औरंगजेब की राजपूत नीति

अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-
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औरंगजेब ने अकबर द्वारा प्रारंभ की गयी एवं जहाँगीर तथा शाहजहाँ द्वारा अनुसरण की गयी राजपूत नीति में परिवर्तन कर दिया। क्योंकि वह राजपूतों को अपनी धार्मिक नीति के कार्यान्वित होने में सबसे बङी बाधा मानता था।
औरंगजेब के समय आमेर(जयपुर)के राजा जयसिंह, मेवाङ के राजा राजसिंह और जोधपुर के राजा जसवंत सिंह प्रमुख राजपूत राजा था।
औरंगजेब और राजपूतों के संबंधों में कटुता 1679ई. में जसवंतसिंह की मृत्यु के बाद मारवाङ को मुगल साम्राज्य में मिलाने की उसकी अदूरदर्शी नीति के परिणामस्वरूप प्रारंभ हुई।जबकि इसके पूर्व राजपूतों से उसके संबंध अच्छे थे।
उत्तराधिकार के युद्ध में राजा जयसिंह ने शाही सेना के साथ शाहशुजा को परास्त करने में महत्त्वपूर्ण भाग लिया था किन्तु सामूगढ के युद्ध के बाद वह औरंगजेब के साथ हो गया था।
इसी प्रकार धरमत के युद्ध में जसवंत सिंह ने शाही सेना की ओर से औरंगजेब का मुकाबला किया था, उसके बाद वह मुगल दरबार छोङकर मारवाङ चला गया। किन्तु बाद में राजा जयसिंह के समझाने और दारा की शक्ति को नष्टप्राय समझकर वह भी औरंगजेब के साथ हो गया था।
औरंगजेब जसवंतसिंह की ओर सदैव संशकित रहता था अतएव उसने जयसिंह और जसवंतसिंह को सदैव साम्राज्य से दूर प्रांतों में ही नियुक्त किया।
1679ई. में अफगानिस्तान की सीमा पर हुए जमरूद के युद्ध में जसवंतसिंह की मृत्योपरांत उत्पन्न पुत्र अजीतसिंह का राजगद्दी पर वैध अधिकार को अमान्य करके औरंगजेब मारवाङ को हथिया लेना चाहता था।
औरंगजेब ने अजीत सिंह के दिल्ली पहुँचने से पहले ही जोधपुर की टीका 36लाख रुपये के बदले में जसवंत सिंह के बङे भाई अमरसिंह के पोते इन्द्रसिंह को देने का वचन दे दिया था।
जब दुर्गादास(जसवंत सिंह का सेनापति) ने औरंगजेब से अजीत सिंह के वैध अधिकार की माँग की तब औरंगजेब ने यह शर्त रखी कि यदि अजीत सिंह इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले, तो उसे मारवाङ का सिंहासन दे दिया जायेगा,किन्तु अजीत सिंह ने इसे इंकार कर दिया।
मारवाङ और मुगलों के बीच हुए तीस वर्षीय युद्ध(1679-1709) का नायक दुर्गादास था। जिसे कर्नल टॉड ने राठौरों का यूलिसीज (यूलिसीज यूनान का महान योद्धा) कहा है। और राजपूत उसकी वीरता के कारण आज भी कहते हैं कि-हे माँ, पूत ऐसा जन जैसा दुर्गादास ।
1709ई. में सम्राट बहादुर शाह प्रथम ने अजीत सिंह को मारवाङ का राजा स्वीकार कर लिया।
मुगलों के साथ हुए युद्ध में राठौरों का साथ मेवाङ ने भी दिया था।क्योंकि एक तो मेवाङ का राजा राजसिंह जजिया कर लगाने के कारण औरंगजेब से नाराज था। दूसरे अजीत सिंह की माँ मेवाङ की राजकुमारी थी।
बाद में औरंगजेब को शाहजादा अकबर के विद्रोह के दमन हेतु दक्षिण जाना पङा फलस्वरूप उसने मेवाङ के शासक जगतसिंह या जयसिंह ( राजसिंह की मृत्यु के बाद शासक बना)से संधि कर ली। और कुछ परगनों के बदले जजिया समाप्त कर दिया तथा अजीत सिंह की सहायता न करने का वचन भी प्राप्त किया।
इस प्रकार औरंगजेब न तो पूर्णतः मेवाङ और मारवाङ को ही दबा सका, उल्टे उसने अपने एक बहादुर एवं विश्वसनीय मित्र राजपूतों को खो दिया।
Reference : https://www.indiaolddays.com/