा मुहम्मद गौरी की सीमायें एक दूसरे से मिलने लगी। गौरी को पता था कि अजमेर के चाहमानों को पराजित किये बिना भारत विजय का उसका स्वप्न पूरा नहीं हो सकता। अतः उसने बाद के 6 वर्षों को चाहमान शक्ति को कुचलने की योजना बनाने तथा तैयारी करने में ही लगाये। दोनों सेनाओं के बीच 1191 ईस्वी में तराइन (हरियाणा के करनाल जिले में स्थित आधुनिक तरावङी) के मैदान में खुला संघर्ष हुआ, जिसे तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता है। तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराजविजय ने मुहम्मद गौरी को बुरी तरह पराजित किया था। पृथ्वीराज के सामंत गोविंदराज ने तराइन के प्रथम युद्ध में गौरी को बुरी तरह घायल कर दिया। उसकी सेना में भगदङ मच गयी तथा तुर्क सैनिक भागते हुये अपने क्षेत्र मुल्तान में सुरक्षित पहुंच गये।

इस युद्ध में पृथ्वीराज तथा उसके बहादुर सैनिकों ने रणकुशलता एवं सैनिक चतुरता प्रदर्शित की थी।

इस युद्ध में पृथ्वीराज की एक भयंकर भूल यह हुई की उसने अपनी अदूरदर्शिता का परिचय दियी तथा भागती हुई मुसलमानी सेना का पीछा नहीं किया। मिनहाजुद्दीन हमें बताता है, कि पराजित होने के बाद गौरी की सेना बिना किसी कष्ट के स्वदेश लौट गयी तथा चौहानों ने उसे परेशान नहीं किया। जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने स्थिति का फायदा उठाया तथा दूसरे ही वर्ष 1192 ईस्वी में तराइन का द्वितीय युद्ध कर पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया।तथा पृथ्वीराज की हत्या कर दी गयी।

तराइन के प्रथम युद्ध के बाद की स्थिति

तराइन के प्रथम युद्ध के बाद पृथ्वीराज मुहम्मद गौरी की ओर से निश्चिंत हो गया। वह अपनी पत्नी संयोगिता में आसक्त हो गया। तथा रंगरेलिया मनाने लगा।वहीं दूसरी ओर मुहम्मद गौरी अपनी पराजय का बदला लेने एवं अपमान धोने के लिये निरंतर तैयारियों में जुट गया। पृथ्वीराज से अपमानित कई भारतीय शासक मुहम्मद गौरी की ओर चले गये जैसे जमून के राजा विजयदेव ने अपने पुत्र नरसिंहदेव को गोरी की सेना के साथ लङने के लिये प्रस्तुत किया। घतैक के राजा ने भी उसकी सहायता की।

गहङवाल शासक जयचंद ने भी पृथ्वीराज चौहान का कोई सहयोग नहीं किया।

तराइन के द्वितीय युद्ध के परिणाम

पृथ्वीराज चौहान की पराजय तथा उसकी हत्या कर दी गयी। मुसलमानों ने राजपूत-सेना का भीषण संहार किया। उसके बाद में उसकी राजधानी अजमेर को आक्रांताओं ने ध्वस्त कर दिया तथा वहाँ के निवासियों को मौत के घाट उतार दिया। मुसलमान सेनाओं ने चौहान राज्य के सभी प्रमुख नगरों पर अपना अधिकार कर लिया। इस प्रकार पृथ्वीराज की राजनीतिक भूल एवं अदूरदर्शिता के परिणामस्वरूप शक्तिशाली चौहान साम्राज्य धराशायी हो गया। तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास के निर्णायक युद्धों में माना जाता है। इसने भारतीय भूमि में मुस्लिम सत्ता स्थापित होने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

ऐसा प्रतीत होता है,कि पृथ्वीराज की पराजय के बाद भी कुछ समय तक अजमेर में चौहान सत्ता बनी रही तथा गौरी ने संपूर्ण प्रदेश को अपने साम्राज्य में शामिल नहीं किया। उसने पृथ्वीराज के अवयस्क पुत्र को वहां का राजा बनाया जो उसकी अधीनता में कार्य करता रहै। इसके विपरीत हम्मीर काव्य तथा विरुद्धविधिध्वंसक के अनुसार पृथ्वीराज के बाद उसका भाई हरिराज कुछ समय के लिये राजा बना। उसने अजमेर पर आक्रमण कर गौरी द्वारा नियुक्त पृथ्वीराज के अवयस्क पुत्र से सिंहासन छीनने का प्रयास किया। किन्तु गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसे पराजित किया। अपने सम्मान की रक्षा के लिये हरिराज ने अजमेर के दुर्ग में आत्मदाह कर लिया। उसके बाद 1194 ईस्वी में मुलमानों का अजमेर पर अधिकार हो गया।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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