प्राचीन भारतइतिहासचंद्रगुप्त मौर्यमौर्य साम्राज्य

चंद्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन

चंद्रगुप्त मौर्य की उत्पत्ति के समान ही उसका प्रारंभिक जीवन भी अंधकारपूर्ण है। उसके प्रारंभिक जीवन के ज्ञान के लिये हमें मुख्यतः बौद्ध स्त्रोतों पर ही निर्भर रहना पङता है। यद्यपि वह साधारण कुल में उत्पन्न हुआ था, तथापि बचपन से ही उसमें उज्ज्वल भविष्य के सूचक महानता के सभी लक्षण विद्यमान थे।

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार चंद्रगुप्त का पिता मोरियनगर का प्रमुख था। जब वह अपनी माता के गर्भ में था तभी उसके पिता की किसी सीमांत युद्ध में मृत्यु हो गयी। उसकी माता अपने भाइयों द्वारा पाटलिपुत्र में सुरक्षा के निमित्त पहुँचा दी गयी। यहीं चंद्रगुप्त का जन्म हुआ। जन्म के साथ ही वह एक गोपालक को समर्पित कर दिया गया।

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अपनी प्रतिभा के कारण उसने शीघ्र ही अपने समवयस्क बालकों में प्रमुखता हासिल कर ली। वह बालकों की मंडली का राजा बनकर उनके आपसी झगङो का फैसला किया करता था। इसी प्रकार एक दिन जब वह राजकीलम् नामक खेल में व्यस्त था, चाणक्य उधर से जा निकला। अपनी सूक्ष्मदृष्टि से उसने इस बालक के भावी गुणों का अनुमान लगा लिया। उसने शिकारी को 1,000 कार्षापण देकर चंद्रगुप्त को खरीद लिया।

चंद्रगुप्त के साथ चाणक्य तक्षशिला आया। तक्षशिला उस समय विद्या का केन्द्र था और चाणक्य वहां का आचार्य था। उसने चंद्रगुप्त को सभी कलाओं तथा विद्याओं की विधिवत् शिक्षा दी। अतिशीघ्र वह सभी विद्याओं में पारंगत हो गया। यह युद्ध विद्या में भी पर्याप्त निपुण हो चुका था।

ऐसा लगता है कि तक्षशिला में ही सैनिक शिक्षा ग्रहण करते हुए वह अपने समय के एक महान् विजेता सिकंदर से मिला था तथा वह उसके सैनिक प्रशिक्षण का एक ही अंग था।

चंद्रगुप्त के विषय में प्लूटार्क तथा जस्टिन जैसे लेखकों ने बङा ही रोचक विवरण दिया है। जस्टिन हमें बताता है कि सिकंदर उसकी स्पष्टवादिता से बङा रुष्ट हुआ तथा उसे मार डालने का आदेश दिया, किन्तु शीघ्रता से भागकर उसने अपनी जान बचाई।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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