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चेर राजवंश का इतिहास

संगम युग का दूसरा प्रमुख राज्य चेरों का राज्य था, जो आधुनिक केरल प्रांत में स्थित था। इसके अंतर्गत कोयम्बटूर का कुछ भाग तथा सलेम (प्राचीन कोंगू जनपद) भी सम्मिलित थे। संगम कवियों ने चोरों की प्राचीनता को महाभारत के युद्ध से जोङने का प्रयास किया है, जो मात्र काल्पनिक है।

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संगम साहित्य क्या था

संगम युग का प्रथम ऐतिहासिक चेर शासक उदियंजीरल (130 ई.) हुआ। उसके विषय में यह कहा गया है, कि उसने महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले सभी योद्धाओं को भोजन कराया था। इसकी किसी भी उपलब्धि की जानकारी का पता नहीं चलता है। उसका पुत्र तथा उत्तराधिकारी नेदुंजीरल आदन्(155ई.)हुआ। उसके विषय में यह सूचना मिलती है, कि उसने मालाबार-तट पर किसी शत्रु को पराजित किया तथा कुछ यवन व्यापारियों को बंदी बना लिया। यहां यवनों से तात्पर्य रोम तथा अरब के व्यापारियों से है। एक अनुश्रुति में बताया गया है, कि उसने सात राजाओं को हराकर अधिराज की उपाधि धारण की थी। यह भी विवरण आया है, कि हिमालय तक अपने राज्य का विस्तार करके आदन ने इमयवरम्बन की उपाधि धारण की थी। किन्तु यह काल्पनिक है। नेदुंजीरल आदन किसी चोल शासक के विरुद्ध लङते हुये मारा गया।

आदन के दो पुत्र थे – कलंगायक्कणि नारमुडिच्छच्छीरल तथा सेनगुट्टवन इनमें सेनगुट्टवन ही अधिक महत्त्वपूर्ण है।

संगम युग का इतिहास

सेनगुट्टवन

वह 180 ई. के लगभग राजा बना। उसके यश का गान संगम युग के सुप्रसिद्ध कवि परणर ने किया है। वह एक वीर योद्धा तथा कुशल सेनानायक था। उसके पास घोङे, हाथी तथा नौसैनिक बेङा भी था। उसने अधिराज की उपाधि ग्रहण की थी। उसने पूर्वी तथा पश्चिमी समुद्र के बीच अपना राज्य विस्तृत किया था। वह साहित्य और कला का उदार संरक्षक था। उसने पत्तिनी नामक धार्मिक संप्रदाय को समाज में प्रतिष्ठित किया । इसमें पवित्र पत्तिनी की देवी के रूप में मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है।

संगम काल के चोल राज्य का इतिहास

बताया गया है, कि सेनगुट्टवन के बाद चेरवंश कई उप-शाखाओं में बँट गया। उसके बाद के महत्त्वपूर्ण चेर शासक अन्दुवन तथा उसका पुत्र वाली आदन थे। उसके बाद अय और पारि राजा बने। इन सभी ने अल्पकाल तक शासन किया। वे ब्राह्मण धर्म तथा साहित्य के संरक्षक थे। ये सभी उपाशाखा के शासक प्रतीत होते हैं।

चेरवंश की मुख्य शाखा में सेनगुट्टवन का पुत्र पेरुन्जीरल इरुमपौरे (190ई.) शासक बना। वह महान विजेता था। उसके विरुद्ध सामंत अडिगैमान ने चोल तथा पाण्डय राजाओं को मिलाकर एक मोर्चा तैयार किया। किन्तु इरुमरौरै ने अकेले ही तीनों को पराजित कर दिया तथा तगदूर नामक किले पर अपना अधिकार जमा लिया। बाद में अडिगैमान उसका मित्र बन गया। चेरवंश का अगला राजा कडक्को इलंजीराल इरुमपोरै हुआ।उसने भी चोल तथा पाण्ड्य राजाओं के विरुद्ध सफलता प्राप्त की।

संगम काल का अंतिम चेर शासक सेईयै (210 ई.) हुआ। उसके समकालीन पाण्ड्य शासक नेडुंजेलियन ने उसे पराजित कर चेर राज्य की स्वाधीनता का अंत कर दिया।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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