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बौद्ध धर्म में विनय पिटक क्या है

विनय पिटक एक बौद्ध ग्रंथ है। यह तीन पिटकों में से एक है, जो त्रिपिटक बनाते हैं। इस ग्रंथ का प्रमुख विषय विहार के भिक्षु- भिक्षुणियों आदि हैं। इसमें संघ संबंधी नियमों, दैनिक आचार – विचारों व विधि – निषेधों का संग्रह है,अर्थात् इस ग्रंथ में बौद्ध संघ के नियम तथा विधान मिलते हैं।

विनय पिटक का शाब्दिक अर्थ है- अनुशासन की टोकरी।अतः हम कह सकते हैं कि विनय पिटक विनय से संबंधित नियमों का व्यवस्थित संग्रह है।

इसके 4 भाग हैं –

  1. सुत्त विभंग
  2. खंद्दका
  3. परिवार / परिवार पाठ
  4. पत्तिमोक्ख (प्रतिमोक्ष)संहिता
  5. सुत्त विभंग-

 इसमें भिक्षु व भिक्षुणियों के लिये बनाये गये नियम, उपसंवदा, पावरणा, पातिमोक्ख, उपोसथ, वर्षावास का उल्लेख मिलता है।

      2.  खंद्दका-

यह दो भागों में विभाजित है- महावग्ग तथा चुल्लवग

खंद्यका में महात्मा बुद्ध के सारनाथ में दिये गये उपदेश के समय उपस्थित 5 ब्राह्मणों का उल्लेख मिलता है।

5 ब्राह्मणों को पंचवर्गीय ब्राह्मण कहा गया है, इनके नाम निम्नलिखित हैं-

कौण्डिन्य

भद्दीय

महानाम

अस्सणि

वज्र

खंद्दका में बिम्बिसार के बुद्ध से दीक्षा प्राप्त करने तथा बेलुवन विहार दान में देने, गृहपति(श्रेष्ठि) अनाथपिण्डक द्वारा जेतवन विहार दान, गणिका आम्रवन दान देने का उल्लेख मिलता है। इसी ग्रंथ में बुद्ध ने वैशाली के सात गुण बताये हैं।

    3. पत्तिमोक्ख(प्रतिमोक्ष)-

इसमें भिक्षुओं के लिये 7 प्रकार के अपराध बताये हैं। तथा भिक्षुणियों के लिये 6 अलग प्रकार के अपराध बताये गये हैं।

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