अलाउद्दीन खिलजीइतिहासखिलजी वंशमध्यकालीन भारत

अलाउद्दीन खिलजी की सैनिक सुधार व्यवस्था कैसी थी?

अलाउद्दीन खिलजी की सैनिक सुधार व्यवस्था – अपनी फतवा-ए-जहाँगीरी में जियाउद्दीन बरनी लिखता है कि राजत्व दो स्तंभों पर आधारित रहता है – पहला स्तंभ है, प्रशासन और दूसरा है, विजय। दोनों स्तंभों का आधार सेना है… यदि शासक सेना के प्रति उदासीन है तो वह अपने ही हाथों से राज्य का विनाश करता है। वह इस तथ्य को स्वीकार करता है कि राजत्व ही सेना है और सेना ही राजत्व है। मध्यकालीन राजत्व में सेना को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।

यह सच है कि अलाउद्दीन जैसा साम्राज्य-निर्माता किसी भी प्रकार अपनी सेना की उपेक्षा नहीं कर सकता था। उसने सैनिक प्रशासन के पुनर्गठन पर पूरा ध्यान दिया था। सन् 1303 में तरगी के नेतृत्व में मंगोलों के आक्रमण ने सुल्तान को किलेबंदी की आवश्यकता के प्रति सचेत किया। उसने पुराने किलों की मरम्मत करवाई और सामरिक महत्व के स्थानों पर नए किलों का निर्माण करवाया। इन किलों में अनुभवी तथा विवेकशील सेनानायक नियुक्त किए। इन्हें कोतवाल कहा जाता था। किलों में हर प्रकार के शस्त्रों, अनाज तथा चारे के भंडार को रखने की व्यवस्था भी की गयी थी।

विशिष्ट दृष्टि के कारण अलाउद्दीन ने सेना का विकेंद्रीकरण किया। उसने इस स्थायी सेना की सीधी भरती की और केंद्रीय कोषागार से सैनिकों को नकद वेतन देना प्रारंभ किया। सेना की इकाइयों का विभाजन हजार, सौ और दस पर आधारित था, जो खानों, मलिकों, अमीरों, सिपहसालारों इत्यादि के अंतर्गत थी। दस हजार की सैनिक टुकङियों को तुमन कहा जाता था। अमीर खुसरो के अभियानों के वर्णन से स्पष्ट है कि अलाउद्दीन की सेना में भी तुमन थे, हालाँकि बरनी ने तुमन का उल्लेख केवल मुगल सेना के संदर्भ में किया है।

मुख्य रूप से सेना में घुङसवार और पैदल सैनिक होते थे। युद्ध में हाथी भी प्रयोग किए जाते थे। दीवान-ए-आरिज सैनिकों की नामावली और हुलिया रखता था। अलाउद्दीन ने घोङों को दागने की प्रथा को भी जारी रखा, जिससे निरीक्षण के समय किसी भी घोङे को दुबारा प्रस्तुत न किया जा सके या उसके स्थान पर निम्न श्रेणी का घोङा न रखा जा सके। समय-समय पर सेना का कठोर निरीक्षण किया जाता था और घोङों, सैनिकों तथा उनके शस्त्रों की बारीकी से जाँच-पङताल की जाती थी। अमीर खुसरो का कहना है कि जो सेना वारंगल गई थी उसकी नामावली बनाने और निरीक्षण में चौदह दिन लगे थे।

अलाउद्दीन ने स्थायी रूप से एक विशाल तैयार सेना रखी। फरिश्ता के अनुसार सुल्तान की विशाल सेना में 4,75,000 सुसज्जित और वर्दीधारी घुङसवार थे। यथोचित रूप से निरीक्षण करके नियुक्त किए गए सैनिक को सरकारी भाषा में मुर्रत्तब कहा जाता था। उसका वेतन सुल्तान द्वारा 234 टंका प्रतिवर्ष निश्चित किया गया था। उसके पास कम से कम एक घोङा होता था । यदि उसके पास दो घोङे होते थे, जो उसकी योग्यता में वृद्धि करते थे, तो उसे अतिरिक्त घोङे के लिये 78 टंका का अतिरिक्त भत्ता मिलता था। उसे दो घोङे वाला सैनिक या सरकारी भाषा में दो अस्पा कहा जाता था, वह 312 टंका (234+78) वेतन प्रतिवर्ष पाता था। एक घोङे वाले सैनिकों को यक अस्पा कहा जाता था। यह स्पष्ट है कि यक अस्पा या दो से अधिक घोङे रखने वाले सैनिक को कोई अतिरिक्त भत्ता न दिया जाता था। सैनिक को 234 टंका वार्षिक या 19.5 टंका मासिक वेतन मिलता था। एक अतिरिक्त घोङे के व्यय के लिये उसे 6.50 टंका मासिक अधिक मिलते थे। सेना का वेतन कम था, किंतु अलाउद्दीन अपनी सेना को संतुष्ट रखना चाहता था और सैनिकों के कल्याण में अत्यधिक रुचि लेता था।

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