इतिहासदक्षिण भारतपल्लव राजवंशप्राचीन भारत

नंदिवर्मन तृतीय पल्लवों के समय का शासक था

कांची के पल्लव शासक दंतिवर्मन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र नंदिवर्मन तृतीय(Nandivarman III) (846-69ई.) शासक बना। वह एक पराक्रमी शासक था। अभिलेखों से पता चलता है, कि उसने पाण्ड्यों की सेना को तेल्लारु (कांञ्ची के पास) में रोका तथा उसे कई युद्धों में पराजित किया। वैलूरपाल्यम लेख में उसकी इस सफलता का उल्लेख मिलता है। इसमें कहा गया है, कि उसने युद्ध भूमि में अपने शत्रुओं को परास्त कर अपनी भुजाओं के बल से अपना साम्राज्य प्राप्त किया था। नंदिवर्मन का पाण्ड्य प्रतिद्वन्द्वी श्रीमार था। तमिल रचना नंदिकलंबकम के अनुसार नंदिवर्मन ने पलैयूर, वेल्लार, नेल्लारु, कुरुगोण्ड, तेल्लारु, तोण्डी, वेरियल्लूर, कुरुकोट्टै आदि युद्धों में विजय प्राप्त की थी। ऐसा लगता है, कि इनमें उसने पाण्ड्यों के सामंतों को पराजित किया था। इसमें उसे कावेरी द्वारा सिंचित प्रदेश का स्वामी कहा गया है।

इस प्रकार नंदिवर्मन ने अपने वंश की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर लिया था तथा उसने कावेरी क्षेत्र पर पुनः अपना अधिकार सुदृढ कर लिया। गंग शासकों ने भी उसकी अधीनता स्वीकार की। राष्ट्रकूटों के साथ उसका मैत्री संबंध स्थापित हुआ तथा राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष ने अपनी कन्या शंखा का विवाह उससे कर दिया।

नंदिवर्मन तृतीय शैवमतानुयायी था और उसने तमिल साहित्य को संरक्षण प्रदान किया था। उसकी राजसभा में तमिल भाषा का प्रसिद्ध कवि संत पेरुन्देवनार निवास करता था, जिसने भारतवेणवा नामक ग्रंथ की रचना की थी।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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