मौखरि शासक अवंतिवर्मा का इतिहास
सर्ववर्मा के बाद उसका पुत्र अवंतिवर्मा शासक बना। हर्षचरित में अवंतिवर्मा की प्रशंसा करते हुए कहा गया है, कि वह अपने काल मौखरिवंश समस्त राजाओं का सिरमौर एवं भगवान शिव के चरण चिन्हों की भाँति समस्त संसार में पूजित था।
सुधाकर चट्टोपाध्याय के विचार से इस समय भी उत्तरगुप्त मौखरियों की अधीनता स्वीकार करते थे और महासेनगुप्त, अवंतिवर्मा का सामंत था इस प्रकार अवंतिवर्मा एक शक्तिशाली राजा था। इसके राज्य में कन्नौज के अतिरिक्त पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार का एक बङा भाग सम्मिलित था।
नालंदा मुद्रालेख में उसे महाराजाधिराज कहा गया है। मुद्राराक्षस से पता चलता है, कि उसने म्लेच्छों (हूणों) को जीता था। उसी के समय में थानेश्वर के पुष्यभूतिवंश के साथ मौखरि वंश का वैवाहिक संबंध स्थापित हुआ, जो तत्कालीन इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना थी।
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References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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