प्राचीन भारतइतिहासकुषाण वंश

कुषाण काल में कला एवं स्थापत्य

बौद्ध कला का विकास कुषाण राजाओं के संरक्षण में भी होता रहा। प्रसिद्ध कुषाण शासक कनिष्क एक महान निर्माता था। उसके शासन-काल में अनेक स्तूपों तथा विहारों का निर्माण हुआ। अपनी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) में 400 फीट ऊँचा विशाल स्तूप उसने बनवाया था, जिसकी वेदिका 150 फीट ऊँची थी। फाह्यान तथा ह्वेनसांग दोनों ने इसका विवरण दिया है।

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फाह्यान के अनुसार उसने जितने भी स्तूप देखे थे, उनमें यह सर्वाधिक प्रभावशाली था। ह्वेनसांग के विवरण से पता चलता है, कि यह स्तूप 5 भूमियों में बना था तथा भगवान बुद्ध की दो विशाल मूर्तियां थी। दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम में दो और मूर्तियां बनी थी। इसके निकट ही एक विशाल संघाराम (विहार) बना था, जो कनिष्क चैत्य कहा जाता था और संपूर्ण बौद्ध जगत में प्रसिद्ध था। इसका निर्माण यवन वास्तुकार अगिलस द्वारा किया गया था।

यह अनेक शिखर, भूमि, स्तंभ आदि से अलंकृत था। ह्वेनसांग के भारत आने के पहले ही यह स्तूप जलकर नष्ट हो गया था। पेशावर स्थित शाहजी की ढेरी के उत्खनन में कनिष्क चैत्य के अवशेष प्राप्त होते हैं।

तक्षशिला का सबसे महत्त्वपूर्ण धर्मराजिका स्तूप था। मूलतः इसका निर्माण अशोक के समय में हुआ, किन्तु कनिष्क के समय में उसका आकारवर्धन हुआ । उँचे चबूतरे पर निर्मित यह स्तूप गोलाकार है। चार दिशाओं में चार सीढियाँ हैं। इसका निर्माण पाषाण से किया गया है। चौकी से स्तूप के ऊपरी भाग तक इसे विविध अलंकरणों से सजाया गया है। इसके अतिरिक्त बल्ख तथा खोतान तक अनेक स्तूप निर्मित करवाये गये थे।

मनिक्याल क्षेत्र में कई स्तूप बने थे।मनिक्याल, रावलपिण्डी से कुछ दूरी पर है। यहां से प्राप्त एक लेख से पता चलता है, कि कनिष्क के 18 वें वर्ष दंडनायक लल द्वारा इन स्तूपों को बनवाया गया था। मनिक्याल स्तूप का चबूतरा गोल है, जिस पर अर्ध गोलाकार गुंबद 127 फीट व्यास तथा 400 फीट के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। स्तूप की खुदाई में एक धातु मंजूषा मिली है, जिसमें कई सिक्के तथा मोतियां एक स्वर्णपात्र में रखे गये थे।

गंधार स्तूप ऊँचे होते थे। उनके चौकोर अधिष्ठान का कई भूमियों में निर्माण होता था, जिन पर चढने के लिये एक या अधिक सीढियाँ बनाई जाती थी। वेदिका तथा तोरण का प्रयोग बंद हो गया। स्तूप पर ही विविध शिल्प उत्कीर्ण किये गये थे। ये जातक कथाओं की अपेक्षा बुद्धचरित्र से अधिक संबंधित थे। संपूर्ण स्तूप एक बुर्ज जैसा दिखाई देता था। इन स्तूपों पर गंधार शैली विशेष कर प्लास्टर प्रतिमा स्पष्टतः दिखाई देती है।

स्तूपों के अलावा कनिष्क के समय में कनिष्कपुर (कश्मीर स्थित वर्तमान कान्सोपुर) तथा सिरकप (तक्षशिला) नामक स्थान पर नये नगरों का निर्माण करवाया गया।

कनिष्क के शासन-काल में कला के क्षेत्र में दो स्वतंत्र शैलियों का विकास हुआ है-

  1. गंधार शैली
  2. मथुरा शैली।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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