इतिहासफ्रांस की क्रांतिविश्व का इतिहास

लुई फिलिप का पतन एवं 1848 की क्रांति

लुई फिलिप का पतन : जब फ्रांस की जनता में असंतोष अपनी चरम सीमा पर था, उसी समय 1846-47 में खराब मौसम के कारण अन्न की पैदावार बहुत ही कम हुई, जिससे अनाज के भाव बहुत बढ गये। इधर उद्योगों में मंदी आ गई तथा बेरोजगारी बढने लगी और इस प्रकार फ्रांस में एक आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया।

इस आर्थिक संकट में सुधारवादियों ने सुधारों की माँग की तो लुई फिलिप ने घोषणा की(दिसंबर, 1847 ई.) कि, संवैधानिक राजतंत्र फ्रांस की सभी आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है, अतः सुधारों की कोई आवश्यकता नहीं है।

लुई फिलिप का पतन

लुई फिलिप का पतन के लिए उत्तरदायी कारण क्या थे

लुई फिलिप का पतन में लुई फिलिप द्वारा की गई घोषणा का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, क्योंकि इस घोषणा से विरोधी दल उत्तेजित हो उठे तथा जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिये एक योजना बनाई गयी।

लुई फिलिप का पतन में सहयोगी इस योजना के अनुसार जनता के हस्ताक्षरों से युक्त, सुधारों के लिये माँग-पत्र सरकार के पास भेजना तथा जनता के हस्ताक्षर कराने के लिये उन्हें एक स्थान पर एकत्रित करने के लिये, देश में भिन्न-भिन्न स्थानों पर सहभोज आयोजित करना था। फलस्वरूप देश में स्थान – स्थान पर पर सहभोज की व्यवस्था की जाने लगी, जिन्हें सुधार सहभोज कहा जाता है। इन सुधार सहभोजों में नेताओं के जोशीले भाषण होते थे, तथा सरकार की आलोचना कर सुधारों की माँग की जाती थी।

लुई फिलिप का पतन का अंतिम चरण

22 फरवरी 1848 को पेरिस में एक विशाल सुधार सहभोज आयोजित किया गया, किन्तु सरकार ने उस पर रोक लगा दी। अतः भोज तो नहीं हो सका, किन्तु भोज के स्थान पर विद्यार्थियों एवं मजदूरों का एक विशाल जुलूस तैयार हो गया तथा सुधराों की माँग के साथ-साथ ग्विजो को बर्खास्त करने की माँग की गयी। दूसरे दिन सरकार ने शांति स्थापना के लिए नेशनल गार्ड (रक्षक दल) रो बुला लिया, किन्तु यह दल भी सुधार जिन्दाबाद ग्विजो का नाश हो के नारे लगाने लगा। स्थिति की गंभीरता को देखकर 23 फरवरी को लुई फिलिप ने ग्विजो को बरखास्त कर दिया तथा उसने जनता को सुधार करने का आश्वासन दिया, किन्तु पेरिस के पूर्वी भाग में आंदोलनकारी प्रदर्शन करते रहे।

लुई फिलिप का पतन

23 फरवरी की शाम को प्रदर्शनकारियों की भीङ विदेश मंत्रालय के समक्ष एकत्रित हो गयी तथा किसी व्यक्ति ने रक्षक दल पर गोली चलाई। इसके प्रत्युत्तर में रक्षक दल ने भी गोली चलाई। जिससे लगभग 20 व्यक्ति मारे गये। इससे जनता उत्तेजित हो उठी तथा बदला लेने की तैयारी करने लगी। इस स्थिति का लाभ उठाते हुये गणतंत्रवादियों ने जनता को क्रांति के लिये भङकाया।

24 फरवरी को जनता विद्रोही हो गयी तथा पेरिस की गलियों व सङकों में मोर्चाबंदी कर ली. संपूर्ण पेरिस नगर में सशस्त्र संघर्ष आरंभ हो गया तथा विद्रोही गणतंत्र जिन्दाबाद के नारे लगाने लगे। क्रांतिकारियों की एक उत्तेजित भीङ ने राजमहल पर आक्रमण कर दिया तथा सेना ने लुई फिलिप की रक्षा करने से इन्कार कर दिया। लुई घबरा गया तथा वह अपने पौत्र पेरिस के काउण्ट को राजा बनाने की घोषणा कर अपनी पत्नी सहित भेष बदलकर भाग खङा हुआ और इंग्लैण्ड चला गया।

द्वितीय गणराज्य की घोषणा

लुई फिलिप का पतन : लुई फिलिप के गद्दी त्यागने के बाद यद्यपि निम्न सदन ने पेरिस के काउण्ट को राजा बनाना स्वीकार कर लिया, किन्तु गणतंत्रवादियों और समाजवादियों ने सदन को घेर लिया तथा राजंतत्र समाप्त करने को बाध्य किया गया।

निम्न सदन ने एक अस्थायी सरकार बनाने की घोषणा की, किन्तु पेरिस के क्रांतिकारी गणतंत्र की स्थापना के लिये दृढ संकल्प थे। कुछ समय तक दोनों पक्षों में मतभेद रहे, किन्तु लामार्ती के प्रयत्नों से समझौता हो गया। समाजवादी दल के लुई ब्लां और अल्बर्ट को भी सरकार में सम्मिलित किया गया तथा अस्थायी सरकार ने 24 फरवरी, 1848 को गणतंत्र की घोषणा कर दी।

इस प्रकार फ्रांस में एक बार पुनः राजतंत्र के स्थान पर गणतंत्र स्थापित हो गया।

ग्राण्ट और टेम्परले ने ठीक ही लिखा है, कि लुई फिलिप का पतन तथा उसके असफल शासन ने यह सिद्ध कर दिया कि फ्रांस के लिये ब्रिटेन के ढंग का संवैधानिक राजतंत्र उपयुक्त नहीं है।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References

wikipedia : Louis Philippe I

Related Articles

error: Content is protected !!