इतिहासप्राचीन भारतमौखरी राजवंश

मौखरि शासक ग्रहवर्मा का इतिहास

अवंतिवर्मा का पुत्र ग्रहवर्मा था, जो उसका उत्तराधिकारी अर्थात मौखरि वंश का अगला शासक बना। ग्रहवर्मा राजसिंहासन पर 600 ईस्वी में बैठा तथा 605 ईस्वी तक शासन किया।

ग्रहवर्मा का मगध साम्राज्य से अधिकार समाप्त हो गया था, वह केवल कन्नौज का ही शासक था। ग्रहवर्मा के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये केवल हर्षचरित नामक ग्रंथ ही है।

गहवर्मा का विवाह थानेश्वर के राजा प्रभाकरवर्द्धन की पुत्री राज्यश्री से हुआ था।

विवाह के प्रस्ताव के समय ग्रहवर्मा का पिता अवंतिवर्मा की मृत्यु हो गयी थी। यह विवाह ग्रहवर्मा ने स्वयं ही करा था। ग्रहवर्मा पूर्व दिशा में गौङों से भयभीत था। अतः स्वयं को सुरक्षित करने के लिये ग्रहवर्मा ने वर्द्धनवंश के साथ संबंध स्थापित कर लिया था। अब हम यहाँ यह देखते हैं, कि प्रभाकरवर्द्धन भी देवगुप्त की बढती हुई शक्ति से चिंतित था, जिसके कारण उसने अपनी बेटी का विवाह ग्रहवर्मा के साथ करना उचित समझा और ग्रहवर्मा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

अब हुआ यह कि इस वैवाहिक संबंध से दोनों वंशों मौखरि तथा वर्द्धन वंश में घनिष्ठता स्थापित हो गयी। वहीं दूसरी तरफ इन दोनों वंशों के विरुद्ध मालवा के उत्तरगुप्त वंशी नरेश देवगुप्त तथा बंगाल के गौङ वंशी नरेश शशांक के बीच दूसरी संधि स्थापित हुई।

जिस समय थानेश्वर में प्रभाकरवर्द्धन की मृत्यु हुई, उसी समय देवगुप्त ने कन्नौज पर आक्रमण कर ग्रहवर्मा को मार डाला। तथा राज्यश्री को बंदी बनाकर कन्नौज के बंदीगृह में डाल दिया।

देवगुप्त का हर्षचरित में कहीं भी उल्लेख नहीं हुआ है, देवगुप्त के लिये केवल मालवा का दुष्ट शासक नाम उपयोग में लिया गया है।

देवगुप्त के नाम का स्पष्ट उल्लेख बंसखेङा के लेख में किया गया है।

ग्रहवर्मा के मृत्यु के समय मौखरि राज्य पश्चिम में थानेश्वर से पूर्व मगध तक तथा उत्तर में हिमालय से दक्षिण में प्रयाग की सीमा तक विस्तृत था।

ग्रहवर्मा के बाद का मौखरि इतिहास थानेश्वर के वर्द्धन इतिहास से जुङा हुआ था। इस समय राज्यश्री केवल 12 वर्ष की थी। राज्यश्री के कोई संतान भी नहीं थी। इस कारण कन्नौज के राज्यसिंहासन पर हर्ष तथा राज्यश्री दोनों एक साथ बैठा करते थे।

ग्रहवर्मा की मृत्यु के बाद हर्ष ने अपनी राजधानी कन्नौज स्थानांतरित कर दी।

इस राजधानी परिवर्तन का कारण यह हो सकता है, कि हर्ष अपनी बहन राज्यश्री को प्रशासनिक कार्यों में सहायता देना चाहता था। और इसी कारण अपने भाई हर्ष के सहयोग से राज्यश्री आजीवन कन्नौज पर शासन करती रही।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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