आधुनिक भारतइतिहास
तीन जून की योजना (1947)
तीन जून की योजना – हालांकि वर्तमान संविधान सभा का कार्य जारी रहना था, पर यह संविधान उन लोगों पर लागू नहीं होना था जो इसे स्वीकार नहीं करना चाहते थे।
देश के विभिन्न भागों की इच्छा की पूर्ति के लिये दो उपाय सुझाए गए – 1.) वर्तमान संविधान सभा द्वारा जिसमें विरोधी भागों के प्रतिनिधि होंगे, 2.) विरोधी भागों की अलग संविधान प्रतिनिधि सभा द्वारा।
प्रांतों के संदर्भ में निम्नलिखित व्यवस्था की गयी

- पंजाब तथा बंगाल विधायिका का विभाजन मुस्लिम बहुल तथा गैर मुस्लिम जिलों के सदस्यों के आधार पर होगा। अगर वे प्रांतों का विभाजन चाहें तो प्रत्येक वर्ग उस प्रांत के संविधान सभा में शामिल हो सकती है।
- प्रांतों के संविधान सभा में शामिल होने का निर्णय उस प्रांत की विधायिका के पास रहेगा
- उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में इसे जनमत संग्रह द्वारा तय किया जाएगा।
- आसाम का सिलहत जिला भी अपनी इच्छा जनमत संग्रह द्वारा ही तय करेगा।
- बलूचिस्तान के लोगों की इच्छा के निर्धारण के लिये उपयुक्त तरीका गवर्नर जनरल तय करेगा
- पंजाब, बंगाल तथा सिलहत में संबद्ध संविधान सभाओं के प्रतिनिधियों के लिये चुनाव होंगे।
निम्नलिखित विचार-विमर्श होने थे
- उत्तराधिकारी सरकारों के बीच केन्द्रीय विषयों के बारे में
- सत्ता हस्तांतरण के कारण उत्पन्न मसलों पर उत्तराधिकारी सरकारों एवं इंग्लैण्ड के बीच
- प्रांतीय विषयों के प्रशासन के मसले पर विभाजित प्रांतों के भागों के बीच
- भारतीय राज्यों पर ब्रिटिश सरकार की सर्वोच्चता समाप्त हो जाएगी। उत्तराधिकारी सरकारों में शामिल होने का निर्णय उन राज्यों द्वारा किया जाएगा।
References : 1. पुस्तक- भारत का इतिहास, लेखक- के.कृष्ण रेड्डी

Online References wikipedia : तीन जून की योजना