वैष्णव धर्म में ईश्वरभक्ति के द्वारा मोक्ष प्राप्त करने पर बल दिया गया है। भक्ति के द्वारा ईश्वर प्रसन्न होता है तथा वह भक्त को अपनी शरण में ले लेता है। वैष्णव सिद्धांतों का गीता में सर्वोत्तम विवेचन मिलता है। इसमें ज्ञान, कर्म तथा भक्ति का समन्वय स्थापित करते हुये भक्ति द्वारा मुक्ति प्राप्त करने का प्रतिपादन मिलता है। स्वयं भगवान कृष्ण कहते हैं, कि सभी धर्मों को छोङकर एकमात्र मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त करुँगा।
वैष्णव धर्म में अवतारवाद का सिद्धांत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। तदनुसार ईश्वर समय-समय पर अपने भक्तों के उद्धार के लिये पृथ्वी पर अवतरित होता है। गीता में कृष्ण कहते हैं – जब-जब धर्म की हानि तथा अधर्म की वृद्धि होती है।तब-तब में एवतरित होता हूँ।साधुओं की रक्षा तथा दुर्जनों के विनाश एवं धर्म की स्थापना के लिये युग-युग में मैं उत्पन्न होता हूँ।
अन्यत्र वर्णित है, कि मेरे में मन को एकाग्र करके निरंतर मेरे में लगे हुए जो भक्त जन अतिशय ऋद्धापूर्वक मुझे भजते हैं, वे योगियों में अत्युत्तम योगी है। जो संपूर्ण कर्मों को मेरे में अर्पण करके मुझे ही अनन्य भाव से भजते हैं, उनको मैं शीघ्र ही मृत्युरूपी संसार सागर से उद्धार कर देता हूँ।
पुराणों में विष्णु के दस अवतारों का विवरण प्राप्त होता है, जो इस प्रकार हैं-
मत्स्य – कथा के अनुसार जब पृथ्वी महान जल-प्लावन से भयभीत हो गयी तब विष्णु ने मत्स्य के रूप में अवतार लेकर मनु, उनके परिवार तथा सात ऋषियों को एक जलपोत में बैठाकर, जिसकी रस्सी मत्स्य की सींग से बंधी हुई थी, रक्षा की। उन्होंने प्रलय से वेदों की भी रक्षा की थी।
कूर्म अथवा कच्छप – जल प्लावन के समय अमृत तथा रत्न आदि समस्त बहुमूल्य पदार्थ समुद्र में विलीन हो गये। विष्णु ने अपने को एक बङे कूर्म (कच्छप) के रूप में अवतरित किया तथा समुद्रतल में प्रवेश कर गये। देवताओं ने उनकी पीठ पर मंदराचल पर्वत रखा तथा नागवासुकि को डोरी बनाकर समुद्र मंथन किया। परिणामस्वरूप अमृत तथा लक्ष्मी समेत चौदह रत्नों की प्राप्ति हुयी।
वराह- हिरण्याक्ष नामक राक्षस ने एक बार पृथ्वी को विश्व सिन्धु के तल में ले जाकर छिपा दिया। पृथ्वी की रक्षा के लिये विष्णु ने एक विशाल वराह (सूकर) का रूप धारण किया। उन्होंने राक्षस का वध किया तथा पृत्वी को अपने दांतों से उठाकर यथास्थान स्थापित कर दिया।
नृसिंह –प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नामक महान असुर हुआ। ब्रह्मा से उसने यह वरदान प्राप्त किया, कि वह न तो दिन में मरे न रात में, न उसे देवता मार सकें न मनुष्य। अब उसने देवताओं तथा मनुष्यों पर अत्याचार करना प्रारंभ किया। यहाँ तक कि उसने अपने पुत्र प्रहलाद को भी अनेक प्रकार से प्रताङित किया। प्रहलाद की पुकार पर विष्णु ने नृसिंह (आधा मनुष्य तथा आधा सिंह) अवतार लिया। हिरण्यकश्यप को गोधूलि के समय मार डाला तथा प्रहलाद को राजा बनाया।
वामन –बलि नामक राक्षस हुआ जिसने संसार पर अधिकार करने के बाद तपस्या करना प्रारंभ किया। उसकी शक्ति इतनी बङी कि देवता घबरा गये तथा विष्णु से प्रार्थना की। फलस्वरूप वे एक बौने का रूप धारण कर राक्षस के सम्मुख उपस्थित हुये। उन्होंने दान में तीन पग भूमि मांगी। बलि ने यह स्वीकार कर लिया। उसके बाद उनका आकार अत्यन्त विशाल हो गया तथा दो ही पग में पृथ्वी, आकाश तथा अंतरिक्ष को नाप दिया। तीसरा पग नहीं उठाया तथा बलि के लिये पाताल छोङ दिया। अतः वह पृथ्वी छोङकर पाताल लोक चला गया।
परशुराम –यमदग्नि नामक ब्राह्मण के पुत्र के रूप में विष्णु ने परशुरामवतार लिया। एक बार यमदग्नि को कीर्त्तवीर्य नामक राजा ने लूटा। परशुराम ने उसने मार डाला। कीर्त्तवीर्य के पुत्रों ने यमदग्नि को मार डाला। परशुराम अत्यन्त क्रुद्ध हुये और उन्होंने समस्त क्षत्रिय राजाओं का विनाश कर डाला। ऐसा इक्कीस बार किया गया। अन्ततः रामावतार में उनका गर्व चूर्ण हुआ और वे वन में तपस्या करने के लिये चले गये।
रामावतार-अयोध्या में राजा दशरथ के पुत्र के रूप में विष्णु ने अवतार लिया तथा राम नाम से विख्यात हुये। उन्होंने रावण सहित कई राक्षसों का संहार किया। विष्णु का यह अवतार उत्तर भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय है।
कृष्ण – मथुरा के राजा कंस के अत्याचारों से प्रजा की रक्षा करने के लिये वसुदेव तथा देवकी के पुत्र रूप में विष्णु का कृष्णावतार हुआ। कृष्ण भी राम के ही समान लोकप्रिय हैं। उन्होंने अनेक अलौकिक चमत्कार दिखाये, लीलायें की तथा कंस, जरासंघ, शिशुपाल, आदि का वध किया गया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों का साथ देखर दुर्योधन का वध करवाया तथा पृथ्वी पर सत्य, न्याय एवं धर्म को प्रतिष्ठित किया गया।
बुद्ध –इन्हें विष्णु का अंतिम अवतार माना गया है। जयदेव कृत गीतगोविन्द से सूचित होता है, कि पशुओं के प्रति दया दिखाने तथा रक्तरंजित पशुबलि जैसी प्रथाओं को रोकने के उद्देश्य से विष्णु ने बुद्ध के रूप में अवतार ग्रहण किया। कालांतर में हिन्दुओं ने अपनी उपासना पद्धति में बुद्ध को देवता के रूप में मान्यता प्रदान कर दी। विष्णु का यह अवतार अभी वर्तमान में है।
कल्कि(कलि) – यह भविष्य में होने वाला है। कल्पना की गयी है, कि कलियुग के अंत में विष्णु हाथ में तलवार लेकर श्वेत पर सवार हो पृथ्वी पर अवतरित होंगे। वे दृष्टों का संहार करेंगे तथा पृथ्वी पर पुनः स्वर्ग युग स्थापित होगा।
वैष्णव धर्म में मूर्ति पूजा तथा मंदिरों आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मूर्ति को ईश्वर का प्रत्यक्ष रूप माना जाता है। भक्त मंदिर में जाकर उसकी पूजा करते हैं। दशहरा, जन्माष्टमी जैसे पर्व वासुदेव-विष्णु के प्रति ऋद्धा प्रकट करने के प्रतीक हैं। वैष्णव उपासक भगवान का कीर्तन करते हैं तथा पवित्र तीर्थों पर एकत्रित होकर स्थान-स्थान पर ध्यान करते हैं।
वैष्णव धर्म के प्रमुख आचार्यों में रामानुज, मध्व, बल्लभ, चैतन्य आदि के नाम उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने इस धर्म का अधिकाधिक प्रचार किया। बाद में चलकर विष्णु का रामावतार सबसे अधिक व्यापक तथा लोकप्रिय हो गया। मध्यकाल में रामकथा का खूब विकास हुआ। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना कर समाज में रामभक्ति की महत्ता को प्रतिष्ठित कर दिया। आज भी करोङों हिन्दू राम की सगुणोपासना करते हैं।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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