भक्ति आन्दोलन के समाज पर प्रभाव की विवेचना कीजिए

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भक्ति आन्दोलन के समाज पर प्रभाव की विवेचना कीजिए-

Subhash Saini Changed status to publish अगस्त 11, 2020
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भक्ति आंदोलन- सूफी आंदोलन की अपेक्षा अधिक प्राचीन है। उपनिषदों में इसकी दार्शनिक अवधारणा का पूर्ण प्रतिपादन किया गया है। भक्ति आंदोलन हिन्दुओं का सुधारवादी हिन्दुओं का सुधारवादी आंदोलन था। इसमें ईश्वर के प्रति असीम भक्ति, ईश्वर की एकता, भाई चारा, सभी धर्मों की समानता तथा जाति व कर्मकांडों की भर्त्सना की गई है। वास्तव में भक्ति आंदोलन का आरंभ दक्षिण भारत में सातवी से बारहवीं शताब्दी के मध्य हुआ, जिसका उद्देश्य नयनार तथा अलवार संतों के बीच मतभेद को समाप्त करना था। इस आंदोलन के प्रथम प्रचारक शंकराचार्य माने जाते हैं।

भक्ति आन्दोलन के समाज पर प्रभाव  : – इस आन्दोलन के उपदेशकों और सुधारको ने भारत में चेतना जगायी तथा प्रगतिशील विचारों की एक नयी लहर उत्पन्न की । इस आन्दोलन से नये विचारों का जन्म हुआ । इसने भारतीय संस्कृति एवं समाज को एक दिशा दी । इस आन्दोलन ने एक ओर मानवीय भावनाओं को उभारा, वहीं व्यक्तिवादी विचारधारा को सशक्त बनाया,  जिसमें भक्ति के माध्यम से ईश्वर से सीधा सम्पर्क स्थापित कर उसमें सदाचार, संयम, मानवता, भक्ति एवं प्रेम आवश्यक समझा गया । भक्ति में मोक्ष तथा भोग में त्याग, जाति-पांति तथा वर्गविहीन समानतावादी समाज की स्थापना पर विशेष बल दिया गया ।

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Subhash Saini Changed status to publish अगस्त 12, 2020
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