प्राचीन भारतइतिहासशक शाखा

शक कौन थे

शक प्राचीन मध्य एशिया में रहने वाली स्किथी लोगों की एक जनजाति या जनजातियों का समूह था। इनकी सही नस्ल की पहचान करना कठिन रहा है क्योंकि प्राचीन भारतीय, ईरानी, यूनानी और चीनी स्रोत इनका अलग-अलग विवरण देते हैं। फिर भी अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि ‘सभी शक स्किथी थे, लेकिन सभी स्किथी शक नहीं थे’, यानि ‘शक’ स्किथी समुदाय के अन्दर के कुछ हिस्सों का जाति नाम था।

शक सातवाहन संघर्ष क्या था ?

शकों के बारे में जानने के इतिहास के स्रोत –

शकों के प्रारंभिक इतिहास की जानकारी के लिये हमें चीनी स्रोतों पर निर्भर रहना पङता है। इनमें पान-कू कृत सिएन-हान-शू अर्थात् प्रथम हान वंश का इतिहास तथा फान-ए कृत हाऊ-हान – शू अर्थात् परवर्ती हान वंश का इतिहास उल्लेखनीय है।

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इनके अध्ययन से यू-ची, हूण तथा पार्थियन जाति के साथ शकों के संघर्ष तथा उनके प्रसार का ज्ञान होता है। चीनी ग्रंथ तथा लेखक शकों की सई अथवा सई वांग कहते हैं।

भारत में शासन करने वाले शक तथा पल्लव शासकों का ज्ञान हमें मुख्य रूप से उनके लेखों तथा सिक्कों से होता है। शकों के प्रमुख लेख निम्नलिखित हैं-

  • राजवुल का मथुरा सिंह शीर्ष, स्तंभलेख।
  • शोडास का मथुरा दानपत्रलेख।
  • नहपानकालीन नासिक के गुहालेख।
  • नहपानकालीन जुन्नार का गुहालेख।
  • उषावदान के नासिक गुहालेख।
  • रुद्रदामन का अंधौ (कच्छ की खाङी) का लेख।
  • रुद्रदामन का गिरनार (जूनागढ) का लेख।

सातवाहन राजाओं के लेखों से शकों के साथ उनके संबंधों का ज्ञान होता है। लेखों के अतिरिक्त पश्चिमी तथा उत्तरी पश्चिमी भारत के बङे भाग से शक राजाओं के बहुसंख्यक सिक्के प्राप्त हुए हैं। कनिष्क के लेखों से पता चलता है, कि कुछ शक-क्षत्रप तथा महाक्षत्रप उसकी अधीनता में देश के कुछ भागों में शासन करते थे।

रामायण तथा महाभारत जैसे भारतीय साहित्यों में यवन, पल्लव आदि विदेशी जातियों के साथ शकों का उल्लेख होता है। कात्यायन एवं पतंजलि भी शकों से परिचित थे। मनुस्मृति में भी शकों का उल्लेख मिलता है।

पुराणों में भी शक, मुरुण्ड, यवन जातियों का उल्लेक मिलता है।

कई अन्य भारतीय ग्रंथ, जैसे – गार्गीसंहिता, विशाखादत्त कृत देवीचंद्रगुप्तम, बाण कृत हर्षचरित, राजशेखर कृत काव्यमीमांसा में भी शकों का उल्लेख मिलता है।

जैन ग्रंथों में शकों के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है। जैन ग्रंथ कालकाचार्य कथानक में उज्जयिनी के ऊपर शकों के आक्रमण तथा विक्रमादित्य द्वारा उनके पराजित किये जाने का उल्लेख मिलता है।

भारतीय साहित्य में शकों के प्रदेस को शकद्वीप अथवा शकस्थान कहा गया है।

शकों की उत्पत्ति तथा प्रसार-

शक मूलतः सीरदरया के उत्तर में निवास करने वाली एक खानदेश तथा बर्बर जाति थी। चीनी ग्रंथों से पता चलता है कि, 165 ईसा पूर्व के लगभग यू-ची नामक एक अन्य जाति ने उन्हें परास्त कर वहाँ सेर खदेङ दिया। शकों ने सीरदया पार कर बल्ख (बैक्ट्रिया) पर अधिकार कर लिया तथा वहाँ के यवनों को परास्त कर भगा दिया। परंतु यू-ची जाति ने वहाँ भी उनका पीछा किया तथा पुनः परास्त हुये।

पराजित शक जाति दो शाखाओं में विभक्त हो गयी। उनकी एक शाखा दक्षिण की ओर गयी तथा कि-पिन (कपिशा) पर अधिकार कर लिया। दूसरी शाखा पश्चिम में ईरान की ओर गईा।वहाँ उसे शक्तिशाली पार्थियन सम्राटों से युद्ध करना पङा।

शकों ने दो पार्थियन राजाओं फ्रात द्वितीय तथा आर्तबान पार्थियन सम्राटों को पराजित कर पूर्वी ईरान तथा एरियाना के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।

परंतु पार्थियन नरेश मिथ्रदात द्वितीय ने शकों को बुरी तरह परास्त कर ईरान के पूर्वी प्रदेशों पर पुनः अधिकार कर लिया। यहाँ से भागकर शक हेलमंड घाटी (दक्षिणी अफगानिस्तान) में आये तथा वहीं बस गये। इस स्थान को शकस्थान (सीस्तान) कहा गया।

यहाँ से कंधार और बोलन दर्रा होते हुये वे सिंधु नदी – घाटी में जा पहुँचे। उन्होंने सिंध प्रदेश में अपना निवास-स्थान बना लिया। शकों के साथ संपर्क के कारण इस स्थान को शक-द्वीप कहा गया।

इस प्रकार भारत में शक पूर्वी ईरान से होकर आये थे। उन्होंने पश्चिमोत्तर प्रदेशों से यवन-सत्ता को समाप्त कर उत्तरापथ एवं पश्चिमी भारत के बङे भू-भाग पर अपना अधिकार कर लिया। तक्षशिला, मथुरा, महाराष्ट्र, उज्जयिनी आदि स्थानों में शकों की भिन्न-2 शाखायें स्थापित हुई। शक नरेशों के भारतीय प्रदेशों के शासक क्षत्रप कहे जाते थे।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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