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पाण्ड्य राजवंश का इतिहास

पाण्ड्य राज्य कावेरी के दक्षिण में स्थित था। तमिल प्रदेश का तीसरा राज्य पाण्ड्यों का राज्य था, जिसमें प्रारंभ में तिनेवेली, रामनाड तथा मदुरा का क्षेत्र सम्मिलित था। इसकी राजधानी मदुरा थी। पाण्ड्यों का इतिहास भी अत्यन्त प्राचीन है। रामायण, महाभारत, कौटिल्य के अर्थशास्त्र, अशोक के लेखों के साथ-साथ यूनानी-रोमन (क्सालिकल) विवरणों में भी इनका उल्लेख प्राप्त होता है।

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इस वंश का प्रथम महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली राजा नेडुंजेलियन (210ई.) हुआ।

चेर तथा चोल राजवंश का इतिहास

अध्ययन की सुविधा के लिये पाण्ड्य वंश का इतिहास तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है-
  1. संगमकालीन पाण्ड्य राज्य ।
  2. कंडुगोन (छठी शता.ई.) द्वारा स्थापित प्रथम पाण्ड्य साम्राज्य।
  3. सुन्दरपाण्डय द्वारा तेरहवीं शती. में स्थापित द्वितीय पाण्ड्य साम्राज्य।

संगम साहित्य क्या था

तमिल भाषा की प्राचीनतम रचना संगम साहित्य से पाण्ड्य वंश के प्राचीन इतिहास पर कुछ प्रकाश पङता है। संगम साहित्य में कुछ पाण्ड्य राजाओं के नाम प्राप्त होते हैं, जैसे – नेड्डियोन, नेडिडुंजेलियन आदि। परंतु उनका क्रमबद्ध इतिहास नहीं मिलता।

नेडुंजेलियन

राजगद्दी प्राप्त करने के समय नेडुन्जेलियन अल्पायु का था। उसके सम्मुख एक भारी विपत्ति आई। चेर, चोल तथा पाँच अन्य राजाओं ने मिलकर उसके राज्य को जीता तथा राजधानी मदुरा को घेर लिया। किन्तु नेडुंजेलियन अत्यन्त वीर तथा साहसी था। उसने अपने शत्रुओं को राजधानी से खदेङ दिया। वह उनका पीछा करता हुआ चोल राज्य की सीमा तक पहुँच गया जहाँ तलैयालनगानमे (तंजौर जिला) के युद्ध में सभी को बुरी तरह परास्त किया। चेर शासक शेय को उसने बंदी बनाकर अपने कारागार में डाल दिया। इसके अलावा मिल्लै तथा मुतुरु नामक दो प्रदेशों पर भी उसने अधिकार कर लिया। इस प्रकार अल्पकाल में ही उसने ने केवल अपने पैतृक राज्य को सुरक्षित किया, अपितु उसका विस्तार भी किया।

महान विजेता होने के साथ-साथ नेडुन्जेलियन विद्वानों का आश्रयदाता, उदार प्रशासक एवं धर्मनिष्ठ व्यक्ति था। संगम युगीन कवियों ने उसकी उदारता एवं दानशीलता की प्रशंसा की है। वह वैदिक धर्म का पोषक था तथा उसने अनेक यज्ञों का अनुष्ठान करवाया था। उसकी राजधानी मदुरा तत्कालीन भारत की अत्यन्त प्रसिद्ध व्यापारिक एवं सांस्कृतिक नगरी बन गयी थी।

नेडुन्जेलियन के बाद कुछ समय के लिये पाण्ड्य राज्य का इतिहास अंधकारपूर्ण हो गया । सातवीं शता. में पाण्ड्य सत्ता का पुनः उत्कर्ष हुआ।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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