शाक्त धर्म के सिद्धांत क्या थे
शाक्त मत के अनुयायी महामातृ देवी को आदि शक्ति मानकर उसी की आराधना करते हैं। वहीं सृष्टि की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करती हैं। शक्ति साधक देवी के किसी एक रूप को इष्ट मानकर उसके साथ अपना तादात्म्य बनाते हैं तथा विश्वास करते हैं। वस्तुतः शक्ति, शिव का ही क्रियाशील रूप है। इस मत में भक्ति, ज्ञान, तथा कर्म तीनों को महत्त्व दिया गया है। तंत्र-मंत्र, ध्यान, योग आदि का भी स्थान है। सांसारिक भोगों को मोक्ष के मार्ग में साधक माना गया है। शाक्त धर्म में कुण्डलिनी नामक रहस्यमय शक्ति का अत्यधिक महत्त्व है। साधना तथा मंत्रों के द्वारा जब यह शक्ति जागृत की जाती है, तभी मुक्ति मिलती है। कौलमार्गी शाक्त पंचमकारों आर्थात् मदिरा, मांस, मत्स्य, मुद्रा तथा मैथुन की उपासना के द्वारा मुक्ति पाने में विश्वास रखते हैं। उनके आचरण अत्यन्त घृणित हैं।
शाक्त सम्प्रदाय में देवी की स्तुति प्रायः तीन प्रकार से की जाती है-
पहले में महापद्मवन में शिव की गोद में बैठी हुयी देवी का ध्यान किया जाता है। उनका ध्यान ह्रदय तथा मन को आह्लादित करता है। देवी स्वयं आनंद स्वरूपा हैं।
इसमें भूर्जपत्र, रेशमी वस्त्र अथवा स्वर्णपत्र की सहायता से नौ योनियों का वृत्त बनाकर उसके मध्य में एक योनि का चित्र खींचकर चक्र बनाया जाता है। इसे श्रीचक्र कहते हैं। इसकी पूजा दो प्रकार से की जाती है – एक जीवित स्त्री की योनि की तथा दूसरे काल्पनिक योनि की। इस आधार पर उनकी दो शाखाऐं भी हैं।
इसमें दार्शनिक ढंग से ज्ञान के द्वारा देवी की उपासना की जाती है। इस पद्धति में अध्ययन तथा ज्ञान को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की गयी है। कुत्सित आचरणों की इसमें निन्दा करते हुये उन्हें त्याज्य बताया गया है।
अंतिम विधि द्वारा देवी की उपासना करने वाले व्यक्ति ही शुद्ध एवं सात्विक भक्त होते हैं।
शाक्त धर्म आज भी हिन्दुओं का एक प्रमुख धर्म है। देवी की पूजा देश के विभिन्न भागों में अति श्रद्धा एवं उल्लासपूर्वक की जाती है। बंगाल तथा असम में इस मत का विशेष प्रचार है। दुर्गा पूजा के अवसर पर देश भर में विविध प्रकार के आयोजन किये जाते हैं। शाक्तधर्म के सिद्धांत त्रिपुरा रहस्य, मलिनी-विजय, डाकार्ण, कुलार्णव आदि तंत्र ग्रंथों में उल्लिखित मिलते हैं।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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