नंदिवर्मन् द्वितीय पल्लव राजवंश से संबंधित था
कांची के पल्लव शासक परमेश्वरवर्मन द्वितीय की मृत्यु के बाद पल्लव राज्य में संकट के बादल छा गये, क्योंकि उसकी शाखा में कोई भी उत्तराधिकारी बनने वाला नहीं था।अतः कांची के लोगों ने समानान्तर शाखा के एक राजकुमार नंदिवर्मन द्वितीय को राजा चुना, जो हिरण्यवर्मा का पुत्र था। वह सिंहविष्णु के भाई भीमवर्मा की परंपरा का शासक था। इस परंपरा के शासक सामंत स्थिति के थे।ऐसा विश्वास किया जाता है, कि परमेश्वरवर्मन का चित्रमाय नामक एक पुत्र भी था। राजसिंहासन से वंचित हो जाने पर उसने पाण्ड्य नरेश राजसिंह प्रथम के दरबार में शरण ली। राजसिंह ने उसकी सहायता हेतु नंदिवर्मन के विरुद्ध अभियान किया। उसने तंजौर के आसपास कई युद्धों में पल्लव नरेश को हराया तथा नंदिपुर के दुर्ग में उसे बंदी बना लिया। परंतु नंदिवर्मन के सेनापति उदयचंद्र ने युद्ध में चित्रमाय की हत्या कर दी तथा तंजोर जिले में कई युद्धों में पाण्ड्यों को पराजित किया और अपने स्वामी नंदिवर्मन को छुङा लिया। इसके बाद राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग से उसका युद्ध हुआ। पहले दंतिदुर्ग ने नंदिवर्मा को हराकर कांची पर अधिकार कर लिया, परंतु कालांतर में दोनों में संधि हो गयी और राष्ट्रकूट नरेश ने अपनी कन्या रेवा का विवाह नंदिवर्मा के साथ कर दिया। तंडनतोट्टम दानपत्र से पता चलता है, कि नंदिवर्मा ने गंगराज्य पर आक्रमण कर उसके दुर्ग पर अधिकार कर लिया। उसने गंग शासक शिवमार अथवा श्रीपुरुष को पराजित कर उससे उग्रोदय मणि वाला हार छीन लिया।
नंदिवर्मन वैष्णव मतानुयायी था। उसने कला और साहित्य को पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान किया। उसने कांची के मुक्तेश्वर मंदिर तथा बैकुण्ठ-पेरुमाल मंदिर का निर्माण करवाया था। प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरुमङ्गई आलवार उसके समकालीन थे। उसने तमिल प्रदेश में वैष्णव धर्म का प्रचार किया।नंदिवर्मन द्वितीय ने 730-800ई. के लगभग तक शासन किया।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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