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प्रथम आंग्ल- सिक्ख युद्ध (1845-46ई.)

प्रथम आंग्ल- सिक्ख युद्ध (First Anglo-Sikh War)

प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध के समय अंग्रेजी सेना ने लाहौर पर अधिकार कर लिया। लार्ड हार्डिंग्ज गवर्नर-जनरल तथा लार्ड गफ इस युद्ध के समय भारत के प्रधान सेनापति थे।

प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध

अंग्रेजी सेना ने 13 दिसंबर,1845 को मुदकी नामक स्थान पर लाल सिंह के नेतृत्व वाली सिक्ख सेना को पराजित किया ।

सिक्ख सेनाओं को क्रमशः फिरोजशाह,ओलीवाल,सोवरांव में पराजित होने के बाद अंग्रेजों के साथ लाहौर संधि करने के लिए विवश होना पङा।

लाहौर की संधि 8 मार्च,1846

इस संधि की शर्तों के अनुसार-

  • सिक्खों ने सतलज नदी के दक्षिणी ओर के सभी प्रदेशों को अंग्रेजों को सौंप दिया।
  • लाहौर दरबार पर 1.5 करोङ रु. युद्ध हर्जाना थोपा गया,
  • सिक्ख सेना में कटौती कर 20,000 पैदल सेना और 12,000 घुङसवारों तक सीमित कर दिया गया,
  • एक ब्रिटिश रेजिडेंट को लाहौर में नियुक्त किया गया।
  • संधि के बदले अंग्रेजों ने दिलीप सिंह को महाराजा तथा रानी झिंदन को संरक्षिका और लालसिंह को वजीर के रूप में मान्यता प्रदान किया।

लाहौर के आकार को सीमित करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने कश्मीर को 50,000 रु. में गुलाब सिंह को बेच दिया।

16 दिसंबर,1846 को संपन्न एक अन्य संधि भैरोवाल की संधि की शर्तों के अनुसार दिलीप सिंह के वयस्क होने तक ब्रिटिश सेना का लाहौर प्रवास निश्चित कर दिया गया साथ ही लाहौर का प्रशासन आठ सिक्ख सरदारों की एक परिषद को सौंप कर महारानी झिंदन को 48,000 रु. वार्षिक की पेंशन पर शेखपुरा भेज दिया गया।

सर हेनरी लारेंस लाहौर में रेजिडेंट के रूप में नियुक्त हुआ।

परिणाम

सिक्खों के लिए प्रथम सिक्ख युद्ध के परिणाम बङे घातक सिद्ध हुये। लाहौर की संधि के अनुसार सिक्ख राज्य की लगभग दो-तिहाई भूमि उसके अधिकार से निकल गयी, जिसके परिणामस्वरूप उसे अपनी आय का बहुत बङा साधन और आबादी का हिस्सा खोना पङा।

अंग्रेजों ने जम्मू एवं कश्मीर में एक पृथक डोगरा राज्य स्थापित करके रणजीतसिंह के विशाल राज्य को छिन्न-भिन्न करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

रणजीतसिंह द्वारा निर्मित विशाल सिक्ख सेना को अत्यधिक सीमित करके उसे कमजोर बना दिया गया। लाहौर दरबार में अंग्रेज रेजीडेण्ट की नियुक्ति करके पंजाब राज्य की राजनीतिक स्वतंत्रता को भी सीमित कर दिया गया। भेरोवाल की संधि ने इस सीमित राजनीतिक स्वतंत्रता को बिलकुल ही समाप्त कर दिया। पंजाब की वास्तविक सत्ता अब अंग्रेजों के हाथ में आ गयी।

पंजाब अंग्रेजी सेना के नियंत्रण में आ गया। पंजाब में कानून और व्यवस्था को बनाये रखने का दायित्व भी अब अंग्रेजी सेना ने ले लिया। वस्तुतः भेरोवाल की संधि से पंजाब का सैनिक और असैनिक शासन कंपनी के हाथ में आ गया।

यदि कंपनी चाहती तो संपूर्ण पंजाब को अपने साम्राज्य में मिला सकती थी, परंतु गवर्नर-जनरल हार्डिंग इस समय पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाये जाने के विरुद्ध था। वह पंजाब को धीरे-धीरे अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाना चाहता था और कुछ समय के लिए पंजाब का शासन स्थानीय सरदारों एवं ब्रिटिश रेजिडेन्ट के माध्यम से चलाने के पक्ष में था।

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