मध्यकालीन भारतइतिहास

मध्यकालीन इतिहास में भाषा एवं साहित्य

दिल्ली सल्तनत का काल साहित्यिक दृष्टि से मध्यम था। इस समय फारसी और संस्कृत भाषा के अतिरिक्त हिन्दी, उर्दू और प्रायः सभी प्रांतीय भाषाओं में ग्रंथ लिखे गये। प्रांतीय भाषाओं के विकास में भक्ति मार्ग के संतों का अत्यधिक योगदान है।

अलग-2 भाषाओं में अलग-2 साहित्य लिखे गये जो निम्नलिखित हैं-

  • संस्कृत साहित्य

संस्कृत साहित्य को हिन्दू शासकों मुख्यतया विजयनगर, वारंगल और गुजरात के शासकों से संरक्षण प्राप्त हुआ। संस्कृत इस काल में उच्च वर्ग की भाषा रही। धार्मिक एवं धर्म निरपेक्ष रचनाओं का सृजन बङी मात्रा में हुआ। इस युग के संस्कृत ग्रंथों में मौलिकता का अभाव था। अधिकांश पुस्तकें प्राचीन ग्रंथों की पुनरावृत्ति टीकाएं अथवा प्राचीन भाषाओं का आधार लेकर लिखी गयी।

रामानुज ने ब्रह्मसूत्र पर टीकाएं लिकी तथा पार्थसारथी ने काव्य मीमांसा पर ग्रंथ लिखे। जैनों ने भी संस्कृत के विकास में योगदान दिया हेमचंद्र सूरि उनमें प्रमुख हैं। प्रसिद्ध फारसी कवि जामी द्वारा लिखित युसुफ और जुलेखा की प्रेम कहानी का फारसी से संस्कृत में अनुवाद किया गया।

संस्कृत में लिखित महत्त्वपूर्ण रचनाएं निम्न हैं-

  1. विज्ञानेश्वर की रचना मिताक्षरा( हिन्दू कानूनी ग्रंथ )।
  2. जयदेव की रचना गीतगोविन्द
  3. जयसिंह सुरि की रचना हम्मीर मद मर्दन
  4. विद्यापति की रचना दुर्गाभक्ति तरंगिणी
  5. जयचंद्र की रचना हम्मीर काव्य
  6. विद्यारण्य की रचना शंकर विजय
  7. गंगाधर की रचना गंगाधर प्रताप विलास
  8. माधव की रचना नकासुर विजय
  • फारसी साहित्य-

तुर्की सुल्तान फारसी साहित्य में रुचि रखते थे। जबकि मुसलमानों का अधिकांश साहित्य अरबी में लिखा गया था जो पैगंबर की भाषा थी। फारसी विकास के लिए लाहौर पहला केन्द्र था। दिल्ली सुल्तानों ने इस भाषा के विकास के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएं खोली तथा पुस्तकालय स्थापित किये। सबसे महत्त्वपूर्ण राजकीय पुस्तकालय जलालुद्दीन द्वारा स्थापित कराया गया जिसका अध्यक्ष अमीर खुसरो था। मीर हसन देहलवी को संरक्षण प्रदान किया। मुहम्मद बिन तुगलक के समय में बदरुद्दीन मुहम्मद फारसी का श्रेष्ठ कवि था।

अमीर खुसरो को फारसी कवियों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। फिरोज तुगलक ने स्वयं की  आत्मकथा लिखी तथा इतिहासकार रनी और अफीफ उसके संरक्षण में थे।लोदी शासक सिकंदर लोदी, बहमनी शासक ताजुद्दीन फिरोजशाह तथा बहमनी वजीर महमूद गवाँ का नाम भी विद्वानों में माना जाता है। आयुर्वेद ग्रंथ का फारसी अनुवाद फरहंगे -सिकंदरी तथा गान विद्या का एक श्रेष्ठ ग्रंथ लज्जत-ए-सिकंदरी  सिकंदर लोदी के शासन काल में हुआ।

फिरोजशाह तुगलक के समय में चिकित्सा और संगीत शास्र पर संस्कृत की पुस्तकों का फारसी में अनुवाद हुआ। जिया नक्शवी पहला व्यक्ति था जिसने संस्कृत कथाओं की एक श्रृंखला का फारसी में अनुवाद किया था। जो पुस्तक तूतीनामा के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी रचना मुहम्मद बिन तुगलक के समय में  हुई।

फारसी में रचित प्रमुख ग्रंथ निम्न लिखित हैं-

  1. नुसुद्दीन मुहम्मद द्वारा रचित लुबाब-उल-अल्बाव
  2. अमीर खुसरो द्वारा रचित खजाइन -उल-फुतूह, तुगलक नामा, तारीखे अलाई, किरान-उस-सादेन, मितफा-उल-फुतूह, आशिका।
  3. जिया नक्शवी की रचना तूतीनामा।
  4. इसामी द्वारा रचित रचना फुतूह-उस-सलातीन।
  5. मिनहाज-उस-सिराज द्वारा रचित ग्रंथ तबकात-ए-नासिरी।
  6. जियाउद्दीन बरनी की रचना तारीख-ए-फिरोज शाही तथा फतवा-ए-जहाँदारी।
  7. शम्स-ए-सिराज  अफीफ की रचाना तारीख-ए-फिरोजशाही।
  8. याहिया-बिन-अहमद सरहिन्दी की रचना तारीख-ए-मुबारकशाही।
  9. फिरोज तुगलक की रचना फतूहात-ए-फिरोजशाही।
  10. जमालीकंबू (सिकंदर लोदी का दरबारी कवि ) की रचना सियर-अल-अरीफन।

हिन्दी , उर्दू तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाएं-

  • 1424-25 ई. में शर्फुद्दीन यजदी द्वारा लिखित जफरनामा में हिन्दी शब्द का पहली बार उपयोग किया गया है।
  • हिन्दी, उर्दू और अन्य प्रादेशिक भाषाओं के साहित्य के निर्माण का आधार इस युग में बना।
  • मलिक मुहम्मद जायसी ने हिन्दी में पद्मावत लिखा तथा मसनवी नामक फारसी रूप को काफी बढावा दिया।
  • कवि चंदरवरदाई का पृथ्वीराज रासो ( हिन्दी का प्रथम महाकाव्य ) सारंगधर का हम्मीर काव्य जगनिक का आल्हा खंड आदि ग्रंथ हिन्दी में लिखे गये महान ग्रंथ थे।
  • उर्दू मूलतः तुर्की भाषा का शब्द है, जिसके अर्थ है-शाही शिविर या खेमा।
  • मध्यकाल मं उर्दू का विकास हुआ उसे दक्कनी कहा जाता था। इसे कैम्प भाषा भी कहा जाता है।
  • 18वीं शताब्दी के मध्य तक उर्दू को हिन्दवी, हिन्दी, रेख्ता ( मिश्रित भाषा ) अथवा दक्कनी के रूप में पुकारा जाता रहा और आम लोग उर्दू भाषा को हिन्दुस्तानी या दक्कनी ही पुकारते थे।
  • तेलगू का विकास विजयनगर में तथा मराठी का बहमनी और बीजापुर राज्यों में हुआ।
  • बंगाल के नुसरतशाह ने महाभारत और रामायण का बंगाली में अनुवाद करवाया। उसी के संरक्षण में मालधरबसु ने भागवत का बंगला में अनुवाद किया।
  • कृत्तिवास ने बंगला में रामायण तथा काशीरामदास ने बंगला में महाभारत का अनुवाद किया। कृत्तिवास के रामायण को बंगाल का बाइबिल कहा गया है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/language-and-literature/

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