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नजीब खाँ कौन था ? अहमदशाह अब्दाली ने उसे किस पद पर नियुक्त किया था?

नजीब खाँ

नजीब खाँ (Najeeb Khan)

नजीब खाँ रुहेलखंड का अफगान नेता था। अहमदशाह अब्दाली ने नजीब खाँ को मीरबख्शी के पद पर नियुक्त किया था।

अहमदशाह अब्दाली एक अच्छे कुल का अफगान पदाधिकारी था। नादिरशाह उसका बहुत आदर करता था। उसने एक बार कहा भी था कि मैंने अहमदशाह अब्दाली जैसे चरित्र का व्यक्ति सारे ईरान, तूरान और हिन्दुस्तान में नहीं देखा। 1747 में नादिरशाह का वध कर दिए जाने पर अहमदशाह अब्दाली कंधार का स्वतंत्र शासक बन बैठा और उसने अपने सिक्के भी चला दिए। शीघ्र ही उसने काबुल को जीत लिया और आधुनिक अफगान राज्य की नींव रखी। उसने 50,000 सेना एकत्रित की और नादिरशाह के वैध उत्तराधिकारी के रूप में पश्चिमी पंजाब पर अपना दावा किया। उसने पंजाब पर आक्रमण किए और पानीपत का तीसरा युद्ध लङा।

1748 में उसका पंजाब पर प्रथम आक्रमण, असफल रहा परंतु वह सुगमता से हार मानने वाला नहीं था और 1749 में उसने पुनः आक्रमण किया और पंजाब के गवर्नर मुईनुलमुल्क को परास्त किया। परंतु 14,000 रुपया वार्षिक कर के वचन देने पर वह लौट गया। नियमित रूप से यह रुपया न मिलने पर उसने 1752 में पंजाब पर तीसरा आक्रमण किया। सम्राट अहमदशाह ने नादिरशाह की तरह पुनः लूटे जाने के डर से, उसे पंजाब तथा सिंध का प्रदेश दे दिया।

नवम्बर, 1753 में मुईनुलमुल्क की मृत्यु हो गया और पंजाब में अव्यवस्था फैल गई। वजीर इमानुलमुल्क ने अदीना बेग खां को पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अहमदशाह अब्दाली ने इसे पंजाब के काम में हस्तक्षेप बतलाया और नवम्बर 1756 में वह भारतीय सीमाओं का उल्लंघन कर उसमें प्रवेश कर गया। जनवरी 1757 में वह दिल्ली में प्रवेश कर गया और उसने मथुरा और आगरे तक लूटमार की। अपनी वापिसी से पहले अब्दाली भारत में आलमगीर द्वितीय को सम्राट, इमादुलमुल्क को वजीर, और रुहेला सरदार नजीबुद्दौला को साम्राज्य का मीर बख्शी और अपना मुख्य ऐजन्ट बना कर वापिस चला गया।

मार्च 1858 में पेशवा रघुनाथ राव दिल्ली पहुंचा और उसने नजीबुद्दौला को दिल्ली से निकाल दिया। फिर पंजाब को लूटा और अंत में अदीना बेग खां को अपनी ओर से पंजाब का गवर्नर नियुक्त कर लौट गया। अहमदशाह अब्दाली मराठों की इस उद्दंडता का बदला लेने के लिए पुनः भारत आया। पानीपत का तीसरा युद्ध 14 जनवरी, 1761 को हुआ जिसमें मराठों की पूर्णतया हार हुई।

अहमदशाह ने 20 मार्च, 1761 को दिल्ली छोङने से पहले पुनः शाह आलम को सम्राट, नजीबुद्दौला को मीर बख्शी और इमादुलमुल्क को वजीर नियुक्त किया। अहमदशाह अब्दाली का अंतिम आक्रमण 1767 में हुआ।

अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों से मुगल साम्राज्य के पतन की गति और भी तेज हो गयी। उसके बार-बार आक्रमण करने से मुगल साम्राज्य का खोखलापन और भी स्पष्ट हो गया और देश में अराजकता और गङबङी फैल गई। मुगल सम्राट की शक्तिहीनता का उदाहरण यह था कि सम्राट शाहआलम द्वितीय बारह वर्ष तक दिल्ली में प्रवेश नहीं कर सका और केवल मराठा सेना ही 1772 में उसे दिल्ली लिवा लाई और सिंहासन पर बैठाया।

रुहेला सरदार नजीबुद्दौला, उसके बाद उसका पुत्र जाब्ता खां और फिर उसका पोता गुलाम कादिर दिल्ली के एकमात्र स्वामी थे। 30 जुलाई, 1788 को गुलाम कादिर ने राजमहल में प्रवेश कर शाह आलम को सिंहासन से उतार उसकी आंखें निकलवा दी (10 अगस्त, 1788) परंतु अक्टूबर 1788 में महादजी सिंधिया ने पुनः सम्राट की ओर से, दिल्ली पर अधिकार कर लिया और फिर 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और शाह आलम कंपनी का पेन्शनर बन गया।

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