प्राचीन भारतइतिहासबौद्ध काल

बौद्ध धर्म का दर्शन

बौद्ध दर्शन से अभिप्राय उस दर्शन से है, जो भगवान बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा विकसित किया गया तथा बाद में पूरे एशिया में उसका प्रसार हुआ।

दुःख से मुक्ति बौद्ध धर्म का प्रारंभ से ही मुख्य उद्देश्य रहा है। कर्म, ध्यान तथा प्रज्ञा इसके साधक रहे हैं।

बुद्ध के उपदेश तीन पिटकों में संकलित हैं-

  1. सुत्त पिटक
  2. विनय पिटक
  3. अभिधम्म पिटक

बौद्ध धर्म के प्रमुख दर्शन-

  • अनीश्वरवादी धर्म- बौद्ध धर्म ईश्वर की सत्ता नहीं मानता।
  • नास्तिक दर्शन/ धर्म – वेदों की प्रमाणिकता का खंडन करता है,अर्थात् वेदों में आस्था नहीं रखता।
  • वर्ण व्यवस्था का विरोध
  • यज्ञ, कर्मकांड, पशुबलि का विरोध
  • क्षणिकवाद / क्षणभंगुरवाद –
    • जीवन और जगत की प्रत्येक घटना का अस्तित्व क्षणमात्र है।
    • जीवन और जगत की प्रत्येक घटना प्रतिक्षण परिवर्तनशील है।
    • स्थिर कुछ भी नहीं है।
  • अनात्मवाद / नैरात्मवाद – यह बौद्ध धर्म का आत्मा संबंधी सिद्धांत है। इसके अनुसार आत्मा प्रतिक्षण परिवर्तनशील है तथा यह पंच स्कंधों का संघात(योग, जोङ) है।
    • अनात्मवाद का शाब्दिक अर्थ है(आत्मा का अस्तित्व न होना)। चूँकि बौद्ध धर्म में आत्मा को परिवर्तनशील माना गया है,अतः अन्य धर्मों में आत्मा के माने गये गुण (शाश्वत, नित्य, स्थाई, अजर, अमर आदि) समाप्त होते हैं । इस रूप में बौद्ध दर्शन में आत्मा संबंधी सिद्धांत को अनात्मवाद कहा गया है।
    • पंच स्कंद(रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा, संस्कार)। इनमें से 4 को(वेदना, विज्ञान, संज्ञा, संस्कार) नाम कहा गया है।
  • बौद्ध धर्म कर्म एवं पुनर्जन्म को स्वीकार करता है। तथा पुनर्जन्म के लिये कर्मों को उत्तरदायी मानता है।
  • प्रतीत्यसमुत्पाद एवं द्वादश निदान (12 उपचार)-

यह बौद्ध दर्शन का केन्द्रीय सिद्धांत है।

यह बौद्ध दर्शन का कारणता / कार्य – कारण सिद्धांत है। इसके अनुसार जीवन और जगत की प्रत्येक घटना एवं कार्य- कारण पर निर्भर रहते हैं।

12 निदान इस प्रकार हैं-

  1. अविद्या – (अज्ञान – कर्म – दुःख का मूल कारण)
  2. संस्कार
  3. विज्ञान – चेतना (भ्रूण) / जन्म
  4. नामरूप – आत्मा बनती है।
  5. षङायतन (सलायतन) – 6 इन्द्रिया
  6. स्पर्श
  7. वेदना
  8. तृष्णा
  9. उपादाान (तीव्र इच्छा)
  10. भव – जन्म गृहण करने की प्रवृति
  11. जाति – पुनर्जन्म की इच्छा
  12. जरा – मरण
  • मध्यमप्रतीपदा(मध्यममार्ग)-

मध्मप्रतीपदा बौद्ध धर्म का मूल सिद्धांत है,जो दो अतिवादी विचारों के बीच का मार्ग है। बौद्ध धर्म अतिवादी धर्म नहीं है। उदारहण जीवन में अत्यधिक दुः ख भी नहीं तो अत्यधिक सुख भी नहीं होना चाहिए।

  • शून्यवाद-(माध्यमिक शून्यवाद)

महायान बौद्ध धर्म से संबंधित सिंद्धांत । यह सिद्धांत नागार्जुन ने दिया था।

प्रत्येक घटना एवं कार्य – कारण पर निर्भर होने के कारण शुन्य हैं। अर्थात् उनका संबंध स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।

  • योगाचार विज्ञानवाद-

मौत्रेयनाथ ने इसकी स्थापना की थी। असंग इसके विस्तारक थे। यह सिद्धांत महायान बौद्ध धर्म से संबंधित था।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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