परमार शासक भोज की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
भारतीय इतिहास में परमार राजा भोज की ख्याति उसकी विद्वता तथा विद्या एवं कला के उदार संरक्षक के रूप में अधिक है।
उदयपुर लेख में कहा गया है, कि भोज ने सब कुछ साधा, संपन्न किया, दिया और जाना, जो अन्य किसी के द्वारा संभव नहीं था। इससे अधिक कविराज भोज की प्रशंसा क्या हो सकती है। उसने अपनी राजधानी धारा नगर में स्थापित की तथा उसे विविध प्रकार से अलंकृत करवाया। यह विद्या तथा कला का सुप्रसिद्ध केन्द्र बन गया। यहाँ अनेक महल एवं मंदिर बनवाये गये, जिनमें सरस्वती मंदिर सर्वप्रमुख था।
भोज स्वयं विद्वान था तथा उसकी उपाधि कविराज की थी। उसने ज्योतिष, काव्य शास्र, वास्तु आदि विषयों पर महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की तथा धारा के सरस्वती मंदिर में एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्यालय की स्थापना करवायी।
उसकी राजसभा पंडितों एवं विद्वानों से अलंकृत थी। उसकी राजधानी धारा विद्या तथा विद्वानों का प्रमुख केन्द्र थी। आइने-अकबरी के अनुसार उसकी राजसभा में पाँच सौ विद्वान निवास करते थे।
भोज की रचनाओं में सरस्वतीकण्णभरण, श्रंगारप्रकाश, प्राकृत व्याकरण, कूर्मशतक, श्रृंगारमंजरी, भोजचंपू, युक्तिकल्पतरु, समरांगणसूत्रधार, तत्वप्रकाश, शब्दानुशासन, राजमृगांक आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ये विविध विषयों से संबंधित हैं। युक्तिकल्पतरु एवं समरांगणसूत्रधार वास्तुशास्र के ग्रंथ हैं। इनसे पता चलता है, कि भोज की काव्यात्मक प्रतिभा उच्चकोटि की थी।
राजा भोज दानशील था उसकी दानशीलता के लिये इतिहास में एक कहावत चल पङी कि वह हर कवि को हर श्लोक पर एक लाख मुद्रायें प्रदान करता था।
भोज के दरबारी कवियों एवं विद्वानों में भास्करभट्ट, दामोदरमिश्र, धनपाल प्रमुख थे।
परमार शासक भोज एक महान निर्माता भी था, उसने एक झील का निर्माण करवाया था। जो आज भोजसर के नाम से प्रसिद्ध है।
धारा में सरस्वती मंदिर के समीप उसने एक विजय – स्तंभ स्थापित करवाया था तथा भोजपुर नामक नगर की स्थापना करवाई। चित्तौङ में उसने त्रिभुवन नारायण का मंदिर बनवाया था। इस प्रकार भोज की प्रतिभा बहुमुखी थी।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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