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लौकिक साहित्य रामायण के बारे में जानकारी

लौकिक साहित्य रामायण के बारे

लौकिक साहित्य के अंतर्गत सर्वप्रथम उल्लेख महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण का किया जा सकता है, जो हिन्दू जाति का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ है। रामायण को आदि काव्य तथा उसके रचयिता वाल्मीकि को आदि कवि माना जाता है। रामायण के वर्तमान स्वरूप में चौबीस हजार श्लोक हैं, जिससे इसे चतुर्वंशतिसाहस्त्रीसंहिता कहा गया है। यह सात काण्डों में विभाजित है – बाल-कांड, अरण्यकांड, किष्किन्धाकांड, सुन्दरकांड, युद्धकांड तथा उत्तरकाण्ड। इनमें बाल्यकाल तथा उत्तरकांड के बहुत से अंशों को प्रक्षिप्त माना जा सकता है।
इनमें राम का चित्रण विष्णु के अवतार रूप में मिलता है, जो निश्चयतः बाद की कल्पना है। रामायण की तिथि के विषय में मतभेद है। इतना तो स्पष्ट है, कि इसकी मूल रचना तथा वर्तमान स्वरूप के बीच पर्याप्त अंतर होगा। मूल रामायण, महाभारत की अपेक्षा प्राचीनतर है। महाभारत मेें वाल्मीकि का उल्लेख ही नहीं मिलता,अपितु रामायण की संक्षिप्त कथा भी प्राप्त होती है। हरिवंश में रामायण के नाटकीय प्रदर्शन का भी विवरण है।
इन सबसे यही निष्कर्ष निकलता है, कि महाभारत के वर्तमान स्वरूप प्राप्त करने के पूर्व ही रामायण प्रसिद्ध ग्रंथ बन चुका था। महाभारत का अंतिम स्वरूप चौथी शता. ईस्वी में तैयार हुआ था। यही मत अधिकांश स्वीकार किया जाता है।

रामायण एक आदर्श काव्य है। इसमें जिन आदर्शों की प्रतिष्ठा की गयी है, वे मानव-मात्र के लिये अनुकरणीय हैं।यह हमारे उच्च नैतिक आदर्श प्रस्तुत करता है। इसमें सामाजिक संबंधों का बङा ही सुन्दर एवं आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया गया है। राम का नाम सुनते ही हमारे मस्तिष्क पर एक प्रजावत्सल शासक, आज्ञाकारी पुत्र, स्नेही भाई, विपत्ति में पङे हुये मित्रों का सहायक आदि का चित्र अंकित हो उठता है।
जानकी पतिव्रत की मंजुलमूर्ति हैं। श्रेष्ठि काव्य की समस्त विशेषतायें इस ग्रंथ में उपलब्ध होती हैं। पात्रों का चरित्र-चित्रण, प्रकृति-वर्णन, छंदों तथा अलंकारों का प्रयोग आदि सभी अत्यन्त कुशलतापूर्वक किया गया है। राम तथा जानकी का पावन चरित्र इस काव्य का आधार बिन्दु है।
रामराज्य की सच्ची कल्पना देकर वाल्मीकि ने विश्व के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया है। इसमें भारत की सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक तथा आदर्श जीवन की विशेषताओं का एक साथ संकल्प किया गया है। यही कारण है, कि यह एक शाश्वत ग्रंथ बन गया है और आज भी भारत के करोङों लोगों के ह्रदय का हार है।कालांतर के कवियों एवं साहित्यकारों ने न केवल इसे आदर्श माना, अपितु इससे सामग्री लेकर अपनी कृतियों का प्रणयन भी किया। कालिदास तथा भवभूति जैसे महाकाव्यों ने रामायण से प्रेरणा ली थी।

साहित्यिक महत्त्व के साथ ही साथ रामायण का सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारतीय सभ्यता की श्रेष्ठ विशेषताओं का इसमें समावेश है। भारतीय सभ्यता की प्रतिष्ठा गृहस्थाश्रम है तथा गृहस्थ जीवन का ही विस्तारपूर्वक चित्रण इस ग्रंथ में किया गया है।वाल्मीकि की दृष्टि में राम ईश्वर नहीं, अपितु आदर्श मानव है, जिनका चरित्र उज्जवल है। चरित्र ही मानवता की कसौटी है यह आदिकवि का सुनिश्चित मत है।
यही मनुष्य को देवता की कोटि में पहुँचाता है। आदर्श चरित्र का पूर्ण परिपाक हमें राम के व्यक्तित्व में देखने को मिलता है। रामराज्य की जो उदात्त कल्पना वाल्मीकि ने प्रस्तुत की है, वह हमारे देश के लिये निरंतर पाथेय रहेगा। रामायण के आदर्श एवं सिद्धांत देश और काल की सीमाओं से आबद्ध नहीं हैं, अपितु उनकी सार्वभौम मान्यता है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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