गुप्तोत्तर काल का पतन
आदित्यसेन का पुत्र और उत्तराधिकारी देवगुप्त द्वितीय हुआ। उसने भी परमभट्टारक महाराजाधिराज की उपाधि ग्रहण की। चालुक्य लेखों में उसे सकलोत्तरपथनाथ कहा गया है। उसके शासन काल का कोई लेख नहीं मिलता। इसके बाद विष्णुगुप्त तथा फिर जीवितगुप्त द्वितीय राजा बने। इन दोनों के लिये भी परमभट्टारक महाराजाधिराज की उपाधियों का प्रयोग किया गया है।
किन्तु उनके काल तक अर्थात् 725 ईस्वी तक आदित्यसेन द्व्रारा निर्मित साम्राज्य सुरक्षित बना रहा। देवबर्नाक से जीवितगुप्त का ही लेख मिलता है। वह इस वंश का अंतिम महान शासक था। बी.पी. सिन्हा के मतानुसार जीवितगुप्त द्वितीय का अंत कन्नौज नरेश यशोवर्मन् ने किया।
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वाक्पतिराजकृत गौडवहो से पता चलता है, कि यशोवर्मन् ने पूर्वी भारत पर आक्रमण कर मगध के शासक की हत्या की थी। इस मगध नरेश की पहचान जीवितगुप्त द्वितीय के साथ की जानी चाहिये।
जीवितगुप्त के साथ ही उत्तरगुप्तों के मगध साम्राज्य का अंत हुआ तथा गंगा घाटी में पुनः अराजकता और अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो गयी।
मगध के इतिहास में उत्तरगुप्त वंश एक महत्त्वपूर्ण वंश था। इस वंश के राजाओं ने चक्रवर्ती गुप्तों की राजनैतिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं का अनुसरण किया। साधारण सामंत स्थिति से ऊपर उठकर उन्होंने मगध साम्राज्य के केन्द्रीय भाग पर अपना सार्वभौम शासन स्थापित कर लिया। मगध साम्राज्य के इतिहास में उनका शासनकाल गुप्त-प्रभुसत्ता एवं परंपराओं की निरंतरता का प्रतीक माना जा सकता है।
Reference : https://www.indiaolddays.com