इतिहासप्राचीन भारतवर्द्धन वंशहर्षवर्धन

गौड़ नरेश शशांक कौन था

हर्ष का समकालीन गौङनरेश शशांक हमारे सामने एक उल्का की भाँति चमक कर तिरोहित हो जाता है। उसके वंश या परिवार के विषय में हमें निश्चित रूप से पता नहीं है। इतना स्पष्ट है, कि वह गौङ (बंगाल) का राजा था। बाण तथा ह्वेनसांग दोनों ने उसका उल्लेख किया है।

YouTube Video

हर्षचरित की एक पाण्डुलिपि में शशांक का नाम नरेन्द्रगुप्त मिलता है। इसे खोज निकालने का श्रेय इतिहासकार बुलर को है। इस नाम के आधार पर आर.डी.बनर्जी जैसे कुछ विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला है, कि संभवतः शशांक चक्रवर्ती गुप्तवंश अथवा परवर्ती गुप्तवंश से संबंधित था। किन्तु इस संबंध में हम निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कह सकते।

एक क्रूर हत्यारा

सर्वप्रथम शशांक इतिहास में एक क्रूर हत्यारे के रूप में उपस्थित होता है। हर्षचरित से पता चलता है, कि उसने राज्यवर्द्धन को अपने झूठे शिष्टाचारों में फँसाकर मार डाला। इस कायरतापूर्ण कृत्य ने उसके राजनैतिक जीवन का लगभग अंत कर दिया। रोहतासगढ से प्राप्त मुहर पर उत्कीर्ण लेख से शशांक के प्रारंभिक जीवन के विषय में कुछ सूचनायें मिल जाती हैं। ऐसा पता चलता है, कि पहले वह महासामंत था। (श्रीमहासामंतशशांकदेवस्य) । ऐसा प्रतीत हौता है, कि वह मौखरि नरेश अवंतिवर्मन का महासामंत रहा होगा – जो उसका समकालीन था। अवंतिवर्मन् का मगध के बङे भाग पर अधिकार था, जैसा कि देवबर्नाक (शाहाबाद जिला, बिहार) के लेख से स्पष्ट होता है।

ग्रहवर्मा की मृत्यु तथा कन्नौज पर देवगुप्त का अधिकार हो जाने के फलस्वरूप मौखरि राज्य में जो अव्यवस्था फैली उसने शशांक को उसकी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु सुनहरा अवसर प्रदान कर दिया। संभवतः वह कन्नौज को देवगुप्त से छीन उस पर अपना आधिपत्य जमाने के उद्देश्य से वहाँ आया था। परंतु राज्यवर्द्धन द्वारा देवगुप्त के वध से उसकी आशाओं पर पानी फिर गया। राज्यवर्द्धन की सफलता शशांक के लिये एक खुली चेतावनी थी। अतः उसने किसी ने किसी प्रकार से वर्द्धन राजा को समाप्त करना उचित समझा। इसी उद्देश्य से शशांक ने राज्यवर्द्धन को अपने शिविर में आमंत्रित किया तथा धोखे से उसकी हत्या कर डाली। परंतु इस अपकृत्य से उसकी परेशानी और बढ गयी। जब हर्ष ने अपनी विशाल सेना के साथ उसके विरुद्ध प्रस्थान किया तब वह भयभीत हुआ तथा भाग खङा हुआ।

ऐसा प्रतीत होता है, कि अपने जीवन के अंत में वह सामंत-स्थिति से सम्राट स्थिति पर पहुँच गया था। संभव है अवंतिवर्मन् की मृत्यु के बाद (622 ईस्वी के बाद) उसने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी हो। उसने बंगाल तथा उङीसा पर अपना अधिकार कर लिया तथा दक्षिण में गोदावरी नदी तक उसका राज्य विस्तृत हो गया था। मगध पर उसका सामंत-काल से ही शासन था। उङीसा के गंजाम से 619 ईस्वी का उसके सामंत माधवराज द्वितीय का ताम्रलेख मिलता है, जिससे ज्ञात होता है, कि इस समय तक वह एक सार्वभोम शासक था तथा उसकी उपाधि महाराजाधिराज की थी।

उसकी स्वर्ण मुद्रायें भी उसके स्वतंत्र अस्तित्व को प्रमाणित करती हैं, जो अधिकतर बंगाल से मिली हैं। मिदनापुर (बंगाल) से प्राप्त दो ताम्रपत्र भी बंगाल के ऊपर उसके आधिपत्य की सूचना देते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है, कि शशांक पूर्वी भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा बन बैठा।

आर्यमंजूश्री मूलकल्प के एक श्लोक से पता चलता है, कि हर्ष ने सोम (शशांक) की राजधानी पुण्ड्र पर आक्रमण कर उसे परास्त किया तथा उसे उसके राज्य में ही रहने के लिये बाध्य किया। परंतु इस मध्यकालीन बौद्धग्रंथ के विवरण की ऐतिहासिकता संदिग्ध है।

ह्वेनसांग के विवरण से पता चलता है, कि शशांक की मृत्यु 637 ईस्वी के कुछ वर्ष पूर्व ही हुई थी। उसका अंत किन परिस्थितियों में हुआ, यह पता नहीं लग पाया है। परंतु इतना तो स्पष्ट है, कि उसके जीवन काल में हर्ष उसके राज्य को जीत नहीं पाया था।

शशांक का धर्म

शशांक एक कट्टर शैव था। उसके सिक्कों के ऊपर शिव तथा नंदी की आकृतियाँ मिलती हैं। ह्वेनसांग हमें बताता है, कि उसने बोधगया के बोधिवृक्ष को कटवाकर गंगा में फिकवा दिया तथा समीप के एक मंदिर से बुद्ध की मूर्ति को हटवा कर उसके स्थान पर शिव की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवायी। इसी प्रकार पाटलिपुत्र के मंदिर में रखे हुये एक पाषाण-स्तंभ, जिस पर बुद्ध के चरण – चिन्ह उत्कीर्ण थे, को भी उसने गंगा नदी में फिंकवा दिया।

कुशीनारा के एक विहार के बौद्धों को भी उसने वहां से निष्कासित करवा दिया। आर्यमंजूश्रीमूलकल्प में भी उसका चित्रण बौद्धद्रोही के रूप में किया गया है, जिसने पवित्र बौद्ध अवशेषों को जलाया तथा विहारों एवं समाधियों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। आर. डी.बनर्जी तथा आर.पी.चंदा जैसे कुछ विद्वान इस मत के हैं, कि शशांक वस्तुतः राजनैतिक कारणों से बौद्धद्रोही हुआ तथा अन्यथा उसमें धर्मांधता नहीं थी। शशांक को बौद्धद्रोही सिद्ध करने वाले सभी साक्ष्य इसी धर्म से संबंधित हैं। अतः उनका विवरण निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता।

निष्कर्ष

इस प्रकार हम कह सकते हैं, कि शशांक पूर्णतया असंबद्ध एवं उपेक्षित शासक रहा है, जिसके विषय में हमारी जानकारी अति अल्प है। उसके साथ ही उसका वंश तथा राज्य दोनों ही जाते रहे और उसके राज्य को हर्ष ने अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। निश्चय ही वह एक महान कूटनीतिज्ञ तथा साहसी योद्धा था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

India Old Days : Search

Search For IndiaOldDays only

  

Related Articles

error: Content is protected !!