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लार्ड कार्नवालिस(lord-cornwallis) द्वारा किये गये सुधार कार्य

लार्ड कार्नवालिस

लार्ड कार्नवालिस- फरवरी,1785 में वारेन हेस्टिंग्ज के स्वदेश लौटने के बाद लगभग डेढ वर्ष तक मेकफर्सन ने गवर्नर-जनरल के पद पर कार्य किया। सितंबर,1786 में लार्ड कार्नवालिस को गवर्नर-जनरल के पद का कार्य किया। जब वह भारत आया, उस समय कंपनी की शासन-व्यवस्था में अनेक दोष विद्यमान थे।

अतः कार्नवालिस ने शासन-व्यवस्था के दोषों को दूर करने हेतु कंपनी की आवश्यकता के अनुसार निर्णय लिये। वस्तुतः कार्नवालिस को उन कठिनाइयों का सामना नहीं करना पङा जिनसे वॉरेन हेस्टिंग्ज को जूझना पङा। इसका कारण यह था कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री विलियम पिट्ट तथा बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अध्यक्ष डूण्डास, दोनों से उसकी अच्छी मित्रता थी। अतः वह स्वेच्छा से निर्णय लेने में कभी नहीं हिचका।

कार्नवालिस के सुधारों को हम चार भागों में बाँट सकते हैं-

  1. प्रशासकीय सुधार
  2. व्यापारिक सुधार
  3. न्याय संबंधी सुधार
  4. भूमि का स्थायी बंदोबस्त।

    प्रशासकीय सुधार- कार्नवालिस ने ब्रिटिश शासन-प्रणाली को ही भारत में लागू करने के उद्देश्य से विभिन्न सुधार किये गये थे, क्योंकि वह इसे भारतीय व्यवस्था से श्रेष्ठ मानता था।इसी समय यह परंपरा स्थापित हुई कि हर संभव उपाय से भारतीय प्रणाली की तुलना में ब्रिटिश प्रणाली की श्रेष्ठता सिद्ध की जाय। अतः कार्नवालिस जिस प्रणाली को लागू करना चाहता था, उसके लिए यूरोपियन लोगों पर ही विश्वास किया जा सकता था। इसलिए उसने यह नियम बना दिया कि कंपनी शासन के सभी उच्च पदों पर केवल यूरोपियनों को ही नियुक्त किया जाय।

    कार्नवालिस की दृष्टि में कोई भी भारतीय,शासन को समुचित ढंग से चलाने के योग्य नहीं थी। इस प्रकार भारतीयों की योग्यता पर अविश्वास करके कार्नवालिस ने भारतीयों के लिए उच्च पदों के द्वार बिल्कुल बंद कर दिये। इसके साथ ही उसने यूरोपियन लोगों को भी उनकी योग्यता एवं कुशलता के आधार पर नियुक्त किया न कि संचालकों के सिफारिशी – पत्रों के आधार पर। कार्नवालिस के भारत आने के समय कंपनी के अधिकारियों का वेतन कम था, किन्तु उनकी आय के साधन असीमित थे। प्रायः सभी अधिकारी अपने निजी व्यापार में व्यस्त थे।
  5. बनारस में रेजीडेन्ट का वेतन एक हजार रुपया प्रतिमाह था, किन्तु वह अपने अधिकार और प्रभाव का उपयोग करके लगभग तीस हजार रुपया प्रतिमाह कमा रहा था। अतः कार्नवालिस ने अयोग्य अधिकारियों का स्थानांतरण किया तथा भ्रष्ट अधिकारियों को पदच्युत कर दिया। उसने कंपनी के अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश भेजे कि कोई भी अधिकारी निजी व्यापार नहीं करेगा तथा अन्य साधनों से अपनी आय बढाने का कोई कार्य नहीं करेगा।

    इन निर्देशों को अवज्ञा करने पर उन्हें तत्काल पदच्युत कर दिया जायेगा । कार्नवालिस ने यह भी अनुभव किया कि अधिकारियों का वेतन बहुत कम है , इसीलिए वे निजी व्यापार में व्यस्त रहते हैं। अतःकंपनी के अधिकारियों के वेतन में वृद्धि कर दी। वारेन हेस्टिंग्ज के समय पहली बार जिलों में कंपनी के अधिकारी नियुक्त किये गये थे, किन्तु इन अधिकारियों को बनाये रखने के संबंध में कोई निश्चित नीति नहीं अपनाई गई थी। कार्नवालिस के भारत आने से पूर्व संचालकों ने यह निर्णय लिया था कि कलेक्टर का पद स्थाई रूप से बनाये रखा जाय। उस समय से केन्द्रीय सरकार के प्रतिनिधि के रूप में प्रत्येक जिले में इस अधिकारी की नियुक्ति करने की प्रथा चल पङी थी। कार्नवालिस ने बंगाल में 35 जिलों को घटाकर 23 जिले कर दिये।

    इन जिलों में एक ब्रिटिश कलेक्टर तथा उसके दो सहायक नियुक्त किये जाने लगे। राजस्व जमा कराना,जिले में शांति एवं व्यवस्था बनाये रखना,पुलिस व जेल की निगरानी रखना, नशीली वस्तुओं के विक्रय के नियम बनाना आदि का उत्तरदायित्व कलेक्टर पर था।कलकत्ता में कानून व व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं थी। कलकत्ता से कुछ दूरी पर स्थित गाँवों में गुंडों व बदमाशों ने अड्डे बना रखे थे। लोगों का सायंकाल के बाद सङक पर निकलना खतरे से खाली नहीं था। अतः कलकत्ता में पुलिस प्रशासन की देखरेख के लिए नये संचालक की नियुक्ति की गई।

    कार्नवालिस ने जमींदारों को पुलिस प्रशासन से मुक्त कर जिले के ब्रिटिश मजिस्ट्रेट को पुलिस की निगरानी में रखने का दायित्व सौंपा। ब्रिटिश मजिस्ट्रेट एक पुलिस अधीक्षक की नियुक्ति करने लगा, जो व्यक्तिगत रूप से पुलिस की देखरेख करता था। जिले में प्रति बीस मील के अंतर पर एक पुलिस थाना स्थापित किया गया तथा थाने में दरोगा नामक कर्मचारी की नियुक्ति की गई।

    व्यापारिक सुधार-  ईस्ट इंडिया कंपनी मुख्य रूप से एक व्यापारिक संस्था थी, लेकिन व्यापार से कंपनी को कोई विशेष लाभ नहीं हो रहा था। क्योंकि कंपनी की व्यापारिक प्रणाली दोषपूर्ण थी।कंपनी द्वारा स्थापित व्यापार बोर्ड तथा ठेकेदारों के बीच की कङी में कुछ गङबङ दिखाई दे रही थी।

    ठेकेदार वस्तुओं का मूल्य तो अधिक ले रहे थे, किन्तु माल का स्तर घटिया दे रहे थे। अतः कार्नवालिस ने व्यापार बोर्ड का पुनर्गठन किया।बोर्ड के सदस्यों की संख्या 12 से घटाकर 5 कर दी गई। और यह निश्चित कर दिया गया कि बोर्ड सर्वोचेच कौंसिल के अधीन कार्य करेगा। प्रत्येक ऐसे व्यापारिक केन्द्र पर जहाँ कंपनी का व्यापार होता था, वहाँ एक-एक रेजीडेंट उत्पादकों से सीधा संपर्क स्थापित कर माल खरीदने लगा।

    कार्नवालिस ने अपने कर्मचारियों तथा स्वतंत्र व्यापारी मिलकर एक एजेन्सी हाउस बना लेते थे तथा कंपनी को माल बेचने में यह एक प्रकार से एजेंट का कार्य करते थे। इससे कर्मचारियों को लाभ भी प्राप्त होता रहता था और औपचारिक रूप से उनका निजी व्यापार भी बंद हो गया।ये एजेन्सी हाउस मुख्य रूप से नील और अफीम का व्यापार करते थे।जुलाहों से माल खरीदने के संबंध में यह नियम बना दिया गया कि कंपनी जितना माल खरीदना चाहेगी, उसका पूरा मूल्य पेशगी के तौर पर दिया जायेगा तथा जुलाहे उतना ही माल देने हेतु बाध्य होंगे जितना रुपये उन्होंने पेशगी लिया है। रेजीडेन्ट के लिए यह व्यवस्था की गई कि रेजीडेण्ट वस्तुओं को खरीदते समय उत्पादन करने वालों अथवा व्यापारियों को परेशान न करे

    न्याय संबंधी सुधार – न्याय के क्षेत्र में कार्नवालिस ने वारेन हेस्टिंग्ज  द्वारा प्रारंभ किये गये कार्य को आगे बढाया। उसने सर जॉन विलियम, जो कंपनी विशेषज्ञ था, की सहायता से न्यायिक सुधार किये ।
    कार्नवालिस के पूर्व दीवानी न्यायाधीशकेवल न्यायिक कार्य करते थे, उन्हें लगान वसूली से कोई संबंध नहीं था।  अतः 1786 में संचालक मंडल ने आदेश दिया कि मजिस्ट्रट , कलेक्टर और जज के कार्य एक ही व्यक्ति द्वारा किये जाये। अतः जून,1787 में कार्नवालिस ने इन तीनों पदों को एक साथ मिला दिया। किन्तु 1793 में भूमि का स्थायी बंदोबस्त करने के बाद भूराजस्व वसूल करने के कार्य को न्याय से अलग कर दिया। कार्नवालिस ने दीवानी व फौजदारी अदालतों को श्रेणीबद्ध किया।

    दीवानी तथा फौजदारी अदालतों को चार श्रेणियों में विभाजित किया- छोटी अदालतें, जिला दीवानीअदालतें,प्रांतीय दीवानी अदालतें,सदर दीवानी अदालत। कार्नवालिस ने प्रशासकीय,न्यायिक,पुलिस, राजस्व आदि के संबंधमें सुधार किये,उन्हें कार्यान्वित करने के लिए उसने नियमों की एक संहिता भी तैयार करवाई , उसे कार्नवालिस कोड कहा जाता था।

    भूमि का स्थायी बंदोबस्त – वॉरेन हेस्टिंग्ज ने भू-राजस्व प्रणाली के संबंध में अनेक प्रयोग किये थे, लेकिन उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी।जब कार्नवालिस भारत आया, उस समय एक वर्षीय बंदोबस्त लागू था। ठेकेदार कृषकों का शोषण करते थे। संचालकों ने कार्नवालिस को जमीदारों के साथ उदार दरों पर समझौता करने का आदेश दिया था, ताकि जमीदारों से समय पर तथा नियमित रूप से भू-राजस्व प्राप्त होता रहे।कार्नवालिस ने देखा कि प्रचिलित भू-राजस्व व्यवस्था से किसानों व जमीदारों दोनों की स्थिति बिगङती जा रही थी।

    स्वयं कार्नवालिस ने कहा थी कि,जब मैं भारत पहुँचा,उस समय मैंने कृषि व व्यापार को गिरते देखा। उस समय खेतिहर और जमीदार निर्धनता के गर्त में डूबे जा रहे थे। और महाजन ही समाज के सबसे अधिक संपन्न अंग थे।

22 मार्च 1793 को कार्वालिस ने भूमि के स्थायी प्रबंध को करने की घोषणा की। भूमि का स्थायी बंदोबस्त के बारे में हम आपको आगे की पोस्ट में बतायेंगे।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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