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मुहम्मद बिन तुगलक की राजधानी का परिवर्तन

मुहम्मद बिन तुगलक की राजधानी – सुल्तान ने राजधानी का परिवर्तन क्यों किया? बरनी लिखता है कि चूँकि देवगिरी नगर साम्राज्य के केंद्र में स्थित था तथा सभी दिशाओं से उसकी एक जैसी दूरी थी अतः उसे नई राजधानी के लिये चुना गया। ऐसा प्रतीत होता है कि बरनी भौगोलिक स्थिति से पूरी तरह परिचित नहीं था। इब्न बतूता कुछ दूसरी बात कहता है। उसके अनुसार दिल्ली निवासियों ने सुल्तान के विरुद्ध निंदनीय पत्र लिखे थे, इसलिए उनको सजा देने के इरादे से आज्ञा दी गयी कि सभी निवासी शहर छोङकर 700 मील देवगिरी को प्रस्थान करें। विचार करने पर इब्नबतूता की बात सही नहीं लगती क्योंकि जिस समय राजधानी का परिवर्तन हुआ उस समय वह भारत नहीं पहुँचा था, दूसरे दिल्ली के सभी निवासी पढे-लिखे नहीं हो सकते जो ऐसे पत्र लिख सकें। यह शरारत की भी गयी हो तो कुछ गिने-चुने व्यक्तियों की ही हो सकती है, जिनकी शाही महल तक पहुँच होगी। कुछ लोगों के लिये सारे शहर को सजा देना तर्कसंगत नहीं लगता। इसामी के अनुसार सुल्तान दिल्ली के लोगों (खल्क) पर हमेशा क्रुद्ध रहता था इसलिए वह इन लोगों को यहाँ से निकालना चाहता था। इसके विपरीत गार्डनर ब्राउन ने यह मत प्रकट किया कि मंगोलों के निरंतर आक्रमणों से साम्राज्य बनता गया। इस तर्क में भी इतना बल नहीं है क्योंकि मुहम्मद बिन तुगलक के राजगद्दी पर आने के कुछ समय पहले ही मंगोलों के आक्रमण होने बंद हो गए थे। मेहँदी हुसैन इस नष्कर्ष पर पहुँचे है कि दक्षिण में मुसलमानों की कमी के कारण देवगिरि को दूसरा मुख्य प्रशासनिक केंद्र बनाना पङा। देवगिरि का नाम दौलताबाद रखा गया और यह मुस्लिम संस्कृति का केंद्र बन गया। यहाँ पर कई सूफी संत भी बस गए और यह इसी संस्कृति का प्रमाण है कि तदुपरांत इसी स्थान से बहमनी राज्य का विकास हुआ। राजधानी परिवर्तन का कुछ भी कारण रहा हो इससे तीन बातें स्पष्ट हो जाती हैं – 1.) दक्षिण में, जो सल्तनत का अंग बन चुका था, अभी भी असुरक्षा की स्थिति बनी हुई थी। मुहम्मद तुगलक के आरंभिक काल में बहाउद्दीन गुरशस्प का विद्रोह हुआ जिसे बङी कठिनाई से दबाया गया। सुल्तान को विश्वास हो गया कि दक्षिण में एक शक्तिशाली प्रशासनिक केंद्र का होना आवश्यक है जहाँ से दक्षिण के किसी भी विद्रोह को आसानी से दबाया जा सके।

इसके अलावा सुल्तान की मुस्लिम संस्कृति को विकसित करने की इच्छा को भी असंगत नहीं कहा जा सकता क्योंकि ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि सुल्तान के साथ अफसरों के अलावा कई उलेमा व शेक भी दौलताबाद गए थे। 2.) राजधानी में परिवर्तन होने के बावजूद दिल्ली वीरान नहीं हो सकी, बल्कि पहले की तरह आबाद रही तथा पहले की तरह प्रशासन सशक्त रूप से चलता रहा क्योंकि इसी समय जब राजधानी दौलताबाद गई तो मुल्तान से बहराम खिशलू खाँ के विद्रोह को दिल्ली से भेजी गयी सेना ने सफलतापूर्वक दबा दिया। दिल्ली तथा दौलताबाद के बीच संपर्क बना रहा। इसका अर्थ यह भी हुआ कि दोनों मुख्य प्रशासनिक केंद्र बने रहे। 3.) दिल्ली से जो अमीर व उलेमा दौलताबाद गए थे वे दिल्ली की शान को नहीं भूल सके। उनकी नाराजगी बढती गयी तथा वे हर क्षण वापस आने का प्रयत्न करने लगे। सुल्तान ने उनकी भावनाओं को समझ लिया तथा कुछ वर्षों के बाद उन्हें दिल्ली जाने की आज्ञा जारी कर दी। लोगों के मन में सुल्तान के प्रति आदर कम हो गया। जो लोग वहाँ रह गए उन्होंने इसी प्रशासनिक केंद्र तथा संस्कृति के प्रभाव से बहमनी राज्य के पनपने में सहायता दी।

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