इतिहासप्राचीन भारत
आरण्यक ग्रंथ किसे कहते हैं
ब्राह्मण ग्रंथों के बाद आरण्यकों की रचना की गयी, जो ब्राह्मणों के अंतिम भाग हैं। इनकी रचना अरण्यों अर्थात् वनों में पढाये जाने के लिये की गयी थी। इसी कारण इन्हें आरण्यक कहा गया। इनमें यज्ञों के स्थान पर ज्ञान एवं चिन्तन को प्रधानता दी गयी है और इस प्रकार ये दार्शनिक रचनायें हैं। इन्हीं से कालांतर में उपनिषदों का विकास हुआ।
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आरण्यक साहित्य के बारे में जानकारी
आरण्यक ग्रंथों की संख्या बहुत अधिक है,किन्तु इनमें कुछ ही मिलते हैं। इनमें प्रमुख हैं – ऐतरेय, शांखायन, तैत्तिरीय, वृहदारण्यक, जैमिनी तथा छोन्दोग्य।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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