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दंतिवर्मन पल्लवकालीन शासक का इतिहास

दंतिवर्मन कांची के पल्लवकालीन नंदिवर्मन द्वितीय का पुत्र था, जो उसकी पत्नी रेवा (राष्ट्रकूट नरेश दंतिदुर्ग की कन्या) से उत्पन्न हुआ। अपने पिता के समान उसने भी दीर्घकाल (800-846-47ई.) तक शासन किया। ऐसा लगता है, कि दंतिवर्मन के समय पल्लवराष्ट्रकूट संबंध किसी तरह बिगङ गये। ऐसा लगता है, कि दंतिवर्मन ने गोविन्द तृतीय के विरोधियों का साथ दिया था। अतः गृहयुद्ध से छुटकारा पाने के बाद उसने उसे दंडित करने का निश्चय किया।

804 ई. में गोविन्द तृतीय ने कांची पर आक्रमण किया। दंतिवर्मन पराजित हुआ तथा उसने गोविन्द को कर देना स्वीकार कर लिया। गोविन्द तृतीय के मन्ने लेख में दंतिवर्मन को उसका महासामंताधिपति कहा गया है। दंतिवर्मन को पाण्ड्यों के आक्रमण का भी सामना करना पङा। पाण्ड्य नरेश वरगुण प्रथम तथा उसके पुत्र श्रीमार ने दंतिवर्मन पर आक्रमण किया तथा कावेरी क्षेत्र पर अपना अधिकार जमा लिया। इस क्षेत्र से दंतिवर्मन का कोई भी अभिलेख नहीं मिलता जबकि पाण्ड्य शासक के कुछ लेख प्राप्त होते हैं। बाणनरेश उसके सामंत थे। एक तमिल अभिलेख में दंतिवर्मन को पल्लवकुलभूषण तथा भारद्वाजगोत्रीय कहा गया है।

अपने पिता की भाँति दंतिवर्मन भी वैष्णव धर्म का अनुयायी था। वैलूरपाल्यम् अभिलेख में उसे विष्णु का अवतार कहा गया है तथा उसके गुणों की प्रशंसा की गयी है। उसने मद्रास के समीप त्रिप्लीकेन में पार्थसारथि मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। अभिलेख इसी मंदिर में उत्कीर्ण है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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