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पल्लव राजवंश के इतिहास के साधन

पल्लव राजवंश के इतिहास के साधन – पल्लव इतिहास के अध्ययन के लिये हम साहित्य, विदेशी विवरण तथा पुरातत्व तीनों से उपयोगी सामग्रियां प्राप्त करते हैं।

साहित्य

पल्लव काल में संस्कृत तथा तमिल भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना की गयी। संस्कृत ग्रंथों में अवन्तिसुन्दरीकथा तथा मत्तविलासप्रहसन का प्रमुख रूप से उल्लेख किया जा सकता है। सोड्ढल कृत अवंतिसुन्दरीकथा से पल्लवनरेश सिंहविष्णु तथा उसके समकालीनों के समय की राजनीतिक तथा सांस्कृतिक घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें मामल्लपुरम् तथा वहां स्थित अनंतशायी विष्णु की मूर्ति का भी उल्लेख हुआ है। मत्तविलासप्रहसन की रचना पल्लव नरेश महेन्द्रवर्मन प्रथम ने की थी। इसमें कापालिकों तथा भिक्षुओं पर व्यंग्य किया गया है। इसके साथ ही साथ पुलिस तथा न्याय विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचारों की ओर भी परोक्षतः संकेत किया गया है। तमिल ग्रंथों में नंदिक्कलम्बकम उल्लेखनीय है, जिसके अध्ययन से हम नंदिवर्मन तृतीय के जीवनवृत्त तथा उपलब्धियों की जानकारी प्राप्त करते हैं। पल्लवकालीन कांची नगर के समाज तथा संस्कृति का विवरण भी इसमें मिलता है। पल्लव इतिहास में साधनों के रूप में जैन ग्रंथ लोक विभाग तथा बौद्ध ग्रंथ महावंश का भी महत्त्व है। प्रथम( लोक विभाग ) से हम नरसिंहवर्मन के राज्य तथा शासन का ज्ञान प्राप्त करते हैं, जबकि द्वितीय ग्रंथ (महावंश) से प्रारंभिक पल्लव शासकों की तिथि निर्धारित करने में मदद मिलती है।

विदेशी विवरण

विदेशी विवरण के अन्तर्गत ह्वेनसांग के विवरण का उल्लेख किया जा सकता है। वह 640 ई. में पल्लवों की राजधानी कांची की यात्रा पर गया था। इस समय नरसिंहवर्मन प्रथम शासन करता था। वह उसे महान राजा बताता है। उसके विवरण से पता चलता है, कि कांची धर्मपाल बोधिसत्व की जन्मभूमि थी। ह्वेनसांग कांची तथा महाबलीपुरम की समृद्धि का चित्रण करता है। उसके अनुसार कांची में अनेक बौद्ध विहार थे, जिनमें बहुसंख्यक भिक्षु निवास करते थे।

पुरातत्व

पल्लव इतिहास के सबसे प्रामाणिक साधन अभिलेख हैं। इनमें वंशावली तथा तिथियाँ भी अंकित हैं। लेख मंदिरों, शिलाओं, ताम्रपत्रों तथा मुद्राओं पर उत्कीर्ण हैं तथा इनमें प्राकृत और संस्कृत दोनों ही भाषाओं का प्रयोग मिलता है। ये इस वंश के शासकों की राजनैतिक तथा सांस्कृतिक उपलब्धियों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालते हैं। पल्लव वंश के प्रारंभिक इतिहास के लिये शिवस्कन्दवर्मन के मैडवोलु तथा हीरहडगल्ली के लेख उपयोगी हैं। ये प्राकृत भाषा में हैं। इनका काल सामान्य तौर पर 250 ई. से लेकर 350 ई. तक माना जाता है। संस्कृत के लेख 350ई. से 600 ई. के बीच के हैं। इनमें सबसे प्राचीन लेख कुमारविष्णु द्वितीय का केन्दलूर दानपत्र तथा नंदिवर्मन का उदयेन्दिरम दानपत्र है। सिंहविष्णु तथा उसके बाद के शासकों के इतिहास के लिये कशाकुडी दानपत्र, मंडगपट्ट लेख, कूरम दानपत्र, गढवाल अभिलेख, बैकुण्ठपेरुमाल अभिलेख आदि महत्त्वपूर्ण हैं। समकालीन चालुक्य तथा राष्ट्रकूट लेखों से भी पल्लव इतिहास पर कुछ प्रकाश पङता है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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