प्राचीन भारतइतिहास

हिन्द-यवन (इंडो-ग्रीक) आक्रमण क्या था

चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस को परास्त कर भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेशों तथा अफगानिस्तान पर अपना अधिकार कर लिया था। लगभग एक शता. (305-206ईसा पूर्व) तक सेल्युकस वंशी राजाओं का भारतीय नरेशों के साथ मैत्री संबंध बना रहा। परंतु परवर्ती मौर्य नरेशों के निर्बल शासन काल में स्थिति बदल गयी तथा मौर्य साम्राज्य के पतनोपरांत भारत पर पश्चिमोत्तर से पुनः विदेशियों के आक्रमण प्रारंभ हो गये। यह देश का दुर्भाग्य था, कि उस समय आक्रमणकारियों का सामना करने के लिये यहाँ चंद्रगुप्त जैसा कोई सम्राट नहीं था।

इसमें सर्वप्रथम आने वाले बल्ख (बैक्ट्रिया) के यवन शासक थे। उन्होंने भारत के कुछ प्रदेशों को जीत लिया। इन्हीं भारतीय-यवन राजाओं को हिन्द-यवन (इंडो-ग्रीक) अथवा बख्ती-यवन (बैक्ट्रियन-ग्रीक) कहा जाता है।

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हिन्द – यवन शासकों की जानकारी पाप्त करने के इतिहास के साधन निम्नलिखित हैं-

पुरातात्विक स्रोत-

पुरातात्विक स्रोतों में सिक्के, अभिलेख आदि का मुख्य योगदान रहा है, जिनका विवरण निम्नलिखित है-

सिक्के-

इंडो-ग्रीक (हिन्द-यवन) शासकों ने भारत में सिक्के चलाये। पहली बार इंडो-ग्रीक शासकों द्वारा (किसी राजा से संबंधित) सिक्कों का प्रचलन हुआ।

प्राचीनतम सिक्के आहत सिक्के कहलाते हैं।

इंडो-ग्रीक शासकों ने ही पहली बार इन सिक्कों पर राजा का चित्र और लिपि/ अभिलेख अंकित करवाया था।

प्राचीनतम शासकों द्वारा चलाये गये सिक्के इंडोग्रीक सिक्के कहलाते हैं।

इंडो-ग्रीक शासकों की वंशावली या इितहास जानने का सबसे प्रमुख साधन उन शासकों द्वारा चलाये गये सिक्के ही हैं। इंडो ग्रीक शासकों ने सोने, चाँदी, ताँबे व कांसे के सिक्के चलाये, लेकिन सातवाहनों ने सर्वाधिक प्रकार की धातुओं के सिक्के चलाये, लेकिन इन्होंने सोने, चाँदी, ताँबे व काँसे के अलावा सीसा व पोटीन के भी सिक्के चलाये।

सिक्कों के अध्ययन को न्यूमिस्मेटिक्स कहते हैं।

उत्तर-पश्चिम में स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन यवन शासकों ने ही करवाया था। यवनों के चांदी के सिक्के द्रम कहे जाते हैं। यह नाम बहुत बाद तक प्रचलित रहा। अन्य साक्ष्यों में हेलियोडोरस के बेसनगर (विदिशा) से प्राप्त गरुङ स्तंभ लेख का भी उल्लेख किया जा सकता है। जिसमें यवनों की भारतीय धर्म के प्रति निष्ठा सूचित होती है। इन सभी प्रमाणों के आधार पर हम हिन्द-यवन शासकों के इतिहास का पुनर्निर्माण करते हैं।

अभिलेख

खारवेल का हाथीगुंफा अभिलेख-

  • खारवेल का हाथीगुंफा अभिलेख (उङीसा) में यह अभिलेख कलिंग (उङीसा) चेदी वंश के शासक खारवेल द्वारा स्थापित करवाया गया। इसका काल 1 ई.पूर्व माना जाता है।
  • यह भारत का पहला प्रशस्ति अभिलेख है।
  • इस अभिलेख में पहली बार महाराजा शब्द का उल्लेख मिलता है।
  • इस अभिलेख के अनुसार खारवेल ने शासन के 12 वें वर्ष पाटलीपुत्र पर आक्रमण किया और किसी बृहस्पतिमित्र नामक शासक को पराजित किया तथा पाटलीपुत्र से जैन तीर्थंकर शीतलनाथ की मूर्ति पुनः कलिंग ले आया, जिसे नंद शासक महापदनंद कलिंग को जीतकर अपने साथ ले गया था। स्मिथ ने बृहस्पतिमित्र की पहचान पुष्यमित्र शुंग से की है।
  • यह अभिल ब्राह्मी लिपि में अंकित है। और इसमें खारवेल की उपलब्धियों का वर्णन मिलता है। इसी अभिलेख से जानकारी मिलती है, कि खारवेल जैन मतानुयायी था, और उसके वश का संस्थापक महामेघवाल था।
  • इस अभिलेख के अनुसार खारवेल ने शासन के 5 वें वर्ष सिंचाई के लिये महापदमनंद द्वारा निर्मित नहर का विस्तार तनसुलि से कलिंग तक करवाया।

रुद्रदामन का जूनागढ अभिलेख (गुजरात 1शताब्दी)

  • यह अभिलेख भाषा में पहला वृहद या विस्तृत अभिलेख है।
  • इस अभिलेख में शक शासक रुद्रदामन की उपलब्धियों का वर्णन है।
  • इस अभिलेख के अनुसार रुद्रदामन ने सातवाहन शाुसक वशिष्ठीपुत्त पुलुमावि को पराजित किया तथा अपनी पुत्री से विवाह करवाया।
  • इस अभिलेख से जानकारी मिलती है, कि चंद्रगुप्त मौर्य के समय सौराष्ट्र क्षेत्र में पुष्यगुप्त ने सुदर्शन झील का निर्माण करवाया और अशोक के समय योनराज योनराजतुषास्य ने इस झील की मरम्मत करवायी। रुद्रदामन के समय उसके अधिकारी सुविशाख ने इस झील की पुनः मरम्मत करवायी।
  • पता चलता है, कि रुद्रदामन ने झील की मरम्मत करवाने के लिये अपनी प्रजा से बेगार (विष्टी) करवायी थी। पहली बार बेगार अभिलेखीय साक्ष्य जूनागढ है। इसी में बेगार शब्द का उल्लेक पहली बार हुआ है।

इन अभिलेखों के अलावा भी कई अभिलेख हैं, जिनसे हिन्द-यूनानी शासकों के बारे में जानकारी मिलती है –

  • नागनिका का नानाघाट अभिलेख(सातवाहन शासक शातकर्णी की पत्नी)
  • गौतमी बलश्री का नासिक अभिलेख (गौतमीपुत्र शातकर्णी की माँ)
  • वशिष्ठीपुत्र पुलुमावी का कान्हेरी अभिलेख
  • हेलियोडोरस का बेसनगर (विदिशा) का गरुङ स्तंभ अभिलेख
  • धनदेव का अयोध्या अभिलेख – मध्यप्रदेश ( शुंग वंश का अधिकारी)

साहित्यिक स्रोत-

  • गार्गी संहिता (ज्योतिष से संबंधित)
  • मालविकाग्निमित्रम् (कालिदास)
  • मनुस्मृति
  • पुराण (मतस्य, वायु, ब्रह्मांड पुराण)
  • आर्यमंजूश्रीमूलकल्प – बौद्ध ग्रंथ
  • थेरावली कथा मेरुतुंग द्वारा रचित – जैन ग्रंथ
  • हरिवंश
  • कालकाचार्य कथानक (जैन ग्रंथ)
  • फाह्यान व ह्वेनसांग का विवरण
  • दिव्यावदान (बौद्ध ग्रंथ)
  • तारानाथ (बौद्ध भिक्षु)

विदेशी साहित्य-

  • ज्योग्राफी – टॉलेमी।
  • नेचुरल हिस्ट्री – प्लिनी।
  • स्ट्रेबो – ज्योग्राफी।
  • पोलिबियस का विवरण।
  • पेरिप्लस ऑफ दी एरिथ्रियन सी।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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