बौद्ध साहित्य – त्रिपिटक के बारे में जानकारी
बौद्धों का साहित्य तीन पिटारियों अथवा पिटकों में प्राप्त होने के कारण त्रिपिटक कहा जाता है। यह पालि भाषा में रचित है तथा इसका निर्माण, संकलन तथा संपादन बुद्ध के परिनिर्वाण से लेकर ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी तक हुआ।
महात्मा बुद्ध की मृत्यु के उपरान्त उनकी शिक्षाओं को संकलित कर तीन पिटकों में विभाजित किया गया, जो निम्नलिखित हैं-
विनयपिटक,सुत्तपिटक,भिधम्मपिटक
इन्हीं को त्रिपिटक की संज्ञा दी गयी है। बौद्धों के अनुसार इनका संकलन विभिन्न बौद्ध संगीतियों के माध्यम से किया गया था। इनका विवरण निम्न प्रकार है-
विनयपिटक
इसमें संघ-संबंधी नियम तथा दैनिक जीवन संबंधी आचार-विचारों, विधि-निषेधों आदि का संग्रह है। इसके निम्नलिखित भाग हैं-
सुत्तविभङ्ग
इसमें पातिमोक्ख के नियमों पर भाष्य प्रस्तुत किये गये हैं। उसके सरल सूत्रों की व्याख्या कर विवादास्पद विषयों की विवेचना की गयी है। इसके दो भाग हैं – महाविभङ्ग तथा भिक्खुनी विभङ्ग। प्रथम में बौद्ध-भिक्षुओं तथा द्वितीय में भिक्षुणियों के लिये विधि-निषेध दिये गये हैं।
खंधक
इसके महावग्ग तथा चुल्लवग्ग नामक दो भाग हैं। इनमें संघीय जीवन संबंधी विधि-निषेधों का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है।
परिवार
इसमें विनयपिटक के दूसरे भागों का सारांश प्रश्नोत्तर के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
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सुत्तपिटक–
इसमें बौद्धधर्म के सिद्धांत तथा उपदेशों का संग्रह है। इसके अध्ययन से बौद्धधर्म की रूपरेखा भली-भाँति स्पष्ट हो जाती है। इसके अंतर्गत पाँच निकाय आते हैं – दीर्घ निकाय, मज्झिम निकाय, संयुक्त निकाय, अंगुत्तर निकाय तथा खुद्दक निकाय। प्रथम चार के बुद्ध के उपदेश वार्त्तालाप के रूप में दिये गये हैं तथा पाँचवी पद्यात्मक है। खुद्दक निकाय में कई ग्रंथ आते हैं- जैसे – खुद्दक-पाठ, धम्मपद, उदान, सुत्तनिपात, विमानवत्थु, पंतवत्थु, थेरगाथा, थेरीगाथा, जातक आदि। जातकों में बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियाँ संग्रहीत हैं। कुछ निकाय तथा जातक ग्रंथ बुद्धकाल की राजनैतिक स्थिति भी बताते हैं।
अभिधम्म पिटक
इसमें दार्शनिक सिद्धांतों का संग्रह मिलता है। यह प्रश्नोत्तर के रूप में है। अभिधम्म के अंतर्गत सात ग्रंथ सम्मिलित हैं- धम्मसंगणि, विभंग, धातुकथा,युग्गल पञ्चति, कथावत्यु, यमक तथा पट्ठान। इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कथावत्थु है। इसकी रचना तृतीय संगीति के अवसर पर मोग्गलिपुत्त तिस्स द्वारा की गयी थी।
अभिधम्म पिटक सबसे बाद की रचना है। इसमें सर्वप्रथम संस्कृत भाषा का प्रयोग मिलता है। त्रिपिटकों के अलावा पालि भाषा के अन्य बौद्ध ग्रंथों में नागसेन द्वारा रचित मिलिन्दपन्हो तथा सिंहली अनुश्रुतियों – दीपवंश तथा महावंश उल्लेखनीय हैं।
मिलिन्दपन्हों में यवन राजा मेनाण्डर तथा बौद्ध भिक्षु नागसेन के वार्त्तालाप का वर्णन है। नागसेन उसके अनेक गूढ दार्शनिक प्रश्नों का उत्तर देते हुये उसकी धार्मिक जिज्ञासा को शांत करते हैं। सिंहली अनुश्रुतियाँ मुख्यतः सिंहल (लंका) देश का इतिहास है। साथ ही साथ इनसे मौर्य इतिहास की भी कुछ सामग्री मिलती है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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