इतिहासप्राचीन भारत

प्राचीन काल में सोपारा क्या था

महाराष्ट्र के थाणे (थाना)जिले में स्थित यह स्थल प्राचीन काल में पश्चिमी भारत का प्रसिद्ध बंदरगाह था। इसका नाम शूपारक भी मिलता है। वर्तमान में सोपारा नालासोपारा नामक उपनगर के पास स्थित है। प्राचीन काल में यह भारत के पश्चिमी तट का सबसे बड़ा नगर था जहाँ से मेसोपोटामिया,   मिस्र, कोच्चि, अरब तथा पूर्वी अफ्रीका में व्यापार होता था। इसका प्राचीन नाम थूर्पारक है।

महाभारत में इस स्थान का उल्लेख मिलता है। मौर्य शासक अशोक का एक शिलालेख यहां से मिलता है। सोपारा का अभिलेख भारतीय ब्राह्मी लिपि में हैं,इसी ब्राह्मी से वर्तमान देवनागरी लिपि का विकास हुआ है। जबकि अशोक के अन्य अभिलेख जैसे शहबाजगढ़ी तथा मनसेहरा के अभिलेखों ब्राह्मी में न होकर खरोष्ठी में हैं। सोपारा स्तूप में बुद्ध और साथ में एक अन्य बौद्ध भिक्षु की मूर्ति भी मिलती है।

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जिस प्रकार दक्षिण भारत के पश्चिमी तट पर ईसा पूर्व से ही “मुज़रिस” (कोडूनगल्लूर) विदेश व्यापर के लिए ख्याति प्राप्त बंदरगाह रहा उसी प्रकार उत्तर भारत के पश्चिमी तट पर उसी कालक्रम में सोपारा भी भारत में प्रवेश के लिए एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था। इस बंदरगाह का संपर्क विभिन्न देशों से रहा है। सोपारा को सोपारका, सुर्परका जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता था। प्राचीन अपरानता राज्य की राजधानी होने का भी गौरव सोपारा को प्राप्त है।

कदाचित बाइबिल में उल्लेखित भारतीय बंदरगाह “ओफिर” सोपारा ही था। बौद्ध साहित्य “महावंश” में उल्लेख है कि श्रीलंका के प्रथम राजा, विजय ने “सप्पारका” से श्रीलंका के लिए समुद्र मार्ग से प्रस्थान किया था। प्राचीन काल में सोपारा से नानेघाट, नासिक, महेश्वर होते हुए एक व्यापार मार्ग उज्जैन तक आता था। इस बात की पुष्टि नानेघाट में सातवाहन वंशीय राजाओं के शिलालेख से होती है, जो मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद हावी हो गए थे। सोपारा इनके आधीन आ गया था।

शक-सातवाहन युग में इस नगर का व्यापारिक महत्व बहुत अधिक बढ गया था। दिव्यावदान में इसे वाणिज्य का बङा केन्द्र बताया गया है, जहाँ व्यापारी अपने माल के साथ भरे रहते थे। यहां से जहाज में बैठकर लंका तथा सुवर्णभूमि तक पहुंचा जाता था।

यहां से श्रावस्ती को एक सीधा मार्ग जाता था। सोपारा की मंडी कल्यान थी। यूनानी-रोमन लेखकों ने भी इस बंदरगाह की महत्ता का संकेत दिया है। यहाँ से सौदागर यूनान तथा रोम आते-जाते थे। पेरीप्लस से पता चलता है, कि भृगुकच्छ तथा सोपारा में व्यापारिक जहाजों को उतारने के लिये होङ लगी रहती थी। यदि कोई विदेशी जहाज सोपारा पहुँचता था, तो उसे भृगुकच्छ के रक्षक बलपूर्वक वहां ले जाते थे। अरब सागर का तटवर्ती बंदरगाह होने के कारण सोपारा पश्चिमी देशों को जाने का प्रमुख केन्द्र बन गया था।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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