प्राचीन भारतइतिहास

कौटिल्य और अर्थशास्त्र का इतिहास

चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन निर्माण में कौटिल्य का सर्वप्रथम हाथ रहा है। वह इतिहास में विष्णुगुप्त तथा चाणक्य इन दो नामों से भी जाना जाता है।

चंद्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन परिचय।

ब्राह्मण तथा बौद्ध गंथों से उसके जीवन के विषय में जो सूचना मिलती है, उससे स्पष्ट होता है कि वह तक्षशिला के ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न हुआ था। वह वेदों तथा शास्रों का ज्ञाता था और तक्षशिला के शिक्षा केन्द्र का प्रमुख आचार्य था। परंतु वह स्वभाव से अत्यंत रूढिवादी तथा क्रोधी था।

ब्राह्मण एवं बौद्ध ग्रंथों का विवरण।

पुराणों में उसे द्विजर्षभ(श्रेष्ठ ब्राह्मण) कहा गया है।कहा जाता है, कि एक बार नंद राजा ने अपनी यज्ञशाला में उसे अपमानित किया, जिससे क्रोध में आकर उसने नंद वंश को समूल नष्ट कर डालने की प्रतिज्ञा कर डाली और चंद्रगुप्त मौर्य को अपना अस्र बनाकर उसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।

जब चंद्रगुप्त मौर्य भारत का एकछत्र सम्राट बना तो कौटिल्य प्रधानमंत्री तथा प्रधान पुरोहित के पद पर आसीन था।जैन ग्रंथों से पता चलता है, कि चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद भी कुछ समय तक बिंदुसार के समय में भी चाणक्य प्रधानमंत्री बना रहा।

आगे चलकर उसने शासन-कार्य त्याग कर संयास ग्रहण कर लिया तथा वन में तपस्या करते हुए उसने अपने जीवन के अंतिम दिन व्यतीत किये। वह राजनीतिशास्र का प्रकाण्ड विद्वान था, और उसने राजशासन के ऊपर अर्थशास्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। यह हिन्दू शासनकाल के ऊपर प्राचीनतम उपलब्ध रचना है।

कौटिल्य की रचना अर्थशास्र में कही गई बातें निम्नलिखित हैं-

  • अर्थशास्र एक असाम्प्रदायिक रचना है, जिसका मुख्य विषय सामान्य राज्य एवं उसके शासनतंत्र का विवरण प्रस्तुत करता है। इसमें चक्रवर्ती सम्राट का अधिकार-क्षेत्र हिमालय से लेकर समुद्र-तट तक बताया गया है। जो इस बात का सूचक है कि, कौटिल्य विस्तृत साम्राज्य से परिचित था।
  • अर्थशास्र मुख्यतः विभागीय अध्यक्षों का ही वर्णन करता है। नगर तथा सेना की परिषदों के स्वरूप का अशासकीय होने के कारण इसमें उल्लेख नहीं मिलता।
  • भारतीय लेखकों में अपने नाम का उल्लेख अन्य पुरुष में करने की प्रथा रही है। अतः यदि अर्थशास्र में कौटिल्य ने अपना उल्लेख अन्य पुरुषों में किया है, तो इसका अर्थ यह नहीं है, कि वह स्वयं इस ग्रंथ का रचयिता नहीं था।
  • मेगस्थनीज का संपूर्ण विवरण हमें उपलब्ध नहीं होता। संभव है कौटिल्य का उल्लेख उन अंशों में हुआ हो जो अप्राप्य हैं। पतंजलि ने बिन्दुसार और अशोक के नाम का भी उल्लेख नहीं किया है। तो क्या इन दोनों को अनैतिहासिक माना जा सकता है। उनका उद्देश्य पाणिनि तथा कात्यायन के सूत्रों की व्याख्या करना था, न कि इतिहास लिखना। मेगस्थनीज किसके शासनकाल में भारत आया था?
  • कौटिल्य जिस समाज का चित्रण करता है, उसमें नियोग प्रथा, विधवा विवाह आदि का प्रचलन था। यह प्रथा मौर्ययुगीन समाज में थी। उसने युक्त शब्द का प्रयोग अधिकारी के अर्थ में किया है। यही शब्द अशोक के लेखों में भी आया है। इसमें रुद्र, कंबोज, लिच्छवी, मल्ल आदि गणराज्यों का भी उल्लेख हुआ है। जो इस बात के सूचक हैं कि यह ग्रंथ मौर्य युग के प्रारंभ में लिखा गया था। इसी प्रकार अर्थशास्र में बौद्धों के प्रति भी बहुत कम सम्मान प्रदर्शित किया गया है। तथा लोगों को अपने परिवार के पोषण की व्यवस्था किये बिना संयास ग्रहण करने से रोका गया है। इससे यही सूचित होता है, कि बौद्ध धर्म के लोकप्रिय होने के पूर्व ही यह ग्रंथ लिखा गया था।
  • यहां उल्लेखनीय है कि कौटिल्य तथा मेगस्थनीज के विवरणों में कई समानताऐं भी हैं।मेगस्थनीज के समान कौटिल्य भी लिखता है, कि चंद्रगुप्त जब आखेट के लिये निकलता था, तो उसके साथ राजकीय जुलूस चलता था। सङकों की कङी सुरक्षा रखी जाती थी। दोनों हमें बताते हैं कि सम्राट की अंगरक्षक महिलायें होती थी। सम्राट अपने शरीर पर मालिश करवाता था।

अर्थशास्र में 15 अधिकरण तथा 180 प्रकरण हैं। इस ग्रंथ में इसके श्लोकों की संख्या 4,000 बताई गई है।शामशास्री के अनुसार वर्तमान ग्रंथ में भी इतने ही श्लोक हैं ।

कौटिल्य के शासन का आदर्श बङा ही उदात्त था। उसने अपने ग्रंथ में जिस विस्तृत प्रशासनिक व्यवस्था का स्वरूप प्रस्तुत किया है। उसमें प्रजा का हित ही राजा का चरम लक्ष्य है। वास्तव में यह ग्रंथ चंद्रगुप्त मौर्य की शासन-व्यवस्था के ज्ञान के लिए बहुमूल्य सामग्रियों का भंडार है।

कौटिल्य मात्र राजनीति विशारद ही नहीं था, अपितु वह राजनीतिकशास्र के क्षेत्र में एक नये सिद्धांत का प्रतिपादक भी था। बाद के लेखकों ने अत्यंत सम्मानपूर्वक उसके नाम का उल्लेख किया है। राजनीतिकशास्र के क्षेत्र में अर्थशास्र का वही स्थान है जो व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनि की अष्टाध्यायी का है।

अर्थशास्त्र से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं-

  • अर्थशास्र के लेखक को चाणक्य, कौटिल्य व विष्णुगुप्त आदि नामों से जाना जाता है।
  • अर्थशास्त्र राजनीति से संबंधित है।
  • यह ग्रंथ मौर्यकाल और मौर्योत्तर काल की भी जानकारी देता है।
  • तीसरी शता. तक की जानकारी अर्थशास्र में मिलती है।
  • अर्थशास्र में 4,000 श्लोक, 15 अधिकरण (भाग), 180 उपभाग, संस्कृत भाषा, तथा यह गद्य-पद्य में लिखा गया है। अर्थशास्र की शैली को महाभारत शैली कहा गया है।
  • 1904-5 में शामशास्री ने अर्थशास्री की पाण्डुलिपि (मूल ग्रंथ) खोजी और अनुवाद किया।
  • इस ग्रंथ में एक छोटे से राज्य का वर्णन है। तथा इस ग्रंथ में न तो पाटलिपुत्र का न ही किसी मौर्य शासक का नाम मिलता है।
  • अशोक व अर्थशास्र दोनों समकालीन है, क्योंकि अशोक के साहित्य व अर्थशास्र दोनों में एक जैसे शब्द मिलते हैं। जैसे – अर्थशास्र
  • पतंजलि के उल्लेख में कौटिल्य का कहीं भी उल्लेख नहीं है।
  • अमात्यराक्षस घनानंद का दरबारी था, जो कौटिल्य के समान कूटनीतिज्ञ था।

अर्थशास्र के अधिकरणों का विवेचन निम्नलिखित है-

  • प्रथम अधिकरण में राजत्व की अवधारणा मिलती है। यहीं पर पहली बार चक्रवर्ती शासक का उल्लेख है, परंतु इस अवधारणा के अनुसार अश्वमेघ यज्ञ का उल्लेख नहीं मिलता। क्योंकि अधिकांश मौर्य शासक ब्राह्मण धर्म के अनुयायी नहीं थे।
  • दूसरे अधिकरण में नागरिक प्रशासन का उल्लेख किया गया है।
  • तीसरे एवं चौथे अधिकरण में दीवानी, कानून और फौजदारी कानून व व्यक्तिगत कानूनगो का उल्लेख मिलता है।
  • पाँचवां अधिकरण में राजा, अधिकारी, कर्मचारियों के कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का उल्लेख मिलता है।
  • छठा अधिकरण में – सप्तांग सिद्धांत (राज्य के सात अंग होते हैं)
  1. सामी (राजा)
  2. जनपद (क्षेत्र जनता)
  3. कोष (खजाना)
  4. सेना
  5. दुर्ग
  6. मंत्री (अमात्य)
  7. मित्र

आठवां अधिकरण में शत्रु को भी शामिल किया गया है।

  • 7 से 15 वें अधिकरणों (9 अधिकरणों) में शत्रु देश में राजा की विजय, संधि, शत्रु देश को जीतने के प्रयास, गुप्तचर प्रणाली, दंड आदि का उल्लेख है।
  • अर्थशास्र में शूद्र को आर्य कहा गया है।
  • अर्थशास्र में नगर के उत्तरी भाग को देवताओं एवं ब्राह्मणों के निवास के लिए उपयुक्त बताया गया है।
  • इसमें गन्ने (ईख) की खेती को निकृष्ट बताया है, क्योंकि परिश्रम ज्यादा लगता है, परंतु फल कम प्राप्त होता है।
  • इस ग्रंथ में राजा द्वारा 3 प्रकार की विजय बताई गई है-
  1. धर्म विजय (पराजित शासक से जुर्माना वसूल कर उसे पुनः स्थापित करना।)
  2. लोग विजय (पराजित शासक के अधिकांश क्षेत्र को हङप लेना और बङी मात्रा में दन की मांग करना।)
  3. असुर विजय (पराजित शासक का संपूर्ण राज्य छीन लेना।)
  • अर्थशास्र में उत्तरापथ एवं दक्षिणापथ का उल्लेख मिलता है।तथा दक्षिणापथ को आर्थिक लाभ की दृष्टि से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बताया गया है, क्योंकि इससे बहुमूल्य धातुएँ, रत्न मिलते हैं।
  • इस ग्रंथ से गुप्तचर प्रणाली का विस्तार से वर्णन मिलता है – दो गुप्तचर श्रेणियां थी जो इस प्रकार हैं
  1. संचार-घुमंतु
  2. संस्था-संमुदाय के रूप में।
  • अर्थशास्र में गैर ब्राह्मण मतानुयायी को पाषंड कहा है। (हीन)
  • इस ग्रंथ में कुछ स्थानों का उल्लेख विशिष्ट वस्तुओं के लिये हुआ है। जैसे

मगध-बाट बनाने के लिए प्रसिद्ध था।

अंग, मगध- हाथीयों के लिए।

कंबोज – घोङे के लिये।

नेपाल – कंबल के लिये।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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