दिवेर का युद्ध – मई, 1580 ई. के बाद कुछ वर्षों तक प्रताप के विरुद्ध शाही सेनानायकों की आक्रामक कार्यवाहियाँ बंद रही। गोङवाङ क्षेत्र पर तब भी प्रताप का अधिकार था। उस समय सायरा से राणापुर होती सादङी की राह वाली घाटी ही प्रताप के लिये खुली थी।
प्रताप के अधिकार से बहुत सा पहाङी क्षेत्र भी मुगलों के अधिकार में चला गया था तथा निरंतर अपनी स्वाधीनता हेतु संघर्ष करते रहने के कारण प्रताप की सैनिक शक्ति भी बहुत कुछ क्षीण हो गयी थी। अतः लगभग दो वर्ष तक प्रताप अपने रहे-सहे राज्य क्षेत्र की शासन व्यवस्था को संगठित करने और अपनी शक्ति बढाने में लगा रहा। इन वर्षों में अकबर भी मेवाङ की ओर कोई ध्यान नहीं दे सका था।

1582 ई. की वर्षा ऋतु का अंत हो जाने पर प्रताप ने पश्चिमी मेवाङ के पहाङी क्षेत्र में स्थित शाही चौकियों और थानों के विरुद्ध कार्यवाही शुरू कर दी। सर्वप्रथम उसने दिवेर ग्राम के शाही थाने पर भीषण आक्रमण किया। दिवेर के इस युद्ध में प्रताप के ज्येष्ठ पुत्र अमरसिंह ने अनुपम शौर्य का प्रदर्शन किया और अंत में प्रताप की निर्णायक विजय हुई। तदनन्तर आमेट आदि उन सभी शाही थानों पर प्रताप का अधिकार हो गया।
कर्नल टॉड ने दिवेर के इस युद्ध को मेवाङ के इतिहास का मेरेथान कहा है। दिवेर के युद्ध में विजयी प्रताप जब कुम्भलमेर की ओर गया तब तो कुम्भलमेर के किले में नियुक्त शाही सैनिक किले को छोङ कर भाग खङे हुए। 1583 ई. में प्रताप ने कुम्भलगढ पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
प्रताप ने कुम्भलगढ की सुरक्षा आदि की पूरी-पूरी व्यवस्था की। तत्पश्चात् दक्षिण की राह में पङने वाले पहाङी क्षेत्रों में स्थापित शाही थानों के साथ ही प्रताप ने जावर पर भी अधिकार कर लिया। मेवाङ की इन दक्षिण पश्चिमी पहाङियों में आगे के छप्पन क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
मेवाङ की इन दक्षिण-पश्चिमी पहाङियों में आगे के छप्पन क्षेत्र पर अधिकार करने हेतु प्रताप ने वहाँ पहुँच कर लूणा राठौङ को चावण्ड से निकाल दिया और उस सारे क्षेत्र पर अधिकार स्थापित कर चावण्ड ग्राम को अपनी राजधानी बनाया और अपने महल आदि का निर्माण करवाया तथा वहाँ चामुण्डा माता का मंदिर भी बनवाया।
प्रताप की इन गतिविधियों को अकबर सहन नहीं कर सका और उसने जगन्नाथ कछवाहा को प्रताप के विरुद्ध भेजा। जगन्नाथ के ससैन्य पहुँचते ही प्रताप पुनः पहाङियों की शरण में चला गया। जगन्नाथ ने माण्डलगढ को केन्द्र बनाकर प्रताप का निरंतर पीछा किया।
जगन्नाथ ने अपने सहायक सैयद राजू को भी दूसरी दिशा में प्रताप का पीछा करने के लिये भेजा लेकिन काफी प्रयासों के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिली। उनके लौटते ही प्रताप पुनः चावण्ड लौट आया और अपनी राजधानी चावण्ड में रहते हुये अपनी शक्ति संगठित करता रहा।
References : 1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

Online References wikipedia : दिवेर का युद्ध