सूरदास के जीवन की जानकारी तथा सूरदास के गुरू कौन थे

- 15वी. एवं 16वी. शताब्दियों के धार्मिक आंदोलन
- भक्ति आंदोलन क्या था, इसके कारण तथा प्रमुख संत
- भक्ति आंदोलन में कबीर का योगदान
- वल्लभाचार्य से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
जीवन परिचय-
सूरदास कृष्ण भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में सर्वोपरि हैं। सूरदास जी ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। सूरदास हिंन्दी साहित्य में भक्ति काल के सगुण भक्ति शाखा के कृष्ण-भक्ति उपशाखा के महान कवि हैं।
सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी में आगरा-मथुरा रोड पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था। वहीं कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि उनका जन्म एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में दिल्ली के पास सीही नामक गांव में 1479 ईस्वी में हुआ था। इसी तरह उनकी मृत्यु के संबंध में भी दो मत हैं। अतः हम कह सकते हैं कि इनके जन्म एवं मृत्यु की जानकारी के बारे में कोई सही तर्क हमारे पास नहीं है।सूरदास ने भक्ति के मार्ग को ही सर्वोपरि माना।
सूरदास जन्म से ही अंधे थे, इस कारण उन्हें उनके परिवार ने छोड़ दिया था। उन्होंने महज छह साल की उम्र ही ही घर त्याग दिया था। जन्म से अंधे होने के बावजूद भी उनकी कविता में प्रकृति और दृश्य जगत की अन्य वस्तुओं का इतना सूक्ष्म और अनुभवपूर्ण चित्रण मिलता है कि उनके जन्म से अंधे होने पर सहज विश्वास नहीं होता। सूरदास की तथाकथित रचना ‘साहित्य लहरी’ के एक पद में तो उन्हें चंदबरदायी का वंशज माना गया है और उनका वास्तविक नाम सूरजचंद बताया गया है।
सूरदास के गुरु कौन थे
कृष्ण भक्ति में सूरदास का नाम सर्वोपरि है। वह एक कवि, संत और एक महान संगीतकार थे। उनके जीवनकाल से संबंधित कोई भी पुख्ता प्रमाण नहीं मिलते। उनके पिता रामदास गायक थे। उनके गुरु का नाम श्री वल्लभाचार्य था।
18 साल की उम्र में सूरदास गऊघाट (यमुना नदी के तट पर पवित्र स्नान स्थल) गए। यहां पर ही वह महान संत श्री वल्लभाचार्य के संपर्क में आए और उनसे गुरु दीक्षा ली। वल्लभाचार्य ने ही उन्हें ‘भागवत लीला’ का गुणगान करने की सलाह दी। इसके बाद उन्हें श्रीकृष्ण का गुणगान शुरू कर दिया और जीवन में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इससे पहले वह केवल दैन्य भाव से विनय के पद रचा करते थे। उनके पदों की संख्या ‘सहस्राधिक’ कही जाती है, जिनका संग्रहीत रूप ‘सूरसागर’ के नाम से प्रसिद्ध है।
अकबर से भेंट
सूर की काव्य प्रतिभा ने तत्कालीन शासक अकबर को भी आकर्षित किया। उसने उनसे आग्रहपूर्वक भेंट की थी जिसका उल्लेख भी प्राचीन साहित्य में मिलता है। साहित्य में सूरदास और तुलसीदास की भेंट का वर्णन भी मिलता है।
सूरदास द्वारा रचित रचनाएं-
सूरदास जी द्वारा लिखित 5 ग्रन्थ जिनमें से – सूर सागर, सूर सारावली और साहित्य लहरी ,नल-दमयंती तथा ब्याहलो । इन पाँचों में से सूर सागर , सूर सारावली तथा साहित्य लहरी के प्रमाण मिलते हैं। जबकि नल-दमयन्ती और ब्याहलो का कोई प्रमाण नहीं मिलता। नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के 16 ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है।
मृत्यु-
सूरदास जीवन के अंतिम समय तक ब्रज में ही रहे । इनके निधन काल का कोई सटीक प्रमाण तो नहीं है। लेकिन 100 वर्ष से अधिक की उम्र तक वह जिंदा रहे। कुछ विद्वानों के अनुसार 1581 ईस्वी में इनकी मृत्यु हुई, वहीं कुछ का कहना है कि सूरदास की मृत्यु पारसोली नामक गाँव में 1584 ईस्वी में हुई।
Reference : https://www.indiaolddays.com/surdas-biography/