प्राचीन भारतइतिहासबौद्ध काल

बौद्ध साहित्य त्रिपिटक

बौद्ध साहित्य के दो भाग हैं –

1.) त्रिपिटक 2.) अनुपिटक ( त्रिपिटकों पर आधारित )।

त्रिपिटक बौद्ध साहित्य-

त्रिपिटक बौद्ध धर्म के पाली भाषा में लिखित प्रमुख ग्रंथ हैं। त्रिपिटक का शाब्दिक अर्थ है- तीन पिटारियां। यह बौद्ध धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ हैं, जिसमें भगवान बुद्ध के उपदेश संग्रहीत हैं।

इस ग्रंथ को विभिन्न भाषाओं में अनुवादित किया गया है। इस ग्रंथ में भगवान बुद्ध द्वारा बुद्धत्व प्राप्त करने के समय से लेकर महापरिनिर्वाण तक दिये हुए प्रवचनों का संग्रह है।

त्रिपिटकों को तीन भागों में विभाजित किया गया है। इनका रचना काल 100ई.पू. सं लेकर 500 ई.पू. तक है।

इस पिटक में बौद्ध संघ के नियम एवं विधान मिलते हैं।इसके 4 भाग हैं।

  1. सुत्त विभंग
  2. खंद्दका
  3. परिवार / परिवार पाठ
  4. पत्तिमोक्ख (प्रतिमोक्ष)

इस पिटक में महात्मा बुद्ध के उपदेश तथा विचार मिलते हैं। इसके 5 भाग हैं।

  1. दीघनिकाय
  2. मज्झिम निकाय
  3. संयुक्त निकाय
  4. अंगुत्तर निकाय
  5. खुदक्क निकाय
  • अभिधम्म पिटक-

इस पिटक में बौद्ध दर्शन की जानकारी मिलती है। इसकी रचना प्रश्नोत्तर शैली में है। इसके 7 भाग हैं।

  1. धम्म सङणि
  2. पुद्गलसञ्ञति
  3. धातुकथा
  4. यमक
  5. पट्ठन
  6. विभंग
  7. कथावत्थु(इसकी रचना तीसरी बौद्ध संगीति में मोगलिपुत्ततिस्स ने की थी।)

अनुपिटक बौद्ध साहित्य-

यह साहित्य त्रिपिटकों पर आधारित हैं। इसके भाग निम्नलिखित हैं-

  • महावस्तु

इस ग्रंथ से 16 महाजनपदों की जानकारी मिलती है। यह लाकोक्तरवादियों से संबंधित है।

लोकोक्तरवाद – दूसरी बौद्ध संगीति में उत्पन्न हुये मतभेद के समय बना वर्ग है , जो महासंघिका का भाग है।

  • दीपवंश, महावंश-

क्रमशः 4 व 5 वी. शताब्दी में श्रीलंका में दीपवंश तथा महावंश की रचना की गई।

ये त्रिपिटक पर आधारित ग्रंथ हैं।

  • वैपुल्य सुत्त (महायान सूत्र)-

महायान शाखा से संबंधित साहित्यों को सामूहिक रूप से वैपुल्य सूत्र कहा गया है। ये संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं। इनमें अपवाद स्वरूप मिलिन्दपन्हों  ऐसा है जो पालि भाषा में लिखा गया है।

          वैपुल्य सुत्त के ग्रंथ निम्नलिखित हैं-

  • अष्टसहस्रिक
  • ललितविस्तार
  • तथागत गुणगान
  • प्रज्ञापारमिता
  • सद्धर्मपुण्डरिक(यह ग्रंथ महायानीयों का सबसे प्राचीन ग्रंथ है।)
  • लंकावतार सूत्र
  • दशभूमीश्वर
  • समाधिराज
  • गण्डव्यूह
  • सूत्रालंकार
  • लंकावतारस सूत्र(यह ग्रंथ पहले हीनयान वर्ग में था जो आगे चलकर महायान वर्ग में शामिल हुआ।)

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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