मध्यकालीन भारतइतिहासभक्ति आंदोलन

मीराबाई के जीवन की कहानी

मीराबाई (1498-1546ई.)- मीराबाई 16वी. शता. के भारत की एक महान संत थी। इनका जन्म 1498ई. में मेङता के दूदा  के चौथे पुत्र रत्नसिंह के हआ था।   ये मेङता के राजा रत्नसिंह राठौर की इकलौती संतान थी।मीरा का जन्म तो राठौङ राजपूत परिवार में हुआ था वहीं इनका विवाह मेवाङ के सिसोदिया राज परिवार के राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ था।

कुछ समय बाद महाराणा भोजराज की अल्पायु में ही मौत हो जाने के कारण मीरा को भी संसार से विरक्ति हो जाती है तथा वह कृष्ण भक्ति में लीन हो गई।

मीरा कृष्ण भक्ति शाखा की प्रमुख कवयित्री हैं।

मीरा भगवान कृष्ण की भक्त थी तथा राजस्थानी और ब्रजभाषा में तीन ग्रंथों सूरसारावली, सूरसागर, साहित्य लहरी की रचना की।

इन ग्रंथों में सूरसागर सबसे प्रसिद्ध है। इसकी रचना जहाँगीर के समय में हुई।

मीरा की रचनाएँ-

मीराबाई ने अपने गीतों का संकलन “मीराबाई की पदावली” नामक ग्रंथ में किया है।

मीरा ने 4 ग्रंथों की रचना की थी जो निम्नलिखित हैं-

  1. नरसी का मायरा
  2. गीत गोविंद टीका
  3. राग गोविंद
  4. राग सोरठा के पद

मीरा के गुरू कौन थे-

  • मीरा बाई के गुरू रैदास जी थे।गुरु रैदास 15 वीं से 16 वीं शताब्दी के दौरान भक्ति आंदोलन के उत्तर भारतीय रहस्यवादी कवि थे। पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के क्षेत्र में गुरु के रूप में सम्मानित, रवीदास के भक्ति गीतों ने भक्ति आंदोलन पर स्थायी प्रभाव डाला।
  • वह एक कवि-संत, सामाजिक सुधारक और एक आध्यात्मिक आंकड़ा थे। उन्हें एक समूह द्वारा 21 वीं सदी के रविदासिया धर्म के संस्थापक के रूप में माना जाता है, जो पहले सिख धर्म के साथ जुड़े थे।

मीरा के पदों में भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति के साथ-साथ प्रेम की ओजस्वी प्रवाह-धारा और प्रीतम से वियोग की पीड़ा का मर्मभेदी वर्णन मिलता है। प्रेम की साक्षात् मूर्ति मीरा के बराबर शायद ही कोई कवि हो।

मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।

जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।

छांड़ि दई कुल की कानि कहा करै कोई।

संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई।

अंसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।

दधि मथि घृत काढ़ि लियौ डारि दई छोई।

भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।

दासी मीरा लाल गिरिधर तारो अब मोई।

पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो।

बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।

जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो।

खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढ़त सवायो।

सत की नाव खेवहिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरख-हरख जस पायो।।

सूरदास जी अष्टछाप के कवि थे।

सूरदास जी सगुण भक्ति के उपासक थे। ये वल्लभाचार्य के समकालीन थे जिनसे इन्होंने वल्लभ सम्प्रदाय की दीक्षा ग्रहण की।

Reference : https://www.indiaolddays.com/meerabai-biography/ ‎

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