प्राचीन भारतइतिहासवैदिक काल

ऋग्वैदिक काल की धार्मिक स्थिति

धार्मिक दशा- ऋग्वैदिक आर्यों का धर्म साधारण था। कर्म पर आधारित धार्मिक व्यवस्था थी अर्थात् जो जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल मिलेगा। कन्या की विदाई के समय दिया जाने वाले दान वहतु कहलाता है। 

धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य- 

  • साधारण तथा आडंबररहित / कर्मकांड रहित धर्म था।
  • देवताओं का मानवीकरण किया गया था ।
  • प्रकृति का दैवीकरण।
  • प्रवृत्तिमार्गी(धर्म  का स्वरूप) था।
  • धर्म में पुरुष देवताओं की प्रधानता थी।
  • यज्ञ का प्रचलन सिमित था। और उसमें कर्मकाण्ड एवं बलि का प्रचलन न के बराबर था।
  • ऋग्वैदिक आर्यों की सोच उपयोगितावादी थी।
  • इस काल की मुख्य उपासना पद्दती प्रार्थना थी।
  • इस संसार को आर्य कष्ट / दुख का कारण नहीं मानते थे।
  • हम कह सकते हैं कि आर्य भौतिकवादी थे।
  • मोक्ष की संकल्पना का विकास नहीं था। मृत्यु  की बात दुश्मनों के लिए सोचते थे। संसार में प्रवृत थे। इसी जीवन को अच्छा मानते थे।
  • प्रार्थनाओं में भौतिक सुविधाओं की मांग करते थे।
  • देवियों की तुलना में देवताओं को उच्च स्थान प्राप्त थे।
  • वैदिक काल में कुछ देवताओं की तुलना पशु रूप में होती थी। जैसे- अहिबुर्धन्य, अज-एकपाद, इंद्र(वृषभ), सूर्य(देगवान घोङा), इंद्र की कुतिया(सरामा)-(जो आर्यों की गायों को खोजने का कार्य करती थी।)
  • पशु पूजा इस काल में नहीं होती थी।
  • द्यौस को सबसे प्राचीन देवता माना गया है। द्यौस देवता की पत्नी पृथ्वी को बताया गया है।
  • इंद्र, अग्नि, वरुण को सर्वोच्च देवता माना गया है।
  • सोम देवता – ऋग्वेद में 114 सूक्त समर्पित हैं तथा वनस्पति के देवता कहा गया है।
  • मित्र -वरुण से संबंधित देवता हैं। मित्र को प्रतिज्ञा का देवता माना गया है।
  • अश्विन(नासत्य)- चिकित्सा के देवता इसे भीषक(वैद्य) भी कहा गया है।
  • मरुत- आँधी के देवता।
  • यम- मृत्यु के देवता।
  • पूषण –  सङक, चारागाह, पशुपालन।
  • विष्णु – तीन कदम वाले देवता, इनका संबंध यज्ञ से था।
  • रुद्र –  अनैतिक आचरण से संबंधित देवता ।
  • ऋग्वैदिक काल की देवीयाँ-उषा,निशा, पृथवी, सरस्वती, अरण्ययी(जंगल की देवी), उर्वशी(अप्सरा),अदिति(देवताओं की माता) आदि देवियों के नाम भी मिलते हैं।
  • ऋग्वेद में ऋषभदेव (आदिनाथ)तथा अरिष्टनेमी के नाम का भी उल्लेख मिलता है।

इंद्र- ऋग्वैदिक काल के सबसे महत्वपूर्ण देवता इसे वर्षा का देवता भी कहा गया है।

  • 250 सूक्त समर्पित।
  • अन्य नाम- तोनन,पुलुषि, पुरंदर, पुरभिद, अत्सुजीत, वज्रपाणि।
  • पृथ्वी व द्यौस के पुत्र, अग्न के भाई, मरुत इंद्र का सहयोगी था।
  • वृत्त(अकाल का राक्षस) नामक राक्षक को मारने में इन्द्र की सहायता विष्णु ने की थी।

अग्नि- 

  • 200 सूक्त समर्पित।
  • ये दूसरे प्रमुख देवता हैं।
  • यज्ञ व ग्रह के देवता, पथप्रदर्शक, घर का अतिथि, पुरोहितों के देवता।
  • देवता तथा मनुष्यों के बीच मध्यस्थ कहा गया है।

वरुण-

  • 30 सूक्त समर्पित।
  • जल के देवता।
  • इन्हें राजा या असुर भी कहा गया है।
  • ऋतस्यगोपा- ऋत्(नैतिक नियम के संरक्षक)
  • वरुण विशिष्ट प्रकार के देवता हैं जो प्रार्थना या यज्ञ से प्रशन्न नहीं होते, इनको प्रश्नन करने के लिये जीवन -चरित्र भी अच्छा चाहिये।

क्षेत्र आधार पर देवताओं की स्थिति-

  1. आकाश लोक- वरुण, मित्र, सूर्य,उषा,पूषण, विष्णु, आदित्य,अश्विन।
  2. अंतरिक्ष लोक/वायुलोक- यम,मरुत, इंद्र, रुद्र, पुर्यन्य, वायु, वात,आपः, प्रजापति, अदिति।
  3. भूलोक/ पृथ्वी लोक-सरस्वती, पृथ्वी, अग्नि,अरव्ययी, सोम, बृहस्पति, अपांनपात, मातरिश्वन्, नदियों के देवता।

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