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अलीनगर की संधि कब की गयी

अलीनगर की संधि –

अलीनगर की संधि (Treaty of Alinagar) पर 9 फरवरी 1757 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के रॉबर्ट क्लाइव और बंगाल के नवाब मिर्जा मुहम्मद सिराज उद दौला के बीच हस्ताक्षर हुआ था।

अलीनगर कलकत्ता को दिया गया अल्पकालिक नाम था। जिसे नवाब ने अपने कब्जे में लेने के बाद दिया था। नवाब ने कलकत्ता में अंग्रेजी किले पर कब्जा कर लिया था, लेकिन पीछे से अफगानों के खतरे और अंग्रेजों की सैन्य ताकत का सामना करते हुए, उन्होंने संधि पर हस्ताक्षर किया था।

अलीनगर की संधि

कासिम बाजार तथा कलकत्ता की पराजयों का समाचार जब मद्रास पहुँचा तो वहाँ के अंग्रेज अधिकारी अत्यधिक उत्तेजित हो उठे। वे इतनी आसानी से अपनी पराजय स्वीकार करने अथवा नवाब से क्षमायाचना करने के लिये तैयार नहीं थे। वे तो शस्त्र-बल से नवाब को झुककर अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम करने के पक्ष में थे। क्योंकि यदि वे ऐसा नहीं करते तो भारतीय राजनीतिक वर्चस्व कायम करने के पक्ष में थे। क्योंकि यदि वे ऐसा नहीं करते तो भारतीय राजनीति में उनकी प्रतिष्ठा धूल में मिल सकती थी और इसका लाभ उठाकर उनके प्रतिद्वन्द्वी फ्रांसीसी पुनः जोर-शोर के साथ उनके विरुद्ध उठ खङे हो सकते थे। अतः मद्रास कौंसिल की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि क्लाइव के नेतृत्व में कासिम बाजार और कलकत्ता पर आक्रमण करने तथा उन पर पुनः अधिकार करने के लिये एक शक्तिशाली सेना बंगाल भेजी जाए। क्लाइव की सहायता के लिए जल सेनानायक वाट्सन को नियुक्त किया गया। मद्रास कौंसिल ने क्लाइव को यह भी आदेश दिया कि बंगाल के मौजूदा नवाब को हटाने का पूरा-पूरा प्रयास किया जाए और इस संबंध में उसे स्वतंत्र रूप से कार्य करने की पूरी स्वतंत्रता दी गयी। सिराजुद्दौला को यह आशा नहीं थी कि अंग्रेज इतनी जल्दी आ धमकेंगे और उसके विरुद्ध पुन: एक शक्तिशाली गुट खङा करके उसके विरुद्ध षङयंत्र रचने में सफल हो जायेंगे। इसीलिए उसने न तो कलकत्ता की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था की और न ही समुद्र तटों की निगरानी तथा सुरक्षा पर ध्यान दिया।

दिसंबर, 1756 के अंत में अंग्रेजों की सेना बंगाल पहुँच गई। क्लाइव और वाट्सन ने अपने विश्वस्त लोगों की सहायता से सिराजुद्दौला के प्रमुख अधिकारियों तथा सेठ-साहूकारों को अपनी ओर मिलाने तथा नवाब को सत्ताच्युत करने के लिए षङयंत्र रचना शुरू कर दिया। ऐसे लोगों में राजा माणिकचंद्र, व्यापारी अमीचंद, जगत सेठ बंधु, मीरजाफर आदि मुख्य थे। राजा माणिकचंद्र को भारी रिश्वत दी गयी और 2 जनवरी, 1757 ई. को अंग्रेजों ने कलकत्ता पर पुनः अधिकार कर लिया। अंग्रेजों की सेना ने हुगली और उसके आसपास के क्षेत्रों को लूटा। नवाब सिराजुद्दौला को जब इसकी सूचना मिली तो वह 40,000 सैनिकों के साथ कलकत्ता की तरफ बढा। 30 जनवरी, को क्लाइव ने नवाब की सेना पर अचानक आक्रमण करके उसे काफी हानि पहुँचाई। इससे नवाब का मनोबल गिर गया। उसके सलाहकारों ने भी अंग्रेजों के साथ संधि करने के लिए उस पर दबाव डाला। परिणामस्वरूप नवाब संधि के लिए तैयार हो गया। नवाब तत्काल संधि के लिए क्यों तैयार हो गया- यह अत्यंत विवाद का विषय है। एक मान्यता यह है कि नवाब को अपने दरबारियों तथा अधिकारियों पर संदेह हो गया था कि वे अंग्रेजों से मिले हुए हैं। दूसरी मान्यता यह है कि इन दिनों अफगानिस्तान के शासक अहमदशाह अब्दाली ने मुगल सम्राट को पराजित करके दिल्ली में डेरा डाल रखा था और यह अफवाह जोरों पर थी कि रुहेलों और अफगानों की सहायता से बंगाल पर आक्रमण करने वाला है। ऐसी स्थिति में नवाब ने अंग्रेजों के साथ संधि कर लेना ही उचित समझा। उधर, क्लाइव की स्थिति भी अधिक मजबूत न थी। वाट्सन के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण हो गये थे और कलकत्ता कौंसिल से उसे अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा था। अतः बिना कठिनाई के प्राप्त होने वाले यश से वंचित रहना क्लाइव को पसंद न था। इसलिए जब नवाब की तरफ से संधि का प्रस्ताव आया तो क्लाइव ने उसे स्वीकार कर लिया।

9 फरवरी, 1757 ई. को दोनों पक्षों में संधि हो गयी जो अलीनगर की संधि कहलायी, जिसकी मुख्य शर्तें निम्नलिखित थी-

  • मुगल बादशाह ने अंग्रेजों को जो व्यापारिक सुविधाएँ तथा विशेषाधिकार दिए थे, नवाब ने उनको मान्यता प्रदान कर दी।
  • बंगाल, बिहार और उङीसा में पहले की भाँति कंपनी का दस्तक के प्रयोग का अधिकार मान लिया गया।
  • जिन फैक्टरियों पर नवाब ने अधिकार कर लिया था, वे पुनः कंपनी को लौटा दी जायेंगी तथा कंपनी की सम्पत्ति तथा अंग्रेजों को जो हानि हुई – नवाब ने उसकी क्षतिपूर्ति का वचन दिया।
  • कंपनी को कलकत्ता में अपनी अच्छानुसार किलेबंदी करने की छूट मिल गई।
  • कंपनी को अपने निजी सिक्के ढालने का अधिकार भी दिया गया।
  • इन सभी सुविधाओं के बदले में कंपनी ने नवाब को उसकी सुरक्षा का आश्वासन दिया।

अलीनगर की संधि ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काफी लाभदायक और नवाब सिराजुद्दौला के लिए अपमानजनक थी। क्लाइव ने संधि के द्वारा कंपनी के लिए बहुत सारे अधिकार प्राप्त कर लिये। इस संधि के द्वारा उसने फ्रांसीसियों और नवाब के संभावित गठबंधन को रोक दिया, जिससे बंगाल में कंपनी की स्थिति अत्यधिक सुदृढ हो गयी। वस्तुतः अलीनगर की संधि पर दोनों पक्षों ने परिस्थितियों से विवश होकर हस्ताक्षर किये थे। अतः दोनों में पुनः संघर्ष होना तो अवश्यंभावी था।

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