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लार्ड कार्नवालिस द्वारा किये गये सुधार

लार्ड कार्नवालिस

लार्ड कार्नवालिस द्वारा किये गये सुधार (laard kaarnavaalis dvaara kiye gaye sudhaar) – 1786 ई. में लार्ड कार्नवालिस को भारत के गवर्नर-जनरल के पद पर नियुक्त किया गया। जब वह भारत आया, उस समय कंपनी की शासन व्यवस्था में अनेक दोष विद्यमान थे। अतः कार्नवालिस ने शासन व्यवस्था के दोषों को दूर करने के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किये।

लार्ड कार्नवालिस

लार्ड कार्नवालिस द्वारा किये गये सुधारों को हम चार भागों में बांट सकते हैं –

  1. प्रशासनिक सुधार
  2. व्यापार संबंधी सुधार
  3. न्यायिक सुधार
  4. भूमि संबंधी सुधार

प्रशासनिक सुधार

  • कार्नवालिस ने कंपनी के अधिकारियों के निजी व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके साथ ही उसने यह आदेश भी जारी कर दिया कि जो कर्मचारी उसके निर्देशों की अवहेलना करेगा, उसे तत्काल पदच्युत कर दिया जायेगा।
  • उसने अयोग्य अधिकारियों का स्थानान्तरण कर दिया तथा भ्रष्ट अधिकारियों को पदच्युत कर दिया।
  • उसने सिफारिशों के आधार पर नियुक्ति की प्रथा को बंद कर दिया। अब योग्यता के आधार पर नियुक्तियाँ होने लगी। इससे कार्यकुशलता में वृद्धि हुई तथा भ्रष्टाचार भी बंद हो गया।
  • कार्नवालिस को भारतीयों की योग्यता पर विश्वासन नहीं था। अतः उसने उच्च पदों पर केवल अंग्रेजों को नियुक्त करना आरंभ किया। उसने यह नियम बना दिया कि 500 पौण्ड वार्षिक से अधिक वेतन पाने वाले पदों पर केवल यूरोपियन लोगों को ही नियुक्त किया जायेगा। इसके परिणामस्वरूप भारतीयों के लिए उच्च पदों के द्वार बंद हो गए।
  • कार्नवालिस ने बंगाल में 35 जिलों को घटाकर 23 जिले कर दिये। प्रत्येक जिले में एक अंग्रेज कलेक्टर तथा उसके दो अंग्रेज सहायक नियुक्त किये जाते थे। जिले में शांति एवं व्यवस्था बनाये रखना, राजस्व जमा कराना, पुलिस व जेल की निगरानी रखना आदि का उत्तरदायित्व कलेक्टर पर था।
  • कार्नवालिस ने पुलिस विभाग में भी महत्त्वपूर्ण सुधार किये। जमींदारों से उनके सभी पुलिस संबंधी अधिकार छीन लिए गए। प्रत्येक जिले को कई छोटे-छोटे इलाकों में बांट दिया गया तथा प्रति बीस मील के अंतर पर एक पुलिस थाना स्थापित किया गया। प्रत्येक थाने में एक दरोगा तथा कई सिपाही नियुक्त किये गये। दरोगाओं के ऊपर पुलिस अधीक्षक होता था जिसकी नियुक्ति जिले के अंग्रेज मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती थी। अंग्रेज मजिस्ट्रेट को जिले में पुलिस के कार्य का निरीक्षण करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया। कलकत्ता में पुलिस-प्रशासन की देखरेख के लिए एक नये संचालक की नियुक्ति की गयी।

व्यापारिक सुधार

  • कार्नवालिस ने व्यापार बोर्ड का पुनर्गठन किया। व्यापार बोर्ड के सदस्यों की संख्या 11 से घटाकर 5 कर दी गयी। यह भी निश्चित किया गया कि बोर्ड कलकत्ता की सर्वोच्च कौंसिल के अधीन कार्य करेगा। प्रत्येक ऐसे व्यापारिक केन्द्र पर जहाँ कंपनी का व्यापार होता था, वहाँ एक-एक रेजीडेन्ट की नियुक्ति की गयी। रेजीडेन्ट का प्रमुख कार्य यह देखना था कि कंपनी का व्यापार उचित ढंग से हो रहा है या नहीं।
  • कार्नवालिस ने ठेकेदारों से माल खरीदने की प्रथा समाप्त कर दी। माल खरीदने का काम भारतीय व्यापारियों को दे दिया गया तथा कंपनी के कर्मचारियों को ठेकेदारों के स्थान पर अब केवल कमीशन एजेण्ट बना दिया गया।
  • कार्नवालिस ने भारतीय जुलाहों की दशा सुधारने के लिए भी उपाय किये। उसने यह नियम बना दिया कि कंपनी जितना माल खरीदना चाहेगी, उसका पूरा मूल्य पेशगी के तौर पर जुलाहों को दिया जायेगा तथा जुलाहे कंपनी का उतना ही माल देने के लिए बाध्य होंगे जितना रुपया उन्होंने पेशगी के तौर पर लिया है।
  • रेजीडेन्टों को यह आदेश दिया गया कि वस्तुओं को खरीदते समय उत्पादकों अथवा व्यापारियों को परेशान न करें।

भूमि का स्थायी बंदोबस्त

लार्ड कार्नवालिस का सबसे महत्त्वपूर्ण सुधार भूमि संबंधी सुधार है। उसने लगान संबंधी दोषों को दूर करने के लिए स्थायी भूमि व्यवस्था प्रारंभ की। कार्नवालिस से पूर्व एकवर्षीय बंदोबस्त लागू था। परंतु यह व्यवस्था त्रुटिपूर्ण थी क्योंकि ठेकेदार किसानों से अधिक से अधिक धन वसूल करना चाहता था। अतः इस व्यवस्था से किसानों तथा जमींदारों दोनों की स्थिति बिगङती जा रही थी। अतः कार्नवालिस ने लगान व्यवस्था में सुधार करने का निश्चय किया। उसने 1790 में जमींदारों के साथ एक दस वर्षीय समझौता किया और यह भी घोषित किया कि कंपनी के संचालकों को स्वीकृति मिल जाने पर इस व्यवस्था को स्थायी कर दिया जायेगा। अतः संचालकों की स्वीकृति मिल जाने पर 22 मार्च, 1793 को लार्ड कार्नवालिस ने इस व्यवस्था को स्थायी कर देने की घोषणा कर दी।

स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्थाएँ

  • जमींदारों को भूमि का वास्तविक स्वामी मान लिया गया।
    जब तक जमींदार अपनी लगान की राशि चुकाता रहेगा, तब तक उसे जमींदारी से बेदखल नहीं किया जायेगा। परंतु यदि जमींदार नियमित रूप से लगान नहीं चुकायेगा, तो राज्य उसकी भूमि के कुछ भाग को लगान की वसूली के लिए बेच सकेगा।
  • चूंकि राज्य भूमि-स्वामित्व के अधिकार से मुक्त हो गया है, अतः जमीदारों से किसी अन्य प्रकार का कर वसूल नहीं किया जायेगा।
  • जमीदारों से लिया जाने वाला लगान सदा के लिये निर्धारित कर दिया गया। सरकार द्वारा यह स्पष्ट आश्वासन दिया गया कि उत्पादन बढने पर भी निर्धारित लगान की दर में कोई वृद्धि नहीं की जायेगी। न्यायालय से स्वीकृति प्राप्त किये बिना लगान की दर में वृद्धि नहीं की जा सकेगी।
  • जमींदारों से समस्त न्यायिक अधिकार छीन लिए गए।
  • जमींदार भूमि का मालिक होने के कारण भूमि को बेच या खरीद सकते थे।
  • जमींदारों और रैय्यत (किसान) के पारस्परिक संबंधों के विषय में जमींदारों को स्वतंत्र कर दिया गया। इसके साथ ही जमींदारों को आदेश दिया गया कि वे अपने किसानों को पट्टे जारी करें। किसानों को जो कर अपने जमीदारों को देना होता था, इसका उल्लेख पट्टे में होता था। यदि कोई जमींदार अपने किसानों को दिए गए पट्टे का उल्लंघन करेगा, तो किसान को उसके विरुद्ध न्यायालय में जाने का अधिकार होगा।

स्थायी बंदोबस्त की विशेषताएँ

  • इस व्यवस्था में कार्नवालिस ने यह घोषणा की कि 1793 ई. में निर्धारित लगान की दर में कभी परिवर्तन नहीं किया जायेगा तथा सरकार की मांग स्थायी तौर पर यही रहेगी।
  • भूमि की उपज से संबंधित तीन पक्ष थे – सरकार, जमींदार तथा किसान।
  • कार्नवालिस ने राजस्व निर्धारित करके तथा जमींदारों के अधिकारों की घोषणा करके सरकार एवं जमींदारों के हितों की तो रक्षा कर ली, परंतु किसानों के हितों की अवहेलना की गयी। उन्हें जमींदारों की दया पर छोङ दिया गया।
  • इस व्यवस्था के अन्तर्गत जमींदार भूमि को बेच तथा खरीद सकते थे और ऐसा करते समय सरकार से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक नहीं था।
  • इस व्यवस्था द्वारा समाज में एक नवीन वर्ग जमींदार वर्ग की उत्पत्ति हुई। यह वर्ग समाज का अत्यंत सम्मानित एवं प्रभावशाली वर्ग बन गया। यह वर्ग अंग्रेजों का स्वामिभक्त बन गया।

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