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राज्यों का पुनर्गठन,1956 भाषायी आधार पर

राज्यों का पुनर्गठन

राज्यों का पुनर्गठन (reorganization of states)

देशी रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने के बाद सरदार बल्लभभाई पटेल ने छोटी-बङी रियासतों को मिला कर उनके संघ बनाए। जो रियासतें इस बात के लिए तैयार नहीं हुई, उनको या तो पास के प्रान्त में मिला दिया गया या उनको केन्द्रीय क्षेत्र बना दिया गया जिनका प्रशासन केन्द्र चलायेगा।

भाषायी आधार पर राज्यों के गठन की मांगों के जोर पकड़ने पर केंद्र सरकार द्वारा 29 दिसंबर, 1953 को ‘राज्य पुनर्गठन आयोग‘ का गठन किया गया। 7वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा ‘राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956‘ को संसद द्वारा पारित किया गया।

राज्यों का पुनर्गठन

चार प्रकार के राज्य

इस तरह से स्वतंत्रता के बाद भारत में चार प्रकार के राज्य बन गए। संविधान में प्रान्त शब्द हटा दिया गया और देशी रियासतों तथा प्रान्तों दोनों के लिए राज्य शब्द का ही प्रयोग किया गया।

‘क’ ‘ख’ श्रेणी के राज्यों में पूर्ण उत्तरदायी सरकार तथा ‘ग’ श्रेणी के राज्यों में कुछ नियंत्रित उत्तरदायी सरकार स्थापित की गयी। ‘घ’ श्रेणी के राज्यों में कोई उत्तरदायी सरकार स्थापित नहीं की गयी, बल्कि इनका प्रशासन केन्द्र के अधीन ही रखा गया।

एकीकरण तथा लोकतन्त्रीकरण का महत्त्व – इस तरह से भारत में देशी रियासतों और प्रान्तों को मिलाकर एक बलशाली संघ स्थापित किया गया और देश की एकता के लिए जो खतरा अंग्रेजों ने उत्पन्न कर दिया था, उसे सरदार बल्लभभाई पटेल ने अपने अथक परिश्रम से दूर किया। इसीलिए स्वर्गीय बल्लभाई पटेल ने कहा था कि – भारत की भौगोलिक, राजनीतिक और आर्थिक एकता का आदर्श जो शताब्दियों तक दूर का स्वप्न रहा और स्वतंत्रता के बाद भी वैसा ही दूर और कठिनता से प्राप्त होने वाला प्रतीक होता था, अब वह पूर्णरूप से प्राप्त हो गया है।

माइकल ब्रेचर ने इस एकीकरण का महत्त्व बताते हुए कहा है, केवल एक वर्ष में लगभग 5,00,000 वर्गमील क्षेत्र और 9 करोङ आबादी भारतीय संघ में मिल गयी। यह एक महान रक्तहीन क्रांति थी जिसकी तुलना कहीं भी इस शताब्दी में नहीं मिलती और इसकी तुलना उन्नीसवीं शताब्दी में बिस्मार्क द्वारा जर्मनी में और केसल द्वारा इटली में किए हुए एकीकरण से की जा सकती है।

श्री नेहरू ने ठीक ही कहा कि, एक इतिहासकार जो पीछे के इतिहास को देखता है, निःसंदेह मानेगा कि भारत के इतिहास की मुख्य क्रमावस्था आज भारत में राज्यों का एकीकरण है। इस बाहरी एकीकरण से अधिक महत्त्व की बात यह है कि आंतरिक एकीकरण हुआ है अर्थात् राज्यों में लोकतंत्रीय संस्थाओं का विकास और वृद्धि हुई है।

भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन (1956)

1956 के भारतीय राज्यों के पुनर्गठन का विवेचन हम निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर कर सकते हैं-

भाषाओं के आधार पर प्रांतों के निर्माण की माँग

हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भाषा के आधार पर प्रांतों को बनाने के लिए काफी माँग की गयी। स्वतंत्रता के बाद भाषा के आधार पर प्रांतों को दुबारा बनाने की माँग भी बहुत बल पकङ गयी, क्योंकि स्वयं कांग्रेस 1920 के जयपुर प्रस्ताव के अनुसार ऐसा करने के लिए वचनबद्ध थी, परंतु फिर भी भारत सरकार ने स्वतंत्रता के बाद तीन-चार वर्ष तक लोगों की इस माँग की तरफ कोई विशेष ध्यान नहीं दिया, क्योंकि कांग्रेस के कुछ बङे नेताओं को यह भय उत्पन्न हो गया था कि इससे विघटनकारी प्रवृत्तियों को बल मिलेगा।

इसलिए नेहरूजी ने इस माँग को उत्साहित नहीं किया, परंतु मद्रास राज्य में आंध्र की स्थापना के लिए आंदोलन तेज हो गया और वहाँ पर दंगे फैल गए। अंत में परिस्थिति से विवश होकर भारत सरकार को 1 अक्टूबर,1993 ई. में मद्रास के कुछ तेलगू-भाषी भागों को काट कर एक नये आंध्र राज्य की स्थापना करनी पङी।

राज्य पुनर्गठन आयोग की नियुक्ति

भाषा के आधार पर आंध्र की स्थापना से सारे देश में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग बहुत तेज हो गयी। अतः दिसंबर, 1953 ई. में प्रधानमंत्री ने पार्लियामेंट में इस हेतु एक घोषणा की, जिसमें कहा गया कि भारत सरकार राज्यों के पुनर्गठन के बारे में शीघ्र ही एक आयोग नियुक्त करेगी। हमारे प्रधानमंत्री ने इस घोषणा के बाद शीघ्र ही एक राज्य पुनर्गठन आयोग नियुक्त कर दिया, जिसके चेयरमैन फजल अली तथा सदस्य ह्रदयनाथ कुंजरू और सरदार पणिक्कर थे। अक्टूबर,1955 ई. में इस आयोग ने अपना एक विस्तृत प्रतिवेदन (रिपोर्ट) दिया।

संक्षेप में, राज्य पुनर्गठन आयोग ने निम्नलिखित 16 राज्यों की सिफारिश की –

1) पंजाब ( हिमाचल प्रदेश और पंजाब), 2) उत्तर प्रदेश, 3) बिहार, 4) बंगाल, 5) असम, 6) उङीसा, 7) आध्र, 8) तमिलनाडु, 9) कर्नाटक, 10) केरल, 11) हैदराबाद(तैलंगाना), 12) बंबई, 13) विदर्भ, 14) मध्यप्रदेश, 15) राजस्थान, 16) जम्मू-कश्मीर

इन 16 राज्यों के अलावा आयोग ने निम्नलिखित तीन केन्द्रीय क्षेत्रों की सिफारिश की – 1) दिल्ली, 2) मणिपुर, 3) अंडमान-निकोबार द्वीप।

राज्य पुनर्गठन आयोग ने अलग महाराष्ट्र और अलग गुजरात की माँग को अस्वीकार कर दिया। इसी प्रकार आयोग ने उत्तर-प्रदेश, उङीसा, असम आदि राज्यों की सीमाओं में किसी प्रकार के परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया। हाँ, उसने राजप्रमुख के पद को समाप्त करने की सिफारिश अवश्य की थी।

राज्य पुनर्गठन अधिनियम जुलाई, 1956

राज्य पुनर्गठन आयोग ने अलग महाराष्ट्र और गुजरात की माँगों को स्वीकार नहीं किया था। उत्तर-प्रदेश, उङीसा, असम इत्यादि की सीमाओं में परिवर्तन का कोई सुझाव स्वीकार नहीं किया गया था। कमीशन की रिपोर्ट के बाद बंबई राज्य में बहुत झगङे फैले। महाराष्ट्र के लोग अलग और गुजरात के लोग सौराष्ट्र को गुजरात में मिलाकर महागुजरात की माँग करने लगे। तत्कालीन केन्द्रीय वित्त मंत्री देशमुख ने अपना त्याग-पत्र दे दिया, क्योंकि वे नेहरू से अलग महाराष्ट्र की माँग स्वीकार न करा सके।

राज्य पुनर्गठन अधिनियम, (1956)

संसद ने जुलाई, 1956 ई. में एक राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास कर दिया। इसके अनुसार पंजाब में पेप्सू को मिला दिया गया, परंतु हिमाचल प्रदेश को केन्द्रीय क्षेत्र बना दिया गया। बंबई में विदर्भ और हैदराबाद का मराठवाङा प्रदेश शामिल कर दिया गया। हैदराबाद के कुछ भाग को मैसूर में तथा तेलंगाना को आंध्र में मिला दिया गया।

कमीशन की सिफारिशों के अनुसार मध्य प्रदेश और केरल राज्य बना दिए गए। भोपाल को मध्य प्रदेश में और अजमेर को राज्यस्थान में मिला दिया गया। राजप्रमुखों का पद और ‘क’, ‘ख’,’ग’ तथा ‘घ’ श्रेणी के राज्य का अंतर समाप्त कर दिया गया। बिहार कुछ जिले बंगाल में मिला दिए गए।

इस एक्ट के अनुसार भारत में निम्नलिखित 14 राज्य स्थापित किए गए – 1.) जम्मू तथा कश्मीर 2.) पंजाब, 3.) उत्तर प्रदेश, 4.) बिहार, 5.) बंगाल, 6.) असम, 7.) उङीसा, 8.) आंध्र, 9.) तमिलनाडु, 10.) केरल, 11.) मैसूर, 12.) बंबई, 13.) मध्य प्रदेश, 14.) राजस्थान।

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित केन्द्रीय क्षेत्र बनाए गए – 1.) हिमाचल प्रदेश, 2.) दिल्ली, 3.) मणिपुर, 4.) त्रिपुरा, 5.) अण्डमान तथा निकोबार द्वीप तथा, 6.) लक्षद्वीप तथा मिनिकाय द्वीप

महाराष्ट्र तथा गुजरात के नये राज्यों की स्थापना – राज्य के पुनर्गठन के बाद महाराष्ट्र में महाराष्ट्र समिति द्वारा और गुजरात में महागुजरात समिति द्वारा अलग महाराष्ट्र और गुजरात की स्थापना के लिए पूरे जोरों से आंदोलन जारी रहा। 1 मई, 1960 को विवश होकर भारत सरकार ने बंबई राज्य का बँटवारा करके महाराष्ट्र और गुजरात नामक दो नये राज्यों की स्थापना कर दी।

गोवा, दमन तथा दीव की मुक्ति – दिसंबर, 1961 में भारतीय सेनाओं ने पुर्तगाली बस्तियों पर अधिकार कर लिया। 20 दिसंबर, 1961 को गोवा, दमन तथा दीव का शासन केन्द्रीय सरकार ने अपने हाथों में ले लिया।

नागालैण्ड की स्थापना – 1962 में नागालैण्ड राज्य की स्थापना की गयी।

हरियाणा राज्य की स्थापना – एक नवंबर, 1966 को पंजाब का विभाजन हुआ तथा हरियाणा के नये राज्य की स्थापना हुई।

फरवरी, 1980 में 22 राज्य तथा 9 केन्द्र शासित राज्य थे।

वर्तमान व्यवस्था – वर्तमान में 28 राज्य (प्रांत) तथा 7 केन्द्र शासित इकाइयाँ हैं जो निम्नलिखित हैं –

28 राज्य –

  • 1.) अरुणाचल
  • 2.) असम
  • 3.) आंध्र प्रदेश
  • 4.) उङीसा
  • 5.) उत्तर प्रदेश
  • 6.) कर्नाटक
  • 7.) केरल
  • 8.) गुजरात
  • 9.) गोआ
  • 10.) जम्मू कश्मीर
  • 11.) तमिलनाडु
  • 12.) त्रिपुरा
  • 13.) नागालैण्ड
  • 14.) पंजाब
  • 15.) पश्चिमी बंगाल
  • 16.) बिहार,
  • 17.) मणिपुर
  • 18.) मध्य प्रदेश
  • 19.) महाराष्ट्र
  • 20.) मेघालय
  • 21.) मिजोरम
  • 22.) राजस्थान,
  • 23.) सिक्किम
  • 24.) हरियाणा,
  • 25.) हिमाचल प्रदेश
  • 26.) छत्तीसगढ
  • 27.) झारखंड
  • 28.) उत्तरांचल

7 केन्द्र शासित इकाइयाँ

  1. अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह
  2. चंडीगढ
  3. गोवा, दमन और दीव
  4. दादरा तथा नगर हवेली,
  5. पाण्डिचेरी,
  6. लक्षद्वीप
  7. दिल्ली

निष्कर्ष – इस विवरण से स्पष्ट होता है कि 1956 में भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया। लेकिन यह पुनर्गठन 1956 में पूरा तथा अंतिम नहीं रहा। इसके बाद भी यह प्रक्रिया जारी है।

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