अशोक का प्रारंभिक जीवन
बिंदुसार की मृत्यु के बाद उसका सुयोग्य पुत्र अशोक विशाल मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। अशोक विश्व इतिहास के उन महानतम सम्राटों में अपना सर्वोपरि स्थान रखता है, जिन्होंने अपने युग पर अपने व्यक्तित्व की छाप लगा दी है तथा भावी पीढियाँ जिनका नाम अत्यंत श्रद्धा एवं कृतज्ञता के साथ स्मरण करती हैं। निःसंदेह उनका शासन काल भारतीय इतिहास के उज्ज्वलतम पृष्ठ का प्रतिनिधित्व करता है।
अशोक के बहुत से अभिलेख प्राप्त हुए हैं, लेकिन हमें उसके प्रारंभिक जीवन के लिये मुख्यत- बौद्ध साक्ष्यों दिव्यावदान तथा सिंहली अनुश्रुतियों पर ही निर्भर रहना पङता है। इनसे ऐसा पता चलता है, कि अशोक अपने पिता के शासनकाल में अवंति (उज्जयिनी) का उपराजा (वायसराय) था।
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बिंदुसार की बीमारी का समाचार सुनकर वह पाटलिपुत्र आया।सिंहली अनुश्रुतियों से चलता है कि उसने अपने 99 भाइयों की हत्या कर राजसिंहासन प्राप्त किया। परंतु उत्तराधिकार के इस युद्ध का समर्थन स्वतंत्र प्रमाणों से नहीं होता है। सिंहली अनुश्रुतियों में दी गयी कथायें प्रामाणिक नहीं हैं तथा अशोक के अभिलेखों के साक्ष्य से उनमें से अधिकांश का खंडन हो जाता है।
उदाहरण के लिये अशोक के अभिलेखों में अशोक को अपने 99 भाईयों का हत्यारा बताया गया है।परंतु अशोक के पाँचवें अभिलेख में उसके जीवित भाइयों के परिवार का उल्लेख मिलता है। अभिलेखीय साक्ष्य से यह भी ज्ञात होता है, कि अशोक के शासन के तेरहवें वर्ष में उसके अनेक भाई तथा बहन जीवित थे, जो साम्राज्य के विभिन्न भागों में निवास करते थे। उसके कुछ भाई विभिन्न प्रदेशों के वायसराय भी थे। पुनः बौद्ध ग्रंथ अशोक के बौद्ध होने के पूर्व के जीवन को हिंसा, अत्याचार तथा विर्दयता से युक्त बताते हैं। और उसे चंड अशोक कहते हैं।
परंतु ऐसे विवरणों की सत्यपरता संदेहात्मक है। संभव है बौद्ध लेखकों ने अपने धर्म की प्रतिष्ठा बढाने के लिये अशोक के प्रारंभिक जीवन के विषय में ऐसी बातें अपने मन से बनाई हों।
दिव्यावदान में अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी ( अग्रमहिषी ) थी। कुछ विद्वान उसे सेल्युकस की कन्या से उत्पन्न बताते हैं। परंतु इस विषय में निश्चित रूप से कुछ भी कह सकना कठिन है। सिंहली परंपराओं से पता चलता है, कि उज्जयिनी जाते हुए अशोक विदिशा में रुका जहाँ उसने एक श्रेष्ठी की पुत्री देवी के साथ विवाह कर लिया।
महाबोधिवंश में उसका नाम वेधिशमहादेवी मिलता है तथा उसे शाक्य जाति का बताया गया है। उसी से अशोक के पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा का जन्म हुआ था तथा उसे शाक्य जाति का विवरण मिलता है।
और वही उसकी पहली पत्नी थी। दिव्यावदान में उसकी एक पत्नी का नाम तिष्यरक्षिता मिलता है। उसके लेख में केवल उसकी पत्नी करुवाकि का ही नाम है। सिंहली परंपराओं में उन्हें सुमन तथा तिष्य कहा जाता है। इसके अलावा उसके और भी भाई-बहिन रहे होंगे।
ऐसा प्रतीत होता है, कि इन राजकुमारों के पारस्परिक संबंध सौहार्दपूर्ण नहीं थे।कुछ कथाओं के अनुसार बिन्दुसार स्वयं अशोक को राजा न बनाकर सुसीम को राजगद्दी देना चाहता था। बौद्ध परंपरायें इस बात की पुष्टि करती हैं, कि अशोक ने बिन्दुसार की मृत्यु के बाद अमात्यों की सहायता से राजगद्दी हथिया ली तथा उत्तराधिकार के युद्ध में अन्य सभी राजकुमारों की हत्या कर दी। उत्तरी बौद्ध परंपराओं के अनुसार अशोक को अपनी आंतरिक स्थिति सुदृढ करने में चार वर्षों का समय लग गया। इसी कारण राज्यारोहण के चार वर्षों बाद (269 ईसा.पू.) अशोक का विधिवत् राज्याभिषेक हुआ। उसके अभिलेखों में अभिषेक के काल से ही राज्यगणना की गयी है।
अशोक 273 ईसा पूर्व के लगभग मगध के राजसिंहासन पर बैठा। उसके अभिलेखों में सर्वत्र उसे देवानांपिय, देवानांपियदसि ( देवताओं का प्रिय अथवा देखने में सुंदर ) तथा राजा आदि की उपाधियों से संबोधित किया गया है।इन उपाधियों से उसकी महत्ता सूचित होती है। मास्की तथा गूजर्रा के लेखों में उसका नाम अशोक मिलता है। पुराणों में उसे अशोक वर्धन कहा गया है।
Reference :https://www.indiaolddays.com/