इतिहासप्राचीन भारत

महाभारत के रचयिता कौन थे

महाभारत

रामायण के अलावा एक अन्य महाकाव्य, जिसकी प्राचीनता रामायण के ही समकालीन है, महाभारत की है। संप्रति इस ग्रंथ में एक लाख श्लोकों का संग्रह है, जिसके कारण इसे शतसाहस्त्र संहिता कहा जाता है। यह जिस रूप में इस समय प्राप्त है, उससे स्पष्ट है, इसकी रचना किसी एक कवि द्वारा एक समय में नहीं की गई थी। शैली, भाषा, छंदादि की दृष्टि से इनमें भारी विषमता है।
सामग्रियों की दृष्टि से भी इसमें अंतर है। अतः इस ग्रंथ का विकास वेदव्यास ने इसे काव्य का स्वरूप प्रदान किया। मुख्यतः महाभारत के विकास के तीन स्वरूप माने जाते हैं – जय, भारत, महाभारत। स्वयं महाभारत से ही पता चलता है, कि इसका प्राचीन नाम जय था। इसके बाद इस ग्रंथ को भारत तथा अन्ततः महाभारत संज्ञा प्रदान की गयी।

महाभारत के मूल अंश की रचना काल के विषय में भी मतभेद है। आश्वलायन गृह्यसूत्रों तथा बौधायन धर्मसूत्र में महाभारत एवं वर्णित आख्यानों का स्पष्टतः उल्लेख मिलता है। बौधायन गृह्यसूत्र में गीता का एक श्लोक उद्धृत किया गया है-

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो में भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपह्रतमश्नामि प्रयतात्मनः।।

बौधायन का समय ईसा पूर्व चतुर्थ शताब्दी निर्धारित किया गया है। अतः हम कह सकते हैं, कि महाभारत का मूल अंश इसी समय रचा गया होगा। विन्टरनित्स का यही निष्कर्ष है। मेकडाउन इसकी रचना ईसा पूर्व 500 निर्धारित करते हैं। महाभारत में बौद्धधर्म तथा यवनों के कई उल्लेख प्राप्त होते हैं। इससे भी प्रतिपादित होता है, कि महाभारत बुद्धकाल (ई.पू.छठी शती) के बाद की रचना है।
इसके अंतिम स्वरूप में शक, यवन, पह्लव आदि का उल्लेख मिलता है, मंदिरों-स्तूपों का वर्णन है तथा विष्णु और शिव की उपासना का उल्लेख है। इन आधारों पर ऐसा निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि महाभारत का अंतिम स्वरूप ईसा पूर्व दूसरी शती तक पूर्ण हो चुका था। इस प्रकार महाभारत की प्रारंभिक तिथि ई.पू.500-400 तथा अंतिम तिथि ई.पू. तिथि ई.पू.200 मानी जा सकती है।

आजकल अधिकांश विद्वान महाभारत के युद्ध को एक ऐतिहासिक घटना के रूप में मान्यता देते हैं, जो संभवतः ई.पू.950 के लगभग लङा गया था। इस युद्ध के बहुत बाद ग्रंथ का प्रणयन हुआ होगा।


ग्रंथ परिचय- महाभारत में कुल 18 पर्व हैं-

  1. आदि पर्व,
  2. सभा पर्व,
  3. वन पर्व,
  4. विराद पर्व,
  5. उद्योग पर्व,
  6. भीष्म पर्व,
  7. द्रोणपर्व,
  8. कर्ण पर्व,
  9. शल्य पर्व,
  10. सौप्तिक पर्व,
  11. स्त्री पर्व,
  12. शांति पर्व,
  13. अनुशासन पर्व,
  14. अश्वमेघ पर्व,
  15. आत्रमवासी पर्व,
  16. मौसल पर्व,
  17. महाप्रस्थानिक,
  18. स्वर्गारोहण पर्व।

इसके अलावा हरिवंश इसका परिशिष्ट (खिल पर्व) है, जिसमें कृष्णवंश की कथा विस्तारपूर्वक वर्णित है।

महाभारत की कथा का मूल कौरव-पाण्डवों के बीच संघर्ष है। किन्तु इसके विषय इतने व्यापक हैं, कि इसमें दर्शन, धर्म, इतिहास, पुराण, स्मृति, आख्यान आदि सभी का समावेश हो गया है। इस प्रकार यह ग्रंथ प्रााचीन भारतीय जीवन का विश्वकोश बन गया है। ग्रंथकार का यह दावा है धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष(चार पुरुषार्थ) के विषय में जो नहीं है वह कहीं नहीं है तथा जो इसमें है वही अन्यत्र भी है-

धर्मे अर्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्तितदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचित।।

महाभारत को एक ही साथ अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, कामशास्त्र कहा गया है। व्यास ने इसी सभी कवियों का उपजीव्य बताया है। अनेक काव्यों, महाकाव्यों, नाटकों तथा आख्यानों का स्त्रोत महाभारत ही है। साहित्य की अपेक्षा संस्कृति की दृष्टि से इस रचना का अधिक महत्त्व है। यह ऐसा ग्रंथ है, जिसमें प्रत्येक श्रेणी का मनुष्य अपने नैतिक उत्थान के लिये सामग्री प्राप्त कर सकता है।
इसके भीष्म, शांति एवं अनुशासन पर्व अध्यात्म, धर्म एवं राजनीति की दृष्टि से अत्युत्तम हैं। भीष्म पर्व का अंग गीता है, जिसमें कर्म, ज्ञान तथा भक्ति का सुन्दर समन्वय है। शांतिपर्व में राजधर्म का अच्छा विवेचन मिलता है, जहां राजा और प्रजा के कर्त्तव्यों तथा अधिकारों का अलग-अलग वर्णन है। अनुशासन पर्व में धर्म तथा नीति विषयक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। महाभारत का मुख्य प्रतिपाद्य धर्म की प्रतिष्ठा है। धर्माचरण द्वारा ही मुनष्य को सच्चा सुध मिल सकता है। व्यास का मत है, कि भय या लोभ के वशीभूत होकर धर्म का परित्याग कदापि नहीं करना चाहिये। इसमें कर्मवाद का प्रतिपादन करते हुये इसे मनुष्य का लक्षण बताया गया है। राजधर्म-संबंधी जो आदर्श महाभारतकार ने सुनिश्चित किये हैं वे आज के युग में भी अनुकरणीय एवं श्लाध्य हैं।

इस प्रकार भारतीय संस्कृति के विविध पक्षों का सम्यक् निरूपण महाभारत में प्राप्त होता है। रामायण तथा महाभारत दोनों ही हमारी संस्कृति की अक्षयनिधियाँ हैं।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

India Old Days : Search

Search For IndiaOldDays only

  

Related Articles

error: Content is protected !!