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कानपुर में 1857 की क्रांति

कानपुर में 1857 की क्रांति

कानपुर में 1857 की क्रांति (Revolution of 1857 in Kanpur)

1818 में पेशवा बाजीराव द्वितीय को कानपुर के निकट बिठुर भेज दिया गया तथा उसके लिए 8 लाख रुपये वार्षिक पेंशन देना तय किया गया था। बाजीराव के कोई पुत्र नहीं था, अतः उसने नाना धुंधपंत को जिसे नाना साहब कहकर पुकारा जाता था, गोद लिया। 28 जनवरी, 1851 को बाजीराव की मृत्यु हो गई। किन्तु डलहौजी ने उसे पेंशन देने से इंकार कर दिया। अतः नाना अंग्रेजों का कट्टर शत्रु बन गया।

कानपुर में 1857 की क्रांति

मेरठ में हुए विद्रोह की सूचना जब कानपुर पहुँची तो अंग्रेजों ने खजाने तथा बारूद के भंडार की सुरक्षा का दायित्व नाना साहब के सिपाहियों को सौंप दिया। किन्तु 4 जून को कानपुर का विद्रोह हो गया। 6 जून,1857 को नाना ने विद्रोहियों का नेतृत्व ग्रहण किया और कानपुर की ओर आया। अंग्रेजों ने अपनी सुरक्षा के लिए एक अस्थाई शिविर बना लिया, किन्तु 25 जून को इस शिविर पर विद्रोहियों का अधिकार हो गया।

27 जून को अंग्रेज इलाहाबाद की ओर जाने लगे, किन्तु विद्रोहियों ने उन पर आक्रमण कर दिया। कानपुर पर अधिकार हो जाने के बाद बुठुर में नाना ने अपने आपको पेशवा घोषित कर दिया। किन्तु इलाहाबाद से अंग्रेजी सेना आ पहुँची, जिसने 16जुलाई, 1857 को कानपुर पर पुनः अधिकार कर लिया।

इसी दिन कानपुर में बीबीघर नामक मकान में कुछ अंग्रेज स्त्रियों व बच्चों की हत्या कर दी गई। अब अंग्रेजों ने कानपुर की साधारण जनता पर जो अत्याचार किए, वे दिल दहलाने वाले थे। अंग्रेज अधिकारी जनरल नील ने एक मुसलमान अधिकारी को बीबीघऱ में फर्श पर लगे खून को जीभ से साफ करने का आदेश दिया।

19 जुलाई, 1857 को बिठुर पर आक्रमण कर दिया और नाना के महल में आग लगा दी। बिठुर में भयंकर लूटमार की गई तथा धन-संपत्ति के लोभ में एक महल की एक-2 ईंट उखङवा दी। अंग्रेजों को बिठुर की लूट में इतना अधिक सोना-चाँदी प्राप्त हुआ कि उसे ले जा नहीं सकते थे। जनवरी, 1858 के बाद नाना के बारे में कोई पता नहीं चला। बाद में पता चला वे नेपाल चले गये हैं।

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