शाक्त एक तांत्रिक विचारधारा है
पूर्व मध्यकाल तक आते-आते शाक्त धर्म तंत्रवाद से पूर्णतया प्रभावित हो गया और शाक्त-तांत्रिक विचारधारा समाज में अत्यधिक लोकप्रिय हो गयी। यहाँ तक कि प्राचीन धर्म भी इसके प्रभाव में आ गये। बौद्ध, कश्मीर शैवमत, वैष्णव, जैन आदि सभी धर्मों पर शाक्त-तांत्रिक विचारधारा का प्रभाव पङा तथा लोगों की आस्था तंत्र-मंत्रों में दृढ हो गयी।
जैन मत की देवी सचिवा देवी की उपासना शाक्त ढंग से की जाने लगी तथा कुछ जैन आचार्यों ने चौसठ योगिनियों के ऊपर सिद्धि प्राप्ति कर लेने का दावा किया। श्रीहर्ष ने अपने ग्रंथ नैषधचरित में सरस्वती मंत्री की महत्ता का प्रतिपादन किया, जबकि गुजरात के चौलुक्य शासक कुमारपाल जैन नमस्कार मंत्र में अटूट विश्वास रखता था। उसका विश्वास था, कि इसी मंत्र के कारण उसे सर्वत्र सफलता प्राप्त हुई थी। तंत्रवाद के बढते हुए प्रभाव के फलस्वरूप समाज में अनेक अंधविश्वास दृढ हो गये। किन्तु तंत्रवाद ने भारतीय रसायन शास्त्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। स्त्रियों की दशा सुधारने तथा जाति-पांति के बंधनों को शिथिल बनाने की दिशा में भी तांत्रिक विचारधारा का कुछ योगदान रहा। शाक्त-तांत्रिक मत में एक ही देवता की पूजा पर विशेष बल दिया जाता था। इस विचारधारा ने पूर्वमध्यकाल में भक्ति आंदोलन को वेग प्रदान किया। तांत्रिक सहजयान से ही नाथ सम्प्रदाय का उदय हुआ, जिसने मध्यकाल में कबीर, दादू, नानक आदि संतों के लिये मार्ग प्रशस्त किया।
तांत्रिक विचारधारा शक्तिवाद है। यही कारण है, कि कश्मीर शैवमत शक्ति को शिव की अन्तर्निहित प्रकृति तथा सर्वोच्च शक्ति मानता है। यही संपूर्ण दृष्टि से व्यापक है। तांत्रिक धर्म का लक्ष्य ज्ञान कर्म समुच्चयवाद पर केन्द्रित है। इसमें जप, तप, मंत्र पर विशेष बल दिया जाता है। इन्हीं के द्वारा साधन स्वास्थ्य, धन तथा शक्ति की प्राप्ति करता है।
संप्रति शाक्त उपासना के तीन प्रमुख केन्द्र हैं – कश्मीर, कांची तथा असम स्थित कामाख्या। प्रथम दो श्रीविद्या के प्रमुख स्थल हैं, जबकि अंतिम कौल मत का प्रसिद्ध केन्द्र है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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